श्री राधा जहां जहां, श्री कृष्णा वहां वहां
राजकीय संग्रहालय में है 18 वीं सदी की मनमोहक राधा-कृष्ण के प्रेम की कहानी
आज इस संग्रहालय को विदशों में प्रचार प्रसार की जरूरत है।
कोटा। श्री राधा जहां जहां, श्री कृष्णा वहां वहां, जो ह्रदय में बस जाए फिर वो बिछड़ता कहां, श्याम की बंशी जब भी बजी है, राधा के मन में प्रीत जगी है। राधा कृष्ण की प्रेम गाथाएं वृंदावन में ही नहीं गूंजती, कोटा शहर में भी श्रद्धा से सुनी जाती हैं। कोटा शहर के बीचों बीच स्थित राजकीय संग्रहालय में 18 वीं सदी में बना एक ऐसा चित्र है जो आज भी लोगों को टकटकी बांधने पर मजबूर कर देता है। राधा कृष्ण की ऐसी बेजोड चित्रकारी है कि जो भी इसे देखता है, मनमोहित हो जाता है। बूंदी शैली में तैयार हस्त निर्मित इस चित्र में कृष्ण रात्रि प्रहर में राधा के बाल संवारते देखे जा सकते हैं। पास ही एक सेविका राधा को उसे शीशा दिखाती नजर आ रही है। इतनीा ही नहीं संभाग के अनेक स्थनों से पाई गई, कई प्राचीन प्रतिमाओं, पौशाकों, चित्रकारी, शिलालेखों और प्राचीन हथियारों को समेटे हुए .ह संग्रहालय आगंतुकों के इतंजार में है। प्रचार प्रसार की कमी के कारण संग्रहालय आज पर्याप्त आगंतुकों की भी राह देख रहा है। संग्रहालय की देख रेख करने वाले अब्दुल हाफिÞज ने बताया की सामान्य दिनों में संग्रहालय में मुश्किल से 10 आगंतुक ही संग्रहालय को देखने आते हैं वहीं अवकाशीय दिनों में इनकी संख्या जरूर बढ़ जाती है, लेकिन वो भी उम्मीद से कई गुना कम है।
19 करोड़ के विकास कार्य करवाए
दर्शकों को बुलाने की उम्मीद से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राजस्थान सरकार ने साझेदारी से संग्रहालय में करीब 19 करोड़ रूपए के विकास कार्य करवाए थे। जिनमें संग्रहालय के अंदर सीसीटीवी कैमरा और एलईडी लाइटें लगवाने का कार्य मुख्य रूप से था। अब्दुल हाफिज ने बताया कि संग्रहालय के बाईं तरफ छत्र विलास उद्यान है जिसका एक दरवाजाÞ हाल ही में संग्रहालय की तरफ खुलना शुरू हुआ है और संग्रहालय के सामने बने नए बस स्टैंड से उम्मीद है कि संग्रहालय के बारे में अघिक लोगों को पता चलेगा और आगंतुकों की संख्या में इजाफा होगा।
ज्ञान विज्ञान का खजाना है
5वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक की प्रतिमाएं, संग्रहालय में मौजूद है 5वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक की प्रतिमाएं, चित्र, औजार, शिलालेख, तांब्र पत्र और पौषाकें है। कोटा राजकीय संग्रहालय में 5वीं शताब्दी की झल्लरीवादक की प्रतिमा मौजुद है, जो बांरा के विलास में सन् 1947 में पाई गई थी। संग्रहालय में 10वीं सदी कि चार भुजा वाले शिव की हस्तशिल्प मुर्ति भी शोकेस में रखी हुई है। वहीं संगमरमर से बनी भगवान महावीर की 11 वीं सदी की प्रतिमा जो की अजमेर जिले के बाघेरा प्राप्त कि गई थी। संग्रहालय के अन्दर 1749 ई. का बूंदी शासक उम्मेद सिंह द्वारा लिखा गया ताम्रपत्र लेख भी मौजूद है जो उम्मेद सिंह द्वारा पुरोहित उदयराम के पूर्वजों को भूमि भेंट करने के उपरान्त लिखा गया था। 10वीं सदी में निर्भय राम द्वारा तैयार किया गया समय गणना यंत्र भी संग्रहालय में देखा जा सकता है। संग्रहालय में कोटा के विभिन्न शासकों के समय कि बंदुकें, तलवारें, ढालें, हथियार, शिलालेख, बर्तन और पोशाकें प्रर्दशन के लिए रखी गईं हैं।
विदेशों में प्रचार की दरकार
संग्रहालय देखने आए आशुतोष दिनकर कहते हैं कि आज इस संग्रहालय को विदशों में प्रचार प्रसार की जरूरत है। सरकार जिस प्रकार चंबल रिवर, फ्रंट, सिटी पार्क, और अन्य निर्माणाधीन पर्यटक स्थलों का प्रचार प्रसार कर रही है अगर उसी प्रकार इस संग्रहालय का भी करे तो काफी मदद मिल सकती है। इस संग्रहालय की स्थापना साल 1935 में कोटा में एक अलग राज्य की द्ृष्टि अलग पुरातत्व विभाग के गठन के साथ हुई। उसके बाद संग्रहालय में सन् 1945 में राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में बिखरे पडे शिलालेखों और मुर्तियों को लाकर बृजविलास पैलेस में स्थापना की गई। साल 1951 में राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने इस संग्रहालय को बृजविलास पैलेस से कोटा गढ़ पैलेस में स्थानान्तरित कर दिया। पुन: वर्ष 1995 में गढ़ पैलेस में स्थान कि कमी को देखते हुए इसे बृजविलास पैलेस में स्थानान्तरित कर दिया।

Comment List