नहर में 150 किलो वजनी मगरमच्छ और घर में आ धमका 60 किलो का कछुआ
वन विभाग की टीम ने किया रेस्क्यू
विभाग द्वारा हर साल करीब 80 से 90 मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जाता है।
कोटा। शहर में शुक्रवार की शाम चर्चित रही। एक ही दिन में दो अलग-अलग जगहों पर वन्यजीवों की मौजूदगी ने लोगों को हैरत में डाला तो वहीं, दहशत का भी माहौल बना रहा। हुआ यूं, देर शाम को नांता से गुजर रही पाटन नहर में 150 किलो वजनी मगरमच्छ आने से राहगीरों में हड़कम्म मच गया। वहीं, मोहनलाल सुखाड़िया आवासीय कॉलोनी में 60 किलो वजनी कछुआ आ धमका। जिसे देखने के लिए रहवासियों की भीड़ लग गई। पुलिस की सूचना पर मौके पर पहुंचे वन कर्मियों ने नहर में उतरकर जान जोखिम में डालकर मगरमच्छ को रेस्क्यू किया। बाद में कछुए को भी कब्जे में लेकर चिड़ियाघर पहुंचाया।
नहर में उतरकर पकड़ा 10 फीट लंबा मगरमच्छ
वनकर्मी धर्मेंद्र चौधरी ने बताया कि शुक्रवार देर शाम 6.30 बजे नांता स्थित पाटन नहर में मगरमच्छ दिखाई देने की पुलिस से सूचना मिली थी। इस पर 15 मिनट में टीम मौके पर पहुंची और मगर को रेस्क्यू करने की कवायद शुरू की। मगर करीब 10 फीट लंबा था और पानी में तैर रहा था। उसे पकड़ने के लिए कर्मचारियों को जान हथेली पर रख नहर में उतरना पड़ा। जैसे ही नहर में कदम रखा तो वह अटैक करने को झपट्टा लेकिन एन वक्त पर बाहर निकलकर जान बचाई। बाद में फिर से नहर में उतरे और सिर पर बोरी फैंककर रेस्क्यू करने की कोशिश की लेकिन वह काबू में नहीं आया। अंधेरा होने के कारण वह दिखाई भी नहीं दे रहा था। मोबाइल की टॉर्च में उसे पकड़ने का प्रयास जारी रखा। इस बीच उसने कई बार हमला करने का प्रयास किया।
200 मीटर पानी में इधर-उधर भागा मगर
चौधरी ने बताया कि मगरमच्छ 150 किलो वजन था। रस्सियों का फंदा बनाकर टीम ने दोनों तरफ से घेराबंदी कर उसके ऊपर फेंके। बमुशिकल वह फंदे में फंसा। जिसे खींचकर नहर से बाहर निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। नहर में उतरने के दौरान वनकर्मियों के कांच के टुकटे और कांटे लगने से पैर जख्मी हो गए। मौके पर लोगों की भीड़ तमाशबीन बनी रही लेकिन कोई भी मदद को आगे नहीं आया। भारी-भरकम मगरमच्छ को उठाकर गाड़ी में रख देवलीअरब क्रोकोडाइल प्वाइंट की ओर रवाना किया। इस दौरान रेस्क्यू में धर्मेंद्र चौधरी, वीरेंद्र सिंह, महावीर व होमगार्ड मौजूद थे।
वनकर्मियों के पास नहीं साधन-संसाधन
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार विभाग द्वारा हर साल करीब 80 से 90 मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जाता है। रेस्क्यू के दौरान लोगों की अनावश्यक मौके पर जमा भीड़ परेशान करती है। रेस्क्यू में सहयोग नहीं करते। उन्होंने बताया कि टीम के पास न तो रेस्क्यू वाहन है और न ही साधन-संसाधन उपलब्ध हैं। रस्सियां भी खुद वनकर्मी अपने खर्चे से खरीदते हैं। विभाग को वन्यजीवों के रेस्क्यू के लिए जाल, रस्सियां, वाहन सहित अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध करवाना चाहिए।
वन्यजीव प्रेमियों ने दिए सुझाव
- नहर व नाले किनारे तार फेंसिंग की जाए।
- वन विभाग को साधन-संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाई जाए।
- जितने हो सके उतने हेल्पलाइन नम्बर बांटना चाहिए।
- एक से ज्यादा क्रोकोडाइल रेस्क्यू टीम बनाई जाए।
- वन्यजीव विभाग रेस्क्यू के दौरान मगरमच्छों पर टेगिंग जरूर करवाएं।
- नहर व नालों में मृत जीव-जंतु, जानवर, मटन-चिकन के अवशेष व खाद्य सामग्री न फेंकी जाए।
- जब मगरमच्छों को भोजन नहीं मिलेगा तो वह आबादी क्षेत्रों से सटे नहर-नालों में नहीं आएंगे।
- इनके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखा जाए।
- इनके संरक्षण व भोजन की नियमित व्यवस्था की जाए।
कॉलोनी में घुसा 60 किलो वजनी कछुआ
नांता पुलिस थाने के एएसआई दुर्गालाल ने बताया कि नहर में मगरमच्छ रेस्क्यू करने के दौरान मोहनलाल सुखाड़िया आवासीय कॉलोनी की सी-ब्लॉक में भारी-भरकम कछुए की सूचना मिली। इस पर वन विभाग की टीम तुरंत मौके पर पहुंची। जहां से उसे रेस्क्यू कर नयापुरा स्थित चिड़ियाघर में रिलीज किया। एएसआई दुर्गालाल ने बताया कि वे शाम को इलाके में गश्त कर रहे थे, तभी पाटन नहर में 10 फीट लंबे मगरमच्छ होने की सूचना मिली। इस पर उन्होंने वन विभाग की टीम को मौके पर बुलाकर मगरमच्छ व कछुए दोनों का रेस्क्यू करवाया। वन रक्षक धर्मेंद्र ने बताया कि इतने बड़े कछुआ को पहली बार रेस्क्यू किया है। कछुआ कॉलोनी के खाली पड़े भूखण्ड में था। मकान में दरवाजे भी नहीं है। संभवत: वह आसपास के नदी-नाले से होता हुआ यहा पहुंचा होगा। भारी भरकम कछुए को देखने के लिए लोगों में उत्सुकता नजर आई।
बारिश के दिनों में खेतों में पड़े रहते हैं मगरमच्छ
बारिश के दिनों में बैराज के गेट खुलने से चंबल की दांई व बाईं मुख्य नहर में पानी की आवक बढ़ जाती है। जिससे नाले में उफान आ जाता हैं और पानी ओवरफ्लो होकर खेतों में भर जाता है। वहीं, तेज बहाव से बचने के लिए मगरमच्छ खेतों की ओर रुख करते हैं। पानी उतरने के बाद मगरमच्छ खेतों से आबादी क्षेत्रों में घुस जाते हैं। वन विभाग की रेस्क्यू टीम हर साल करीब 90 से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू कर सावनभौदोें डेम में शिफ्ट करती है।
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर

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