आखिर समाज में कहां से आ रही है ये हैवानियत

समाज में बढ़ रही क्रूरता,सोशल मीडिया बड़ा कारण

आखिर समाज में कहां से आ रही है ये हैवानियत

सोशल मीडिया, फिल्मों में दिखाए जाने वाले क्रूरता के सीन, लोगों को हत्याएं करने के लिए प्रेरित करते है। कानून से बचने के लिए लोग हत्या करने के बाद शव को ठिकाने लगाने से तरीके खोजते है। बच्चों में बचपन में हिंसक प्रवृति को समय पर नहीं रोकने से आगे जाकर जघन्य अपराध करने लगता है।

कोटा। प्रदेश में श्रद्धा मर्डर  जैसी वारदातों में लगातार हो रहा इजाफा समाज के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। लोगों में मानसिक विकृति इस कदर पनप रही है कि खून के रिश्तों को तार तार कर रहे हंै। एक सनकी भतीजा अपनी 65 वर्षीय ताई की निर्मम हत्या कर उसके शव के टूकड़े कर सूटकेस व बाल्टी में फैंक रहा है।   एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के टुकड़े कर फ्रीज में रख रहा है। समाज में आ रही इस तरह की  विकृत को लेकर दैनिक  नवज्योति ने समाज के चिन्तनशील  लोगों से परिचर्चा की। उन्हीं से पूछा कि समाज में आ रही इस प्रकार की विकृति को कैसे रोका जाए? प्रस्तुत हैं उसके अंश :

हिंसक प्रवृति ने बनाया आदि मानव
संस्कारों की कमी होने से  युवाओं में सामाजिकता का अभाव हो रहा है।  जिससे युवा सोशल मीडिया व वेब सीरीज की ओर बढ़ रहा है। उससे अच्छाई ग्रहण करने की जगह बुराई की ओर  ग्रहण कर रहा है। जिससे उनमें हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है। वह हिंसक प्रवृति इंसानियत खत्म कर मनुष्य को   राक्षस से भी बढ़कर आदि मानव की ओर ले जा रही है। इस तरह का नृशंस हत्याकांड ऐसे ही लोग अधिक कर रहे हैं। जिन्हें अपराध करने के बाद पछतावा भी नहीं हो रहा है। इस तरह की बढ़ती प्रवृति पर रोक लगाने की आवश्यकता है। जिससे इसे यहीं रोका जा सके। वरना इस तरह की बुराई लगातार बढ़ती जाएगी। 
- डॉ. कंचना सक्सेना, पूर्व प्राचार्य जेडीबी कन्या महाविद्यालय 

सहनशीलता हो रही खत्म
वर्तमान में संयुक्त परिवार की परंपरा खत्म हो रही है। एकल परिवार के चलते बच्चों में संस्कार खत्म हो रहे है। अभिभावकों के पास बच्चों के लिए समय नहीं होता है।  भौतिकवादी दौड़ में रिश्तों की अहमियत को कम समझ कर रिश्तों का खून कर रहे हैं।  बचपन से लेकर युवापन तक के सफर में बच्चें अपने आसपास के माहौल के साथ एक आभासी दुनिया तैयार कर लेते हैं। आज गैजेट लोगों के मन मस्तिष्क में इस तरह से छाया हुआ है। सारा काम मोबाइल और गुगल पर सर्च करके कर रहा है। लोग रिश्तों से स्वार्थ पनप रहा है। युवा अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। सोशल मीडिया, फिल्मों में दिखाए जाने वाले क्रूरता के सीन, लोगों को हत्याएं करने के लिए प्रेरित करते है। कानून से बचने के लिए लोग हत्या करने के बाद शव को ठिकाने लगाने से तरीके खोजते हंै। बच्चों में बचपन में हिंसक प्रवृति को समय पर नहीं रोकने से आगे जाकर जघन्य अपराध करने लगता है। 
- डॉ. मिथलेश खिंची, सहआचार्य मनोरोग विभाग मेडिकल कॉलेज

विकृत मानसिकता के कारण हो रहा
संयुक्त परिवारों में जो संस्कार बच्चों को मिलते थे वह वर्तमान में एकांकी परिवारों में खत्म से होते जा रहे हैं। साथ ही रिश्तों से ज्यादा स्वार्थ घर करने लगा है। ऐसे में बेरोजगारी और सोशल मीडिया का प्रभाव अधिक होने से युवाओं को मानसिकता विकृत होती जा रही है। विकृत मानसिकता वाले लोग ही इस तरह की क्रूरता भरा कदम उठा सकते हैं। समाज में जब कोई एक घटना होती है तो उसे देखकर, सुनकर व पढ़कर कुछ लोग उसका अनुसरण सबक लेनी की जगह उसे बुराई के रूप में अपना लेते हैं। जिससे इस तरह के अपराध व घटनाएं अधिक हो रही हैं।                                                
- जी.डी. पटेल, समाजसेवी

