यह बहस भी अजीब है: शाकाहारी ‘बर्गर’ को ‘वेज बर्गर’ कहा जाना चाहिए या नहीं?
यूरोपीय संघ में ‘नाम’ को लेकर छिड़ा महासंग्राम
इसी विरोध के चलते, यूरोपीय संघ (ईयू) सांसद सेलीन इमार्ट वेज बर्गर, सॉसेज और स्टेक जैसे नामों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सदन में एक विधेयक लेकर आई थीं। इस विधेयक लेकर इन देशों में शुरू से ही विरोध हो रहा है।
ब्रसेल्स। यूरोपीय संघ के देशों में इन दिनों एक अजीबोगरीब जंग छिड़ी हुई है: क्या शाकाहारी ‘बर्गर’ को ‘वेज बर्गर’ कहा जाना चाहिए या नहीं? यह सवाल जितना सीधा लगता है, हकीकत में इसने पूरे महाद्वीप में कंपनियों, उपभोक्ताओं और किसान लॉबी के बीच तकरार पैदा कर दी है। कुछ हितधारकों का कहना है कि ‘बर्गर’ शब्द का इस्तेमाल केवल उस व्यंजन के लिए होना चाहिए जिसमें गोश्त हो। उनका तर्क है कि ‘वेज बर्गर’ जैसे नाम ग्राहकों को भ्रमित करते हैं और वे धोखे से मांस रहित उत्पाद खरीद लेते हैं। इसी विरोध के चलते, यूरोपीय संघ (ईयू) सांसद सेलीन इमार्ट वेज बर्गर, सॉसेज और स्टेक जैसे नामों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सदन में एक विधेयक लेकर आई थीं। इस विधेयक लेकर इन देशों में शुरू से ही विरोध हो रहा है।
ग्राहक समझदार सब जानते हैं
विधेयक का विरोध करने वाले सांसदों का स्पष्ट मत है कि ग्राहक बेवकूफ नहीं हैं और वे वेज और नॉन-वेज में आसानी से फर्क कर सकते हैं, इसलिए नाम बदलने की ज़रूरत नहीं है। यूरोपीय संसद और ईयू देशों के बीच बीते बुधवार को हुई महत्वपूर्ण बातचीत किसी समझौते के बिना ही समाप्त हो गई। अब जनवरी में बातचीत फिर से शुरू होगी।
बीटल्स के संगीतकार मैकार्टनी ने विधेयक का विरोध किया
इस खींचतान के बीच, प्रसिद्ध ब्रिटिश बैंड बीटल्स के संगीतकार पॉल मैकार्टनी ने भी इस विधेयक का ज़ोरदार विरोध किया है। मैकार्टनी ने विरोध जताते हुए कहा है कि इस तरह से शाकाहारी विकल्पों को खत्म करना पर्यावरण के लिए हानिकारक है। उन्होंने ईयू को लिखे पत्र में साफ कहा, सबूत साफ हैं। मौजूदा कानून पहले से ही उपभोक्ताओं की रक्षा करते हैं और उपभोक्ता खुद भी मौजूदा नामकरण के तरीकों को समझते हैं।
ईयू में शाकाहारी पदार्थों का उपभोग पांच गुना बढ़ा
यह विवाद इसलिए भी बड़ा है क्योंकि 2011 के बाद से ईयू में शाकाहारी खाद्य पदार्थों का उपभोग पांच गुना से अधिक बढ़ गया है। इसी वृद्धि को देखते हुए, अक्टूबर 2025 में यूरोपीय सांसदों ने पहले ‘बर्गर’ और ‘सॉसेज’ जैसे नामों को केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों के लिए आरक्षित करने का फैसला लिया था।

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