बेजुबानों की सांसों में घुल रहा जहर, सोलर या ईवी हो सकते हैं मददगार

चारों रिजर्व को मिलाकर एक राउंड पर ही औसत 28 से 30 लीटर पेट्रोल की होती खपत

बेजुबानों की सांसों में घुल रहा जहर, सोलर या ईवी हो सकते हैं मददगार

प्रदेश के चारों टाइगर रिजर्व में पेट्रोल व डीजल वाहनों से करवा रहे सफारी।

कोटा। प्रदेश के टाइगर रिजर्व में ट्यूरिज्म के नाम पर जंगल और वन्यजीवों को प्रदूषण बांटा जा रहा है। जंगल की आबोहवा दूषित हो रही है। वन्यजीवों की सांसों में जहर घुल रहा है और जिम्मेदार बेखबर हैं। 

दरअसल, राज्य के चारों टाइगर रिजर्व रणथम्भौर, सरिस्का, रामगढ़ व मुकुंदरा में टाइगर सफारी के लिए पेट्रोल व डीजल वाहनों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनाऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें जंगल के वातावरण में फैल रही है। जिसका विपरीत असर वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसे में जंगल और जानवरों को प्रदूषण के काले साय से बचाने में इलेक्ट्रिक व सौलर वाहन कारगर साबित हो सकते हैं। वन्यजीव प्रेमियों में मध्यप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान के टाइगर रिजर्व में इलेक्ट्रिक वाहनों से सफारी करवाए जाने की कार्ययोजना तैयार करने की मांग उठने लगी है। 

एक सफारी पर 70 किलो कार्बनडाइ ऑक्साइड 
प्रदेश के चारों टाइगर रिजर्व में 646 वाहनों से पर्यटकों को टाइगर सफारी करवाई जाती है। इनमें पेट्रोल से चलने वाली जिप्सी व डीजल  चलित कैंटर शामिल हैं। सभी रिजर्व के सफारी रुट की दूरी को मिलाकर औसत एक सफारी राउण्ड ही करीब 120 किमी होता है।  जिसे पूरा करने में औसत 28 से 30 लीटर पेट्रोल की खपत होती है। ऐसे में 30 लीटर पेट्रोल से 120 किमी की दूरी तय करने में 70 किलो कार्बनडाइ ऑक्साइड वाहन के साइलेंसर से हवा में फैलती है। यह स्थिति को एक ही राउण्ड की है। जबकि, प्रतिदिन कई राउण्ड सफारी होती है। ऐसे में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जाता है। यदि,  इलेक्ट्रिक वाहन चलाए जाएं तो वायु व धवनी प्रदूषण से जानवरों को बचा सकते हैं। रणथम्भौर व सरिस्का रिजर्व में औसत एक रूट 40 किमी तो रामगढ़ व मुकुंदरा में 20-20 किमी होता है। 

प्रत्येक राउण्ड पर जंगल में घुल रही 70 किलो कार्बनडाई ऑक्साइड
646 - कुल वाहन
270 - रणपथम्भौर में जिप्सी
287 - रणपथम्भौर में कैंटर
50 - सरिस्का में जिप्सी 
30 - सरिस्का में कैंटर
01 - मुकुदंरा में जिप्सी
08 - रामगढ़ में जिप्सी

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इलेक्ट्रिक वाहनों से यह होगा फायदा
टाइगर सफारी के लिए इलेक्ट्रिक व सौलर वाहनों का उपयोग  होने से वायु व ध्वनी प्रदूषण से वन्यजीवों को राहत मिलेगी। वहीं, ईवी वाहनों से शोर नहीं होने से उनका रहवास सुरक्षित रहेगा। प्रदूषण नहीं होगा तो उनकी जीवन शैली स्वस्थ होगी। साथ ही पलायन रुकेगा और धुएं से होने वाली विभिन्न बीमारियों से बच सकेंगे। इसके अलावा वाहन चालकों का पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला खर्चा बचने से आर्थिक फायदा होगा। 

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वन्यजीवों को यह हो रहा नुकसान 
पर्यटकों को टाइगर दिखाने की होड़ में जिप्सी व कैंटर दौड़ाए जा रहे हैं। धुएं के रूप में निकलती जहरीली गैसें प्रकृति के स्वच्छ वातावरण को दूषित कर ही है। वाहनों के शोर-शराबे से जंगल की शांत फिजा अशांत होती है। वन्यजीव स्ट्रेस में रहते हैं और सुरक्षित रहवास की तलाश में पलायन को मजबूर होते हैं। प्रदूषण से उनकी रोग प्रतिरोधक व प्रजन्न क्षमता घटती है। साथ ही जीवन शैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

