मौलाना महमूद मदनी के बिगड़े बोल, सुप्रीम कोर्ट पर दिया भडकाउं बयान, बोलें-'जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद...',
सुप्रीम कोर्ट पर महमूद मदनी के बयान से सियासत गरमाई
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने भोपाल बैठक में सुप्रीम कोर्ट पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। उनके बयान पर भाजपा सांसद संबित पात्रा ने तीखा पलटवार करते हुए इसे भड़काऊ और देश को बांटने वाला बताया।
नई दिल्ली। अरशद मदनी ने दो दिन पहले मुसलमानों को विक्टिम बताते हुए लंबी चौड़ी तक़रीर की थी, लेकिन अब जमीयत ए उलेमा हिंद की क़यादत के लिए अरशद मदनी से जूझ रहे उनके भतीजे मौलाना महमूद मदनी भी मैदान में आ गए हैं। इसी बीच भोपाल में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय शासी निकाय की बैठक में इसके अध्यक्ष, मौलाना महमूद मदनी ने कहा, "बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कई दूसरे मामलों में फैसले के बाद, ऐसा लगता है कि, कोर्ट कुछ सालों से सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं...हमारे पास पहले भी कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे कोर्ट के चरित्र पर सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट तभी सुप्रीम कहलाने के लायक है जब वह संविधान को माने और कानून को बनाए रखे। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो वह 'सुप्रीम' कहलाने के लायक नहीं है।"
मौलाना ने बताया हलाल का मतलब
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि, देश के मौजूदा हालात काफी संवेदनशील और चिंताजनक हैं, लेकिन फिर भी हर किसी मामले के लिए केवल एक ही समुदाय को जबरन निशाना बनाया जा रहा है।
संबिता पात्रा का पलटवार
मौलाना महमूद मदनी के इस बयान के बाद भाजपा सांसद संबित पात्रा ने पलटवार करते हुए कहा कि, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने आज भोपाल में एक बड़ी बैठक में जिस प्रकार का बयान दिया है, वह न केवल भड़काऊ है अपितु देश को विभाजन की ओर ले जाने की उनकी कुचेष्टा है। उनका कहना कि 'जिहाद' होना चाहिए, 'जब-जब जुल्म होगा जिहाद होगा', मुझे लगता है कि ये काफी अनुचित वाक्य है।
जिहाद के नाम पर जिस प्रकार से लोगों ने भारतवर्ष और भारतवर्ष के बाहर आतंक फैलाया है वो भी हमने देखा है तो स्वाभाविक रूप से ये कहना कि भारत में जिहाद होगा, यह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना बयान है। उन्होंने यह भी कहा कि, सुप्रीम कोर्ट सरकार के दबाव में काम करता है और इस देश में उसे 'सुप्रीम' कहलाने का कोई अधिकार नहीं है। मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट को खुद से संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि इससे कोर्ट की हैसियत कम होती है..."

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