भारत को अमेरिकी डिजिटल उपनिवेशवाद का पहला झटका : रूस से दोस्ती का खामियाजा, भारत की नायरा एनर्जी की माइक्रोसॉफ्ट ने बंद कर दी सेवाएं

विदेशी डिजिटल आधारभूत ढांचे पर निर्भर

भारत को अमेरिकी डिजिटल उपनिवेशवाद का पहला झटका : रूस से दोस्ती का खामियाजा, भारत की नायरा एनर्जी की माइक्रोसॉफ्ट ने बंद कर दी सेवाएं

अमेरिका और यूरोपीय देश ग्लोबल टेक कंपनियों पर अपने कंट्रोल का इस्तेमाल विभिन्न देशों के खिलाफ कर रही हैं।

नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच इन दिनों दशकों बाद तनातनी अपने चरम पर है। रूस-यूक्रेन युद्ध हो या पाकिस्तान के साथ सीजफायर अमेरिका लगातार भारत विरोधी रुख अपना रहा है। अमेरिका कहना है कि वह यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए भारत पर प्रतिबंध लगा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि भारत के खिलाफ उन्होंने 25 फीसदी का जो सेकेंडरी टैरिफ लगाया जिससे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अलास्का आकर बातचीत के लिए तैयार हुए। अमेरिका जहां पाकिस्तान के जिहादी सेना प्रमुख असीम मुनीर का स्वागत कर रहा है, वहीं अब भारत के खिलाफ 50 फीसदी का टैरिफ लगा चुका है जो दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा है। इस बीच अमेरिका की दिग्गज कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने भारतीय कंपनी नायरा एनर्जी के खिलाफ कदम उठाते हुए पहला डिजिटल उपनिवेशवाद का हमला किया है। नायरा एनर्जी-माइक्रोसाफ्ट का संकट मिसाइलों की बारिश के साथ नहीं बल्कि बहुत ही चुपके और सटीक तरीके से आया।

भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट तेल रिफाइनरी में शामिल नायरा को अचानक से पता चला कि उसकी माइक्रोसॉफ्ट की सेवाएं बंद हो गई हैं। माइक्रोसाफ्ट ने यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बाद यह सेवाएं बंद कर दी थीं। इस पूरे संकट में अमेरिका ने न तो सेना भेजी और न ही युद्धपोत बस एक ईमेल का नोटिफिकेशन आया और नायरा के कंप्यूटरों का स्क्रीन लॉक हो गया। इससे करोड़ों लीटर तेल साफ करने वाली रिफाइनरी एक तरह से पंगु हो गई। 

विदेशी डिजिटल आधारभूत ढांचे पर निर्भर
साल 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद बड़ी संख्या में पश्चिमी देशों की कंपनियां रूस से चली गई थीं जिससे बैंक से लेकर सरकारी एजेंसियां तक प्रभावित हुई थीं। भारत का आर्थिक इंजन विदेशी डिजिटल आधारभूत ढांचे पर निर्भर है। इसमें माइक्रोसाफ्ट ऑफिस से लेकर अमेजन वेब सर्विसेज, गूगल क्लाउड से ओरेकल ईआरपी तक शामिल हैं। यह भारत के कापोर्रेट और पब्लिक सेक्टर की डिजिटल रीढ़ हैं। लाइसेंस फीस और क्लाउड स्टोरेज पेमेंट से भारत का काफी पैसा विदेश में चला जाता है। नायरा की घटना से यह साफ हो गया है कि तकनीकी कंपनियां न्यूट्रल सर्विस प्रोवाइडर नहीं हैं। अमेरिका और यूरोपीय देश ग्लोबल टेक कंपनियों पर अपने कंट्रोल का इस्तेमाल विभिन्न देशों के खिलाफ कर रही हैं।

