पूरी क्षमता से नहरों में छोड़ा पानी, फिर भी टेल क्षेत्र प्यासा

फसलों की बुवाई का कार्य पकड़ रहा गति

पूरी क्षमता से नहरों में छोड़ा पानी, फिर भी टेल क्षेत्र प्यासा

किसानों की जरूरत को देखते हुए सीएडी प्रशासन ने नहरी पानी छोड़ने का निर्णय किया था।

कोटा । सीएडी विभाग ने रबी फसलों के लिए पूरी क्षमता से दोनों नहरों में जलप्रवाह शुरू कर दिया है। इसके बावजूद अभी तक टेल क्षेत्र के खेतों तक नहरी पानी नहीं पहुंचा है। सिंचाई के लिए किसानों की नहरी पानी की मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन उन्हें पानी नहीं मिल पा रहा है। जिले के किसानों की मांग को देखते हुए दायीं नहर में 6600 क्यूसेक और बायीं नहर में 1500 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। यानी पूरी क्षमता से नहरें चलाने के बाद भी पानी सभी जगह पर नहीं पहुंच पा रहा है। इससे किसानों को परेशानी हो रही है। रबी फसल 2024-25 के लिए चंबल सिंचित क्षेत्र के कृषकों की मांग के अनुसार गत दिनों चंबल की दायीं नहर और बायीं नहर में जलप्रवाह शुरू किया गया था। अब रबी फसलों की बुवाई का कार्य गति पकड़ने लगा है। इस कारण फसलों में सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होने लगी है। 

एमपी ने देरी से मांगा पानी तो गड़बड़ाया गणित
जिले के अधिकांश क्षेत्रों में तय समय पर रबी फसलों की बुवाई हो गई है। फसलों की बढ़वार अच्छी हो इसलिए नहरी पानी की दरकार थी। किसानों की जरूरत को देखते हुए सीएडी प्रशासन ने नहरी पानी छोड़ने का निर्णय किया था। इधर राजस्थान-मध्यप्रदेश अंतरराज्यीय टेक्निकल कमेटी की बैठक में जल का बंटवारा किया गया था। बैठक में मध्यप्रदेश ने पहले एक नवंबर तक नहरी पानी मांगा था, लेकिन बाद तय समय पर पानी लेने से मना कर दिया। इस कारण दायीं नहर में जलप्रवाह ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सका। मध्यप्रदेश में नहरों की मरम्मत का कार्य चल रहा था। ऐसे में वहां के अधिकारियों ने छह नवम्बर से पानी मांगा। जिससे नहर में जलप्रवाह बढ़ाने में एक सप्ताह का विलम्ब हो गया और कोटा जिले के टेल क्षेत्र के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाया। मध्यप्रदेश के लिए देरी से पानी मांगने का खामियाजा जिले के किसानों को भुगताना पड़ रहा है।

इधर वितरिकाओं में कचरा बन रहा बाधक
बोरखेडा, कन्सुआ, काला तालाब क्षेत्र की वितरिकाओं में कचरा होने के कारण नहरी पानी का सुचारू संचालन नहीं हो पा रहा है। वितरिकाएं घास व झाड़ियों से अटी हुई हैं। वहीं स्थानीय लोगों ने गंदगी डालकर वितरिकाओं को कचरा पात्र बना दिया है। इससे अभी तक वितरिकाओं में पर्याप्त मात्रा में नहरी पानी का संचालन नहीं हो पा रहा है। किसानों ने बताया कि किशनपुरा ब्रांच से करीब 20 गांवों के किसानों के खेत सिंचित होते हैं, लेकिन अभ्ी तक अंतिम छोर तक पानी नहीं पहुंच पाया है। इससे किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

हाड़ौती का नहरी तंत्र
- 965 किमी चम्बल नदी की कुल लंबाई
- 376 किमी तक बहती है राजस्थान में
- 2.29 लाख हैक्टेयर जमीन सिंचित होती है हाड़ौती की
- 2.29 लाख हैक्टेयर जमीन सिंचित होती है मध्यप्रदेश की
- 29 हजार हैक्टेयर में लिफ्ट परियोजनाओं से होती है सिंचाई
- 6656 क्यूसेक दायीं मुख्य नहर की जल प्रवाह क्षमता
- 1500 क्यूसेक बायीं मुख्य नहर की जल प्रवाह क्षमता
-  03 लाख कोटा, बूंदी व बारां के किसान लाभान्वित

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दायीं मुख्य नहर में पूरी क्षमता से जलप्रवाह करने के बाद भी अभी तक टेल क्षेत्र के खेत प्यासे हैं। इससे रबी फसलों पर प्रभाव पड़ रहा है। इस समय तापमान काफी ज्यादा हो रहा है। इसलिए नहरी पानी की सख्त जरूरत है। यदि जल्द पानी नहीं मिला तो उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
-नेमी कुमार नागर, किसान 

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दायीं और बायीं नहर में पूरी क्षमता से जलप्रवाह कर दिया गया है। मध्यप्रदेश ने इस बार देरी से मांगा था। इस कारण जलप्रवाह कम मात्रा में छोड़ा गया था। इसलिए टेल क्षेत्र के खेतों में पानी पहुंचने समय लग रहा है। जल्द ही सभी जगह पानी पहुंच जाएगा।
-लखनलाल गुप्ता, अधीक्षण अभियंता, सीएडी कोटा

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