सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

जब यह तय हो गया कि कांग्रेसनीत आईएनडीआइए के घटक दल केन्द्र में सत्ता की दावेदारी फिलहाल नहीं करेंगे। और सही समय का इंतजार करेंगे।

असर...
आम चुनाव- 2024 के परिणाम का असर एक अलग तरीके का भी। जिन क्षेत्रीय दलों की कभी अपने प्रदेशों में कभी तूती बोलती थी। इस बार उनका एक भी सांसद लोकसभा में नहीं होगा। इसमें ओडिशा की बीजद, तेलंगाना की बीआरएस, तमिलनाडु की एआईएडीएमके और जम्मू-कश्मीर की पीडीपी इस बार गायब हो गई। कभी पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा था। अनुच्छेद- 370 खत्म किया। तो घाटी में कोई तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा। लेकिन आज उनकी पार्टी को ढोने वाला कोई नहीं बचा। हां, इस बार खालिस्तानी अमृतपाल सिंह पंजाब की खडूर साहिब से सांसद चुना गया। तो फरीदकोट से सरबजीत सिंह भी जीत गया। जो पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले बेअंत सिंह का बेटा। और एक अलगाववादी नेता राशिद इंजीनियर भी। जो जम्मू-कश्मीर की बारामूला सीट से सफल रहा। राशिद पर टेरर फंडिंग का आरोप और आजकल तिहाड़ जेल में।

दक्षिण में एंट्री...
केन्द्र में लगातार तीसरी बार सत्तारूढ़ हुई भाजपा केरल में एक, आंध्रप्रदेश में तीन, तेलंगाना में आठ और कर्नाटक में 17 सीटें जीतकर दक्षिण में प्रभावशानी मौजूदगी दर्ज करवागी। हां, तमिलनाडु में कोई सीट नहीं जीत सकी। लेकिन अपना मत 16 फीसदी तक बढ़ा लिया। जो सत्ताधारी डीएमके लिए के लिए 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव में परेशानी का सबब होगा। अब कहा जा रहा। भाजपा ने यदि एआईएडीएमके के ओपीएस गुट के साथ ही ईपीएस गुट से मिलकर चुनाव लड़ा होता। तो शायद तस्वीर आंध्रप्रदेश जैसी बन सकती थी। खैर, अब जो होना था। वह हो गया। लेकिन भाजपा की दक्षिण में मानी जानी वाली कमजोर कड़ी अब लगातार मजबूत हो रही। क्योंकि तेलंगाना में वह प्रमुख विपक्षी दल बनने की राह पर। तो आंध्रप्रदेश में अब सत्ता में भागीदार भी। वहीं, केरल में अब भाजपा के तीसरी ताकत होकर उभरने की उम्मीद।  

गतिरोध का इंतजाम
जब यह तय हो गया कि कांग्रेसनीत आईएनडीआइए के घटक दल केन्द्र में सत्ता की दावेदारी फिलहाल नहीं करेंगे। और सही समय का इंतजार करेंगे। तो राहुल गांधी एवं उनके रणनीतिकार मुंबई शेयर बाजार में हुए उतार-चढाव का मामले ले आए। मतलब जैसे ही 18 वीं लेकसभा की कार्यवाही शुरू होगी। विपक्ष का हंगामे के लिए मुद्दा तैयार। यानी कांग्रेस ने शेयर बाजार के बहाने संसद में गतिरोध का इंतजाम कर लिया। सो, 18वीं लोकसभा का पहला ही सत्र हंगामेदार होने के आसार। इससे पहले पेगासस, हिंडनबर्ग रिपोर्ट और मणिपुर हिंसा जैसे मामलों में विपक्ष जेपीसी की मांग कर चुका। सो, इस मामले में भी जेपीसी से जांच की मांग। वैसे सरकार मानेगी नहीं। लेकिन पीएम मोदी को यह अहसास करवाने की तरकीब कि इस बार विपक्ष मजबूत। और उन्हें पूरे समय घेरे रहेगा। हालांकि इसके लिए पीएम मोदी और उनके साथी तैयार होंगे ही।

