रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया तो अरविन्द सिंह के सामने दूसरे छोर पर पिता भगवत सिंह मौजूद थे, क्रिकेट की नॉलेज ऐसी कि दिलीप वेंगसरकर भी नतमस्तक हो गए

राजस्थान के पहले कूच बिहार ट्रॉफी कप्तान

रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया तो अरविन्द सिंह के सामने दूसरे छोर पर पिता भगवत सिंह मौजूद थे, क्रिकेट की नॉलेज ऐसी कि दिलीप वेंगसरकर भी नतमस्तक हो गए

राजस्थान क्रिकेट के प्रमुख हस्ताक्षर और पूर्व रणजी क्रिकेटर महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ का 80 वर्ष की आयु में उदयपुर में निधन हो गया।

जयपुर। राजस्थान क्रिकेट के प्रमुख हस्ताक्षर और पूर्व रणजी क्रिकेटर महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ का 80 वर्ष की आयु में उदयपुर में निधन हो गया। अरविंद सिंह न केवल एक बेहतरीन क्रिकेटर थे, बल्कि खेलों के बड़े संरक्षक भी रहे। अरविंद सिंह ने 1961 में विदर्भ के खिलाफ उदयपुर में रणजी ट्रॉफी में पदार्पण किया। यह मैच ऐतिहासिक बन गया जब एक छोर पर वे बल्लेबाजी कर रहे थे और दूसरे छोर पर उनके पिता महाराणा भगवत सिंह मौजूद थे। भगवत सिंह ने पहले राजपूताना और फिर राजस्थान के लिए लंबे समय तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला। अरविंद सिंह और भगवत सिंह के नाम एक विश्वस्तरीय रिकॉर्ड भी दर्ज है। पिता-पुत्र की जोड़ी के रूप में इन्होंने चार प्रथम श्रेणी मैचों में एक साथ राज्य का प्रतिनिधित्व किया।

एक दशक तक राजस्थान क्रिकेट का अहम हिस्सा :

1961 से 1971 तक रणजी ट्रॉफी में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए अरविंद सिंह ने 21 प्रथम श्रेणी मैच खेले। 32 पारियों में 610 रन बनाए, जिसमें 1964-65 में खेली गई 84 रनों की पारी उनकी सर्वश्रेष्ठ रही। सूर्यवीर सिंह के साथ उनकी ओपनिंग जोड़ी लंबे समय तक राजस्थान टीम की रीढ़ बनी रही।

राजस्थान के पहले कूच बिहार ट्रॉफी कप्तान :

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1958-59 में जब राजस्थान ने पहली बार कूच बिहार ट्रॉफी में हिस्सा लिया, तब अरविंद सिंह टीम के कप्तान थे। उस टीम में जितेंद्र भटनागर, गोपाल माथुर और हरीश माथुर जैसे खिलाड़ी शामिल थे। उस समय वे अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्ययनरत थे।

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नाक का सवाल बना मैच और ऐतिहासिक जीत :

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अरविंद सिंह खेल भावना के साथ-साथ खेल प्रतिष्ठा के भी धनी थे। 1980 के दशक में ऑस्ट्रेलिया की ओल्ड कॉलेजियन टीम ने भारत दौरे के दौरान मुंबई में निर्लोन्स एकादश को हराया था, जिसमें सुनील गावस्कर भी खेले थे। जब यह टीम उदयपुर आई, तो राजसिंह डूंगरपुर ने अरविंद सिंह को आगाह किया कि यह मैच मुश्किल होगा। लेकिन अरविंद सिंह ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया और अशोक मांकड़ व संदीप पाटिल को भी खेलने के लिए बुला लिया। हालांकि, इस मुकाबले में स्थानीय कुलदीप माथुर की शानदार शतकीय पारी की बदौलत उदयपुर टीम ने नौ विकेट से ऐतिहासिक जीत दर्ज की। मांकड़ और पाटिल की तो बैटिंग ही नहीं आई।

क्रिकेट के बाद पोलो को बढ़ावा :

क्रिकेट के बड़े प्रमोटर रहे अरविंद सिंह ने खेल से संन्यास के बाद पोलो को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने मेवाड़ पोलो टीम बनाई, जिसमें कई विदेशी खिलाड़ी भी शामिल रहे। उनकी टीम जयपुर, दिल्ली और मुंबई में पोलो सत्रों का हिस्सा बनी। उन्होंने जयपुर के रामगढ़ में एक नया पोलो ग्राउंड भी तैयार कराया, जो रामबाग पोलो ग्राउंड के समकक्ष बना।

क्रिकेट नॉलेज के कायल हुए दिलीप वेंगसरकर :

उदयपुर में एक क्रिकेट कार्यक्रम के दौरान पूर्व भारतीय क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर भी शामिल हुए। अरविंद सिंह ने अपने संबोधन में भारतीय और राजस्थान क्रिकेट पर गहन जानकारी साझा की, जिसे सुनकर वेंगसरकर प्रभावित हुए। भाषण समाप्त होने के बाद वेंगसरकर ने नतमस्तक होकर अरविंद सिंह को गले लगा लिया।

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