श्मशान घाट बना तालाब : सड़क पर रखनी पड़ी अर्थी, जेसीबी से रास्ता बनाने के बाद हुआ अंतिम संस्कार; ग्रामीणों में गहरा आक्रोश
सड़क पर दो घंटे पड़ी रही अर्थी
यह खबर न केवल प्रशासन की लापरवाही उजागर करती है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी सम्मानजनक विदाई नहीं मिल रही, तो विकास के दावों का क्या अर्थ रह जाता है?
रोहट। उपखंड क्षेत्र के अरटिया गांव में गुरुवार को ऐसा विचलित कर देने वाला दृश्य सामने आया जिसने पूरे इलाके को झकझोर दिया। गांव की 35 वर्षीय महिला भूंडी देवी बावरी के अंतिम संस्कार के लिए परिजन जब श्मशान भूमि पहुंचे तो चारों ओर तीन फीट तक पानी का भराव मिला। हालात ऐसे बने कि अर्थी को श्मशान भूमि तक ले जाना ही संभव नहीं हुआ।
सड़क पर दो घंटे पड़ी रही अर्थी
पानी भरे श्मशान घाट को देखकर परिजन और ग्रामीण मजबूरी में अर्थी को मुख्य सड़क पर ही रखकर बैठ गए। करीब दो घंटे तक अंतिम संस्कार रुका रहा। दुख और आक्रोश से भरे ग्रामीणों ने अंतत: जेसीबी मशीन मंगवाई और अस्थाई रास्ता बनवाया। तभी जाकर अर्थी को श्मशान भूमि तक पहुंचाया गया और बड़ी मशक्कत के बाद अंतिम संस्कार हो पाया।
हर साल दोहराई जाती है यह शर्मनाक स्थिति
ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में पास के तालाब का पानी ओवरफ्लो होकर सीधे श्मशान घाट में भर जाता है। यही कारण है कि हर साल बारिश के दौरान अंतिम संस्कार में गंभीर दिक्कतें आती हैं। यह समस्या पिछले कई वर्षों से लगातार बनी हुई है, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधि आंख मूंदे बैठे हैं।
धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़
गांववालों ने कहा कि श्मशान घाट कोई सामान्य जगह नहीं है बल्कि धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील स्थल है। यहां पानी भरना और अंतिम संस्कार रोकना आस्था के साथ सीधा खिलवाड़ है। ग्रामीणों ने मांग की है कि तालाब के बहाव को गुहियावाला की ओर मोड़ने के लिए स्थाई समाधान किया जाए, ताकि भविष्य में मृतकों के परिजनों को इस तरह की अमानवीय स्थिति का सामना न करना पड़े।
ग्रामीणों का आक्रोश फूटा
ग्रामीणों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा- सरकार गांव-गांव विकास और संवेदनशील योजनाओं की बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन श्मशान घाट जैसे पवित्र स्थल की दशा सुधारने की किसी को फिक्र नहीं।उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही स्थाई समाधान नहीं किया गया तो ग्रामीण आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर होंगे।
गांव के लोग मैदान में
पूर्व वार्डपंच शिवाराम बावरी सहित शंकरलाल, भीमाराम, कानाराम, कालूराम, कनाराम, जेठाराम, नवाराम, दीपाराम, दुर्गाराम, मांगीलाल, मदनलाल, नेमाराम, गोपाराम, पोकरराम, मंगलाराम, हरजीराम, बुदाराम, भंवरलाल, कूंपाराम, मेघाराम, अर्जुनराम सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण मौके पर मौजूद रहे। सभी ने मिलकर जेसीबी की मदद से रास्ता बनवाया और अंतिम संस्कार करवाया। यह खबर न केवल प्रशासन की लापरवाही उजागर करती है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी सम्मानजनक विदाई नहीं मिल रही, तो विकास के दावों का क्या अर्थ रह जाता है?

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