जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

इन दिनों जोधपुर वाले अशोकजी भाईसाहब की बदली बॉडी लैंग्वेज को लेकर हाथ वाले कई वर्कर रात-दिन माथा लगा रहे हैं, मगर उनके समझ में नहीं आ रहा है कि इसके पीछे का राज क्या है।

बदलती बॉडी लैंग्वेज
इन दिनों जोधपुर वाले अशोकजी भाईसाहब की बदली बॉडी लैंग्वेज को लेकर हाथ वाले कई वर्कर रात-दिन माथा लगा रहे हैं, मगर उनके समझ में नहीं आ रहा है कि इसके पीछे का राज क्या है। वे इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने से लेकर सचिवालय तक सूंघासांघी कर रहे हैं, मगर उनकी पार नहीं पड़ रही। अब उनको कौन समझाए कि भाईसाहब जो काम लेफ्ट हेंड से करते हैं, तो राइट हेंड तक को पता नहीं चलने देते। साहब की बदली बॉडी लैंग्वेज से लगता है कि साहब की हर मंशा पूरी हो गई है, और तो और उनको जिनको मैसज देना था, वो साढ़े तीन साल पहले ही दे दिया। राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं है। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

अब नजरें मशाल पर टिकी
सूबे में हाथ वाले भाई लोगों में पिछले साढ़े तीन साल से सब कुछ ठीक नहीं है। दो धड़ों में बंटे लीडर्स को कुर्सी का रोग जो लगा हुआ है। सोते-जागते और खाते-पीते वक्त भी उन्हें सिर्फ कुर्सी दिखाई देती है। इस रोग को ठीक करने के लिए दिल्ली से कई बड़े वैद्य भी आए, मगर वे भी ठीक नहीं कर पाए। मेष राशि वाले एक वैद्यजी तो खुद ही बीमारी को लेकर बैकफुट पर चले गए। पंजाब से आए सरदारजी भी केवल नाड़ी टटोलने में ही अपना टाइम पास कर रहे हैं। ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के बाद यूथ लीडर को तो यह रोग और भी बढ़ गया। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर चर्चा है कि अब तो सबकी नजरें आषाढ़ कृष्ण अष्ठमी वाले संडे को जलने वाली मशाल पर टिकी है। अगर उस दिन यूथ की आड़ में एक धड़ा अलग हुआ तो चुनावी जंग में मशाल के साथ भी कंडीडेट नजर आए बिना नहीं रहेंगे।

बैठे ठाले क्या करें...
बैठे ठाले क्या करें, करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी ले भगवन का नाम। इस कहावत का सूबे में असर कुछ उलटा ही नजर आ रहा है। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने के साथ सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में इन ठाले बैठे लोगों को लेकर कइयों के चेहरों पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। चिंता भी लाजमी है, चूंकि ठाले बैठे लोग कोई न कोई खुरापात किए बिना नहीं रहते। सो उनको कोई काम धंधा नहीं मिला, तो अगस्त के बाद अपना असर दिखाए बिना नहीं रहेंगे। वैसे ठाले बैठे लोगों की सूचियां बनाने के साथ ही उन पर नजर रखना जारी है।

चर्चा खुशबू की
सूबे में इन दिनों हर गली मौहल्ले में खुशबू को लेकर चर्चाएं जोरों पर है। दोनों दलों के साथ थर्ड फ्रंट के ठिकाने पर भी इसकी चर्चा हुए बिना रह सकती। जुमला है कि चुनावी जंग में जोधपुर वाले भाईसाहब का ओपीएस एंड आरटीएच का नया पैंतरा कामयाब होगा या नहीं, मगर 76 सालों में पहली बार अपर क्लास की भी पूछ हुई है। वरना अब तक सभी योजनाएं उनसे कोसों दूर थी। हाथ वाले भाई लोगों के पैर तो जमीन पर ही नहीं टिक रहे। ठिकाने पर आने वाले हर किसी को छाती ठोक कर सुनाते हैं कि जो खुशबू इस बार हाथ से आ रही है, वह कमल नहीं दे सका। सो इस खुशबू का असर तो जाड़ों में दिखाई देगा।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि प्रेशर पॉलिटिक्स को लेकर है। जुमले से इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी का ठिकाना और सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा का दफ्तर भी अछूता नहीं है। जुमला है कि इन दिनों दोनों तरफ प्रेशर पॉलिटिक्स करने वालों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हाथ वाले भाई लोगों में नए दल के गठन की अफवाह फैला कर प्रेशर पॉलिटिक्स की जा रही है, तो भगवा वाले दल में नए चेहरों के नाम से राजनीतिक दबाव बनाने के लिए पसीने बहा रहे हैं। अब हाथ वाले भाई लोगों को कौन समझाए कि मानेसर का प्रेशर ही फेल हो गया, तो दूसरा प्रेशर भी काम नहीं करेगा। भगवा वाले भाई लोगों को तो नए चेहरे की तलाश में वैसे ही पसीने छूट रहे हैं।

-एल.एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं) 

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