जानिए राजकाज में क्या है खास?

जानिए राजकाज में क्या है खास?

सूबे में हाथ वाली पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। दो खेमों में बंटे भाई लोग आपस में दो-दो हाथ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वैसे तो खुद को पार्टी का वफादार वर्कर साबित करने के लिए रात दिन बढ़कर दावे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनको अपने स्वार्थ के सिवाय 136 साल पुरानी पार्टी की इमेज से कोई लेना देना नहीं है।

एल एल शर्मा
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यह तो होना ही था

सूबे में हाथ वाली पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। दो खेमों में बंटे भाई लोग आपस में दो-दो हाथ करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वैसे तो खुद को पार्टी का वफादार वर्कर साबित करने के लिए रात दिन बढ़कर दावे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनको अपने स्वार्थ के सिवाय 136 साल पुरानी पार्टी की इमेज से कोई लेना देना नहीं है। कोरोना काल में ठाले बैठे राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि यह तो होना ही था, चूंकि गुजरे जमाने में जिसने जिसके साथ जो किया, वह उसको भूल नहीं पा रहे हैं। एक खेमे के मंसूबे पूरे होते दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो दूसरा खेमा हर गलती की कीमत भुगताने पर अड़ा हुआ है। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि दिल्ली वालों के सामने एमएलएज की संख्या बल की मजबूरी है, इसलिए दस महीनों से चुप्पी साधे बैठे हैं, वरना जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब का विरोध करने वालों के पास 54 का आंकड़ा होता, अब तक सपने भी पूरे हो जाते।

गोविन्द के दरबार में खाकी
इन दिनों सूबे की राजधानी पिंकसिटी में खाकी वाले साहब लोग गोविन्द के दरबार में कुछ ज्यादा हाजरी दे रहे हैं। दे भी क्यों नहीं, आखिरकार कोरोना में भी गाइडलाइन की पालना कराने की जिम्मेदारी भी सिर पर जो है। हिन्दू-मुस्लिमों के फेर में फंसे नेता लोग कब क्या करवा बैठे, इसका कोई पता नहीं। घर की खीज सड़कों पर उतारने वाले कुछ नेताओं के चक्कर में खाकी वाले साहब लोगों का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई है। अब बेचारों के सामने गुलाबीनगर में अमन-चैन बनाए रखने के लिए गोविन्द दरबार के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है। सो कई साहब लोग तो बड़ी चौपड़ से गोविन्द के दरबार में नंगे पैर जाकर धोक देने में ही अपनी भलाई समझते हैं।

बिगड़ा चन्द्रमा
जयपुर ग्रेटर की सौम्य स्वभाव वाली फर्स्ट लेडी का चन्द्रमा अभी सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा। आठ महीने से आए दिन कुछ न कुछ पंगे से सामना करना पड़ता है। पहले हाथ वाले भाई लोगों ने पसीने छुडाए तो अब बड़े साहब से 36 के आंकड़े ने परेशान कर रखा है। पहले वाले साहब तो दस हजार तक की फाइल भी मेयर तक भेजते थे, लेकिन जब से चन्द्रमा बिगड़ा है, तब से यज्ञ और मित्र शब्द के साथ सिंह बने देव साहब बड़ी-बड़ी फाइलें भी खुद ही निपटा रहे हैं। और तो और विद्याधरनगर से कब्जे हटाने का भूत भी शहर की सड़कों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय भवन तक जा पहुंचा। अब बेचारी देवनारायण वंशज फर्स्ट लेडी चन्द्रमा सुधारने के लिए कई मंदिरों धोक दे चुकी हैं।

अब लगे पंख
पांच प्रदेशों के चुनाव खत्म होने के साथ ही सूबे के नेताओं के पंख लग गए हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ के दफ्तर में चर्चाएं बढ़ने के साथ ही लाइन में लगे भाइयों के दिल की धड़कनें बढ़ गई। गांधी टोपी वाले बुजुर्गवान का दावा है कि एक जून से 31 जुलाई के बीच बहुत कुछ होगा। कई महीनों से पॉलिटिकल अपॉइंटमेंट का इंतजार खत्म होने के साथ ही मंत्रिमंडल का बैलेंस भी ठीक होगा। पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों को हरा कर उन्हीं की छाती पर मूंग दलने वालों से भी निजात मिलेगी। बुजुर्ग की बातें सुन कई भाई लोग हवा में उड़ते दिख रहे हैं।

एक जुमला यह भी
सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के दफ्तर में एक चर्चा जोरों पर है। चर्चा भी अपनों को लेकर है। ढाई साल से वेटिंग सीएम के फेर में फंसे पार्टी के नेता अपनी भूमिका तक को भूल गए। राज का आधा काल गुजरने पर भी उनकी जुबान बंद है। गुलाबीनगरी के बाद नवाबों के शहर में भी नेताओं के नाम पर मोहर लगाने के लिए दोनों तरफ से जोर आजमाइश की गई, मगर जेपी का दिल अभी भी नहीं पसीजा। ठाले बैठे भाईसाहबों के पास राम नाम की माला जपने के अलावा कोई काम भी नहीं है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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