ईमेल सर्वर और डाटा एनलिटिक्स तक पहुंच बंद
अब तक समुद्री रास्तों और सीमा के चेकप्वाइंट पर इस तरह के बैन लगाए जाते थे। एक्सपर्ट के मुताबिक अब साल 2025 में भारत को डिजिटल उपनिवेशवाद का पहला झटका लगा। उनका कहना है कि आर्थिक और राजनीतिक कंट्रोल का इस्तेमाल अब डिजिटल प्लेटफार्म, सेवाओं और आधारभूत ढांचे पर कंट्रोल के लिए किया जा रहा है। नायरा एनर्जी इस समय राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील माहौल में काम कर रही है। इस कंपनी में ज्यादा हिस्सा रूस की कंपनी रोसनेफ्ट का है जो पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की मार झेल रही है। उन्होंने बताया कि यूरोपीय संघ के ताजा प्रतिबंधों के बाद रातोंरात नायरा एनर्जी के कोर बिजनस टूल जैसे ईमेल सर्वर, डाटा एनलिटिक्स आदि तक पहुंच बंद हो गई। माइक्रोसाफ्ट ने यह कदम यूरोपीय प्रतिबंधों के बाद उठाया जिसका भारत से कोई लेना देना नहीं था। यहीं नायरा का पूरे विवाद से कोई संबंध भी नहीं था।

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डिजिटल उपनिवेशवाद क्या है?
डिजिटल उपनिवेशवाद का अर्थ बिना विजय के ही नियंत्रण स्थापित कर लेना। इसमें सेना और युद्धपोतों की जगह लाइसेंस और क्लाउड ले लेते हैं। यह पुराना औपनिवेशिक मॉडल है जिसके तहत साम्राज्यवादी ताकतें प्राकृतिक संसाधनों से लैस इलाके पर राजनीतिक और सैन्य कंट्रोल स्थापित कर लेती थीं ताकि उसे निकाला जा सके। आज के समय में यह इलाका अब जमीन नहीं बल्कि डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर है जो अर्थव्यवस्थाओं को ताकत देता है। यही नहीं संसाधन अब भौतिक वस्तुएं ही नहीं बल्कि डाटा, ऑपरेशनल कांटीन्यूटी और मार्केट एक्सेस है। औपनिवेशिक ताकतें अपना नियंत्रण गर्वनर या सैन्य ठिकानों से नहीं कर रही हैं, बल्कि यह लाइसेंस समझौते, अनुपालन फ्रेमवर्क के जरिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर आपकी अदालतें विदेशी डेटाबेस पर भरोसा करती हैं, आपकी तेल रिफाइनरी का लॉजिस्टिक्स अमेरिकी या यूरोपीय क्लाउड प्रोवाइडर पर निर्भर है तो आपकी संप्रभुता सशर्त है। नायरा की घटना अकेली नहीं है। इससे पहले साल 2019 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया तो चीन की हुवावे कंपनी की गूगल के एंड्ररायड सिस्टम से पहुंच पूरी तरह से खत्म हो गई थी। इससे चीनी कंपनी को बड़ा झटका लगा था।

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भारत की दुविधा और समाधान
भारत लगातार महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर बल दे रहा है लेकिन डिजिटल क्षेत्र में भारत को असली संप्रभुता की जरूरत है। इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा और नेशनल क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा। घरेलू साफ्टवेयर सिस्टम को बनाना होगा। इससे भारत को डिजिटल उपनिवेशवाद से मुक्ति मिलेगी और विदेशी तकनीक पर से निर्भरता कम होगी। उन्होंने कहा कि नायरा की घटना एक तरह से बड़ी चेतावनी है कि संप्रभुता केवल कुछ वर्ग किलोमीटर नहीं है बल्कि स्विच, सर्वर और सोर्स कोड पर कंट्रोल भी है। भारत के पास अब विकल्प यह है कि वह विदेशी निर्भरता को बरकरार रखे या फिर आक्रामक तरीके से निवेश करके संप्रभु डिजिटल बैकबोन तैयार करे जिससे कोई विदेशी कानून प्रभावित नहीं कर सके। पहला झटका नायरा के रूप में भारत को लग चुका है और आज जो सरकार फैसले करेगी, उस पर भविष्य के झटके निर्भर करेंगे। 

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