असर खबर का - मतदान बहिष्कार का निर्णय लिया वापस
अधिकारियों के आश्वासन पर माने ग्रामीण: विस्थापन मामले के विरोध में ग्रामीणों की आमसभा में पहुंचे अधिकारी
दैनिक नवज्योति ने ग्रामीणों की आमसभा की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
रावतभाटा। रावतभाटा तहसील क्षेत्र की आठ ग्राम पंचायतों के सभी गांवों को मुकुंदरा टाइगर हिल्स में शामिल किए जाने संबंधी अधिसूचना के विरोध में शुक्रवार को आयोजित ग्रामीणों की आमसभा की सूचना के बाद अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए। आनन फानन में रावतभाटा उपखंड अधिकारी दीपक सिंह खटाना, डीएसपी प्रभुलाल कुमावत, भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य रेंजर दिनेश नाथ ने मौके पर पहुंचकर ग्रामीणों व सरपंचों से समझाइश की। इसके बाद ग्रामीणों ने अधिकारियों को समस्या समाधान का समय देते हुए चुनावों के अपने बहिष्कार के ऐलान को वापस लिया। ग्रामीणों ने बताया कि उपखंड तहसील क्षेत्र की आठ ग्राम पंचायतों को मुकुंदरा टाइगर हिल्स में शामिल किए जाने संबंधी अधिसूचना से इन आठों ग्राम पंचायतों के 33 गांवों के करीब 20 हजार ग्रामीणों के सामने विस्थापन की समस्या पैदा हो गई है। इसके विरोध में 7 नवम्बर को ग्रामीणों तथा सरपंचों ने अतिरिक्त जिला कलक्टर मुकेश कुमार मीणा को ज्ञापन के माध्यम से समस्या से अवगत कराया था। इस मामले में सैंकड़ों ग्रामीणों ने शुक्रवार को मंडेसरा के भीम चौराहे पर एकत्रित होकर आमसभा की। आमसभा के माध्यम से 25 नवंबर को होने वाले वाले राजस्थान विधानसभा के चुनाव का बहिष्कार का निर्णय लिया गया। वक्ताओं ने आमसभा में सभी आठ ग्राम पंचायतों को मुकुंदरा टाइगर हिल्स में शामिल किए जाने संबंधी अधिसूचना को लेकर आक्रोश जताया। इन ग्राम पंचायतों के सरपंच और ग्रामीणों ने कहा कि आठ ग्राम पंचायतों के 33 गांवों को मुकुंदरा टाइगर हिल्स में शामिल करने संबंधी अधिसूचना को लेकर आपत्ति जताने के बाद भी अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है। जिससे गुस्साए लोग यहां आमसभा में पहुंचे और अधिसूचना को निरस्त कराकर 33 गांवों के 20 हजार लोगों को उनका हक दिलवाने की मांग उठाई। सभी सरपंचों और लोगों का कहना था कि जब तक उन्हें उनका हक नहीं मिल जाता, तब तक चुनाव का बहिष्कार जारी रहेगा। आमसभा की सूचना मिलते ही रावतभाटा उपखंड अधिकारी दीपक सिंह खटाना, डीएसपी प्रभुलाल कुमावत, भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य रेंजर दिनेश नाथ मौके पर पहुंचे। वहां ग्रामीणों व सरपंचों से समझाइश कर चुनाव बहिष्कार की घोषणा को वापस करवाया गया।
अधिकारियों के आश्वासन पर माने ग्रामीण
आमसभा में पहुंचे प्रशासनिक अधिकारियों ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि उनकी आठ ग्राम पंचायतों की समस्या का समाधान करेंगे। इस आश्वासन के बाद ग्रामीणों तथा सरपंचों ने चुनाव बहिष्कार के अपने निर्णय को वापस ले लिया। अधिकारियों ने आने वाले दो महीने में समस्या के समाधान का प्रयास करने का आश्वासन दिया।
इन मांगों को लेकर आंदोलित हैं ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि हमारी मुख्य मांगों में इन क्षेत्रों को धारा 20 से बाहर करवाकर मूलभूत सुविधाएं बिजली, पानी, सड़क उपलब्ध कराने, ग्रामीणों को काश्त की जमीन का मूल मालिक बनाकर हक दिलाने, ग्रामीणों द्वारा वन क्षेत्र में पशुओं को चराने के लिए रास्ता देने, जिन ग्रामीण क्षेत्रों जंबूदीप के खेतों पर बाउंड्रीवॉल बना दी है, उसे तुरंत प्रभाव से हटवाकर काश्तकार को खेती करने की अनुमति देने आदि मांगें शामिल हैं।
उपखंड अधिकारी ने रेंजर को दिए निर्देश
ग्रामीणों की मांगों पर मौके पर ही उपखंड अधिकारी दीपक सिंह खटाना ने वन विभाग भैंसरोड़गढ़ रेंजर दिनेश नाथ को सभी समस्याओं के समाधान तथा निवारण के निर्देश दिए। इस पर रेंजर दिनेश नाथ ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि उनके साथ किसी भी प्रकार से गलत मंशा से कोई कार्य नहीं होगा। न ही किसी काश्तकार की भूमि को कब्जे में लिया जाएगा। पूर्व अधिसूचना के अन्तर्गत स्वैच्छिक विस्थापन ही होगा।
आमसभा में यह रहे मौजूद
आमसभा में ग्राम पंचायत मंडेसरा सरपंच शिवराज, ग्राम पंचायत लुहारिया के सरपंच राधेश्याम, ग्राम पंचायत श्रीपुरा की सरपंच मनीषा, ग्राम पंचायत भैंसरोडगढ़ सरपंच रूकमणी बाई, ग्राम पंचायत कुशलगढ़ सरपंच लीला बाई, ग्राम पंचायत सणीता सरपंच मांगीलाल, पूर्व सरपंच मंडेसरा जमनालाल चौधरी समेत सैंकड़ों ग्रामीण मौजूद रहे।
दैनिक नवज्योति की खबर से हरकत में आया प्रशासन
गौरतलब है कि दैनिक नवज्योति में अपने आठ नवंबर के अंक में ग्रामीणों के विस्थापन की इस समस्या को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था। इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने आनन फानन में मतदान के बहिष्कार को टालने का प्रयास शुरू कर दिया। 17 नवंबर के अंक में भी दैनिक नवज्योति ने ग्रामीणों की आमसभा की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इसी के बाद प्रशासनिक अधिकारियों की नींद टूटी। आनन फानन में ग्रामीणों से समझाइश कर मतदान बहिष्कार को टाला। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ आश्वासन है। समस्या के स्थायी समाधान की अधिकारियों की कोई मंशा नजर नहीं आ रही है।
सन 1981-82 में जब सेंक्चुअरी का निर्माण किया गया था, तबसे यह समस्या चली आ रही है। विगत कितने ही वर्ष होने के उपरांत भी सेंक्चुअरी, वन विभाग और ग्रामीणों की यह समस्या आज भी जस की तस है। इसका समाधान तब भी नहीं हुआ। आज भी केवल आश्वासन ही दिया गया है।
- जमनालाल चौधरी, पूर्व सरपंच, मंडेसरा

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