पेंच बाकी
भले ही आइएनडीआए में सब कुछ सामान्य लग रहा। लेकिन पेंच अभी बाकी। नेता प्रतिपक्ष और संयोजक की जिम्मेदारियां कांग्रेस के पास रहने वाली। लेकिन शरद पवार जैसे नेता इतनी आसानी से कहां मानने वाले? सपा, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना-यूबीटी गठबंधन में आखिर कुछ तो चाहेंगी। इस बार गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों के करीब 200 सांसद। और इनमें से कई सांसद ऐसे। जो कभी भाजपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में रह चुके। सो, वह इनकी कार्यप्रणाली से परिचित। यह भी सही कि ज्यादातर दल या नेता वहीं जाते। जहां ज्यादा राजनीतिक लाभ हो। ऐसे में आशंका। क्या भाजपा और कांग्रेस इनको पांच साल बांधीे रख पाएंगी? इसीलिए मल्लिकार्जुन खडगे सही समय पर सही कदम उठाने की बात कह गए। वहीं, भाजपा ने भी एनडीए की क्षमता 293 से 300 से ज्यादा संख्या यूं ही नहीं कर ली। मतलब घर को भी साधना होगा।

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उलझन बाकी...
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य। जहां क्षेत्रीय दल मजबूत। सो, आइएनडीआइए में अब एक नई उलझन! कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को एक दूसरे का साथ तो चाहिए। लेकिन इतना भी नहीं कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से हक मांगने लगे। क्योंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव। जबकि पश्चिम बंगाल में दो साल बाद। ऐसे में क्षत्रप कतई नहीं चाहेंगे कि कांग्रेस उनसे अधिक सीटों की मांग करे। सो, फिलहाल आइएनडीआइए गठबंधन के घटक दल खुश हों। लेकिन कांग्रेस की बढती राजनीतिक जमीन। उनके लिए भी खतरा पैदा कर रही। सत्ता चलाना और उसमें बने रहना। कांग्रेस को खूब आता। महाराष्ट्र में अब कांग्रेस ज्यादा हिस्सा मांगेगी। जो शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल का सबब। जबकि यूपी में तो मानो घमासान की संभावना रहेगी। कांग्रेस, सपा से ज्यादा सीटें चाहेगी। जबकि सपा इससे बचेगी। तो कैसे बात आगे बढे़गी? यह देखना दिलचस्प!

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नई सरकार...
नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में एनडीए गठबंधन सरकार का शपथग्रहण समारोह हो चुका। अब बारी काम करने की। इस बार पीएम मोदी क्षत्रपों पर निर्भर। उन पर दबाव होने का अंदेशा जताया जा रहा। क्योंकि मोदीजी ने कभी गठबंधन सरकार नहीं चलाई। जबकि भाजपा की ओर से लगातार कहा जा रहा। गठबंधन सरकार भी आसानी से चलेगी और मोदीजी भी उसी गति एवं दिशा से काम करेंगे। जैसा पिछले दस साल से करते आ रहे। लेकिन जानकार विश्वास नहीं कर पा रहे। तो सबसे पहली परीक्षा मंत्रिपरिषद का गठन। जिसमें जो नाम शामिल हुए। वह अपने आप में संकेत और संदेश। हां, सरकार की विदेश नीति में बहुत बदलाव नहीं आएगा। ऐसे ही रक्षा क्षेत्र एवं आंतरिक सुरक्षा की नीति भी वैसे ही चलेगी। फिर यह भी कोई नहीं चाहेगा कि देश के ढांचागत विस्तार ने जो गति पकड़ी हुई। उसमें कोई बाधा उत्पन्न हो।

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अब आगे...
अगले छह माह नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के लिए महत्वपूर्ण। जिसमें खुद मोदीजी सहज रहेंगे या उनकी चुनौतियां बढ़ेंगी। यह तय हो जाएगा। असल में, इसी साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र, झारखंड एवं हरियाणा जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले। इसी के साथ केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव की संभावनाएं। चुनाव आयोग ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दीं। ऐसे में, खासकर महाराष्ट्र एवं हरियाणा में भाजपा सफल रही। तो पीएम मोदी मजबूत होंगे। नहीं तो माना जा रहा। सहयोगी दलों के उन पर हावी होने की संभावना। फिर तो केन्द्र की सरकार भी पूरे रूआब से चला पाना मुश्किल होगा। वहीं, एक बार निचले सदन में बहुमत साबित कर देने के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाने की मियाद भी पूरी हो जाती। ऐसे में, इस साल के अंत तक मोदी सरकार की मजबूती कितनी? यह भी तय हो जाएगा!    

दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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