हम हिंदी विरोधी नहीं : केवल प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी थोपने के है खिलाफ, संजय राउत ने कहा- यहीं तक सीमित है हमारी लड़ाई
वे इससे सीख लेंगे
वे हिंदी नहीं बोलेंगे और न ही किसी को हिंदी बोलने देंगे। लेकिन महाराष्ट्र में हमारा रुख ऐसा नहीं है, हम हिंदी बोलते हैं... हमारा रुख यह है कि प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी के लिए दवाब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हमारी लड़ाई यहीं तक सीमित है।
नई दिल्ली। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा हिंदी थोपे जाने के खिलाफ लड़ाई में उद्धव को समर्थन दिए जाने के एक दिन बाद उद्धव सेना ने स्पष्टीकरण जारी कर के कहा कि ठाकरे बंधुओं का विरोध हिंदी के खिलाफ नहीं था, बल्कि प्राइमरी तक के स्कूलों में इसे तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने के फैसले के खिलाफ था। शिवसेना-यूबीटी के प्रवक्ता संजय राउत ने एक कहा कि दक्षिणी राज्य इस मुद्दे पर वर्षों से लड़ रहे हैं, हिंदी थोपे जाने के खिलाफ उनके रुख का मतलब है कि वे हिंदी नहीं बोलेंगे और न ही किसी को हिंदी बोलने देंगे। लेकिन महाराष्ट्र में हमारा रुख ऐसा नहीं है, हम हिंदी बोलते हैं... हमारा रुख यह है कि प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी के लिए दवाब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हमारी लड़ाई यहीं तक सीमित है।
हिंदी में बोलने से नहीं रोका
ठाकरे बंधुओं का रुख केवल प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी थोपने के खिलाफ है, राउत ने स्टालिन को उनकी लड़ाई में शुभकामनाएं दीं, साथ ही एक रेखा भी खींची। उन्होंने कहा, एमके स्टालिन ने हमें इस जीत पर बधाई दी है और कहा है कि वे इससे सीख लेंगे। हमारी ओर से उन्हें शुभकामनाएं। हमने किसी को भी हिंदी में बोलने से नहीं रोका है क्योंकि हमारे यहां हिंदी फिल्में, हिंदी थिएटर और हिंदी संगीत है। हमारी लड़ाई केवल प्राथमिक शिक्षा में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ है। लगभग दो दशक बाद उद्धव और राज ठाकरे के एक मंच पर आने के कुछ घंटों बाद, स्टालिन- जो हिंदी थोपे जाने के मुद्दे पर केंद्र के साथ टकराव में रहे हैं- ने इस मुद्दे पर चचेरे भाइयों के रुख का स्वागत किया।
त्रि-भाषा नीति का विरोध
बता दें कि उद्धव और राज ठाकरे ने नई शिक्षा नीति के तहत त्रि-भाषा नीति का विरोध किया था, जिसके तहत महाराष्ट्र के प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 1 से 5 तक) में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल किया जाता। उन्होंने इस नीति के खिलाफ मुंबई में बड़ा विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी दी थी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने त्रि-भाषा नीति को लागू करने से संबंधित सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दी थीं और इसकी समीक्षा के लिए शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया। उद्धव और राज ठाकरे ने सरकार के इस फैसले को अपनी और मराठी समुदाय की जीत बताया और इसका जश्न मनाने के लिए 5 जून को मुंबई में एक संयुक्त रैली आयोजित की।

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