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यूं समझें प्रदूषण का गणित 
आरटीयू के प्रोफेसर आनंद चतुर्वेदी ने बताया कि एक लीटर पेट्रोल को जलाने के लिए इंजन को 11 किलो हवा चाहिए होती है। ऐसे में औसत 30 लीटर पेट्रोल को बर्न करने में वाहन के इंजन को 330 किलो हवा की जरूरत होती है। ऐसे में 1 लीटर पेट्रोल  जलने से वाहन का साइलेंसर 2.31 किलो कार्बनडाई ऑक्साइड   हवा में छोड़ता है। वहीं, 30 लीटर पेट्रोल को बर्न करने में करीब 70 किलो कार्बनडाई ऑक्साइड हवा घुल जाएगी। वहीं, 1 लीटर डीजल के बर्न होने पर 2.68 किलो कार्बनडाइ ऑक्साइड जनरेट होती है। इस तरह 30 लीटर डीजल पर करीब 80 किलो से ज्यादा यह जहरीला धुआं जंगल में घुल जाता है। यह गणना चारों टाइगर रिजर्व की एक सफारी ट्रिप की कुल औसत 120 किमी दूरी को तय करने में खर्च होने वाले करीब 30 लीटर पेट्रोल के अनुसार की गई है। 

क्या कहते हैं वन्यजीव प्रेमी
मध्य प्रदेश में 27 टाइगर रिजर्व और 11 नेशनल पार्क हैं। जहां सफारी के लिए पेट्रोल-डीजल वाहनों को इलेक्ट्रिक व सौलर वाहनों पर शिफ्ट करने की योजना तैयार की जा रही है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह बदलाव करने की कोशिश हो रही है। ऐसे में एमपी की तर्ज पर राजस्थान के टाइगर रिजर्व में भी ईवी वाहनों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जिससे वन और वन्यजीवों को प्रदूषण से बचाया जा सकता है।                        - एएच जैदी, नेचर प्रमोटर

नि:संदेह ईवी वाहनों का चलन पर्यावरण संरक्षण के लिए कारगर विकल्प बनेगा। वन्यजीव बेहद संवेदनशील होते हैं, उनकी सुनने की क्षमता इंसानों से अधिक होती है। जब पेट्रोल-डीजल गाड़ियों का काफिला आता है तो इंजन के शोर से वन्यजीव परेशान होते हैं। ध्वनी व वायू प्रदूषण से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। प्रजन्न क्षमता पर भी विपरीत असर पड़ता है। अधिकतर वाहनों का मेंटिनेंस सही नहीं होने से काला धुआं ज्यादा छोड़ते हैं, जिससे जंगल की वायु दूषित होती है। यदि, इलेक्ट्रिक वाहन चलाए जाएं तो इन सभी परेशानियों से निजात मिलेगी और जानवरों को हैल्दी एनवायरमेंट मिल सकेगा।
- अजय दुबे, वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट भोपाल

जंगल की जमीन समतल नहीं होती, जगह-जगह घाटियां, गड्ढ़े  व उबड़-खाबड़ रास्ते होते हैं। ऐेसे यहां फोर बाई फोर वाहनों की जरूरत होती है। वाहन कम्पनियों को जंगल में चलने लायक वाहन बनाना चाहिए। यह पर्यावरण की दृष्टि से बड़ा कदम साबित होगा।  
- दौलत सिंह शक्तावत, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट1.    

क्या कहते हैं अधिकारी
यह अच्छा सुझाव है। वन्यजीवों की बेहतरी के लिए इन वाहनों को शामिल करना चाहिए। ईवी से जंगल को प्रदूषण और वन्यजीवों को ध्वनी प्रदूषण से बचाया जा सकता है। लेकिन, पावरफुल इंजन के ईवी वाहन जिप्सी के मुकाबले महंगी होने से ऑपरेटर की पहुंच से बाहर हो सकती है।  वाहन कम्पनियों को जंगल में गश्त व सफारी के लिहाज से ऐसे वाहन तैयार करने चाहिए। 
- अभिमन्यू सहारण, उप वन संरक्षक, मुकुंदरा टाइगर रिजर्व

सरकार ने ऐसे वाहन ऑर्डर कर रखे हैं। वैसे, टाइगर रिजर्व में इलेक्ट्रिक व सीएनजी वाहन लगा सकते हैं। लेकिन शर्त यह है कि उसका ग्राउंड क्लियरेंस 180 एमएम का होना चाहिए, तभी गाड़ी जंगल में चल पाएगी। सरकार ईवी विहिक्ल को बढ़ावा दे रही है। पर्यावरण संरक्षण में यह अच्छा सुझाव है। इस संबंध में उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन मांगेंगे।
- संजीव शर्मा, उप वन संरक्षक, रामगढ़ टाइगर रिजर्व बूंदी

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