इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल
ये मन का उलझना है या किस्मत का खेल
दो दिन की है जिंदगी हंस कर गुजार दानिश, वरना बहारें गुलशन कहीं नाराज हो ना जाए। हर दिन कुछ नया होता है और कभी ऐसा भी वक्त आता है कि हर दिन एक सा लगता है।
जयपुर। दो दिन की है जिंदगी हंस कर गुजार दानिश, वरना बहारें गुलशन कहीं नाराज हो ना जाए। हर दिन कुछ नया होता है और कभी ऐसा भी वक्त आता है कि हर दिन एक सा लगता है। ये मन का उलझना है या किस्मत का खेल, किसे पता, लेकिन सात दिनों की ये रवायत न कभी खत्म हुई है और न होगी। पूजा हो या इबादत, जन्मदिन हो या शादी, मौत हो या बरसी, ये दिन जिंदगी और यादों की वो कड़ी है, जिनके बिना जीवन अधूरा है। हम ऐसी ही फिल्मों का जिक्र करेंगे जिनका नाम और कहानी दिनों पर आधारित हैं।
सन-डे : अजय देवगन, आयशा टाकिया की ये कॉमेडी सस्पेंस फिल्म एक मर्डर केस और भूली हुई यादाश्त की कहानी है, जो संडे को स्ट्रेस डे बना देती है ।
वन फाइन मंडे : शेखर सुमन की ये कॉमेडी फिल्म डॉन के शरीफ बनने की कोशिश की कहानी है, जो मंडे को अपने मरते हुए पिता से वादा करता है कि वो सब कुछ लीगल करेगा, लेकिन वो करता कुछ है, होता कुछ है ।
ट्यूजडे और फ्राइडे : जिंदगी बहुत व्यस्त रहती है। यहां प्यार के लिए भी वक्त पहले से तय करना पड़ता है। ये दो दिन जब लव कपल हर सप्ताह मिलते हैं तो इस लव स्टोरी में उनके जीने का नजरिया ही बदल जाता है।
अ-वेडनेसडे : नसीरुदीन, अनुपम खेर की ये फिल्म आम आदमी और आतंकवाद से जुड़े दर्द को बयां करती है कि एक दिन जब आम आदमी की सनकती है, तो वो क्या-क्या कर सकता है।
अ-थर्सडे : यामी गौतम की ये फिल्म एक रेप विक्टम की, उसके ट्रॉमा की कहानी है, जिसमे वो दोषियों को सजा दिलाने के लिए खुद कानून हाथ में ले मासूम बच्चों को होस्टेज बना लेती है और थर्सडे उसका जस्टिस डे बनता है।
ब्लैक फ्राइडे : ये कहानी उस खौफनाक मंजर और दर्द को बयां करती है, जिसे इस दिन अंजाम दिया गया था। मानवता और इंसानियत पर उठा ऐसा सवाल जिसका जवाब किसी के पास नहीं है।
दी-सैटरडे नाइट : ऐसा दिन जहां सब वीकेंड प्लान करते हैं, रिलेक्स रहते हैं। वही अगर इस दिन कुछ ऐसा हो कि सब गड़बड़ हो जाए, शनि की नजर टेढ़ी पड़ जाए, तो फिर सब कुछ उलझ जाता है।
बहरहाल हर दिन कुछ खास होता है और यही खास दिन यादों की किताब को संजोए रखता है और दिनों के यही तजुर्बे जिंदगी जीना सीखाते है।
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