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मनुष्य में पशुता बढ़ रही 
यह समाज के लिए बहुत घातक है। ताई, प्रेमिका और पत्नी की जिस प्रकार से निर्मम हत्याए की गई और शव के टुकड़े कर फैंके गए यह मनुष्य में खत्म होती करुणा का घोतक है। तुच्छ स्वार्थ के लिए कुछ करने के लिए आमादा हो रहा यह समाज के लिए बहुत चिंता का विषय है। मनुष्य में पशुता बढ़ रही है। मनुष्य को शिक्षा मनुष्य बनाती है लेकिन अब तो शिक्षा भी मनुष्य को मनुष्य बनाने का कार्य नहीं कर रही है। शिक्षा अब धनोपार्जन का ही साधन बनी हुई है। शिक्षा में संस्कार  गौण होते जा रहे हैं। मनुष्य का मनुष्य से विश्वास कम हो रहा है। काम कोध शमन करने वाली पाठशालाए खत्म हो रही हैं।           - पारस राज, एडवोकेट 

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आभासी दुनिया से अमानवीय तरीका अपना रहा मानव
खून के रिश्ते क्या किसी भी व्यक्ति की हत्या करने का कार्य समाज में घृणित और निंदनीय है। वर्तमान समय में जिस प्रकार से हमारा भौतिक विकास हो रहा है। अपने नैतिक विश्वासों और नैतिक संस्कारों से दूर चले जा रहे हैं। आधुनिक गैजेट और विभिन्न सोशल मीडिया के प्लेटफार्म है जिसमें हत्या करना, क्रूरता सिखा रहे हैं। जिससे समाज में एक मानसिक विकृत विकसित हो रही है। खासकर युवाओं में आज युवा यूट्यूब से चाकू चलाने से लेकर हत्या करने के विभिन्न तरीके खोजता है।  सोशल प्लेटफार्म इस तरह के अपराध को बढ़ावा देनी वाली साइट बंद होनी चाहिए। आभासी संसार ने हमारी वास्तविक दुनिया से दूरी बना दी है। लोग आभासी दुनिया में जी रहे हैं। जिसमें रिश्ते नाते सब भूल कर अपने में मगन रह रहे है। इससे शव को कटर से काटने जैसी प्रवृतियां विकसित हो रही है। आज फोन पर बैठा व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है और सामने बैठा व्यक्ति कम महत्वपूर्ण हो जाता है। बाजारवाद, भौतिकवाद ने मनुष्य के रिश्तों को खत्म कर दिया है।  करुण संवेदनशीता का आधार है उसको लोग छोड़ते जा रह है। लोगों में करुणा दूर चली गई जिससे मनुष्य क्रूर प्रवृति और विकृत मानसिकता का धारण कर रहा है।
- अंबिका दत्त, समाज शास्त्री

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मृत शरीर के साथ दुर्व्यहार दंडनीय अपराध
वर्तमान में समाज में घिनौने तरीके से पारिवारिक रिश्तों का खून किया जा रहा है। और शव के साथ जिस प्रकार से दुर्गति की जा रही इस पर रोक लगनी चाहिए । कानून में  दुनिया के हर धर्म में अपने धार्मिक रीति रिवाजों से शव का क्रियाकर्म कर शव को सम्मान दिए जाने की सदियों से परंपरा है कानून भी इसका समर्थन करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 ने जीवन को केवल मृत्यु तक ही सीमित नहीं माना बल्कि मृत्यु उपरांत सम्मान पूर्वक अंत्येष्टि को समाहित करते हुए इसे और भी व्यापक बनाया है  इस प्रकार संविधान में मृतक का सम्मानपूर्वक दाह संस्कार भी एक अधिकार है, मृत शरीर एक साक्ष्य होता है उसके साथ दुर्व्यवहार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 201 के तहत दंडनीय अपराध माना गया है।  शव की दुर्गति करना मनुष्य स्वभाव के विपरीत  होने से धार्मिक दृष्टि के तहत  ये अधर्म एवं पाप भी है। आज कल जो इस तरह की घटनाएं हो रही हैं इसमें कहीं सहनशीलता की कमी, कहीं अहंकारी प्रवत्ति तो कहीं हिंसात्मक फिल्मों से प्रभावित हो कर खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की प्रवृति जैसे कारण सामने आते हैं। 
- प्रतिभा दीक्षित, एडवोकेट 

मानवीय रिश्तों को तार-तार करने वाली ऐसी घटनाएं  बेहद दुखद एवं दुर्भाग्य जनक हैं। एक तरह से ऐसी घटनाएं मनवीय मूल्यों के पतन की पराकाष्ठा है। ऐसा घृणित को कोई मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति ही कर सकता है। ऐसी घटनाएं सामान्य पुरुष के द्वारा किया जाना कल्पना से परे है। इसलिए समाज शास्त्रियों एवं मनो वैज्ञानिकों के लिए चिंतन का विषय है और वे कोई ऐसी रहा दिखाएं जिससे ऐसी घृणित घटनाआें पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके। 
- केसर सिंह शेखावत, एसपी कोटा 

ऐसी घटनाएं दुखद हैं, जो कि झकझोर देने वाली हैं, ऐसी घटनाआें का प्रकाशन ज्यादा विस्तार से नहीं किया जाना चाहिए। सूक्ष्म घटनाक्रम ही दिया जाना चाहिए।  जिससे उनके तौर तरीकों को ना समझ सके तथा घटना बताए लेकिन उसके तौर तरीकों में संयम बरतना जरुरी है, ताकि लोग दुष्प्रेरणा ना लें। 
- प्रसन्न कुमार खमेसरा आईजी कोटा रेंज कोटा 

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