लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में नए परिसीमन का विरोध 

परिसीमन आधी सदी के बाद हो रहा 

लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में नए परिसीमन का विरोध 

लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के फिर से परिसीमन करने का काम इस वर्ष होने वाली राष्ट्रीय जनगणना के बाद 2026 में होना है।

लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के फिर से परिसीमन करने का काम इस वर्ष होने वाली राष्ट्रीय जनगणना के बाद 2026 में होना है। यह परिसीमन आधी सदी के बाद हो रहा है, क्योंकि पिछला परिसीमन 1976 में हुआ था, जिसका आधार 1971 में हुई राष्ट्रीय जन गणना थी। इस नए परिसीमन का विरोध काफी समय पहले ही दक्षिण के राज्यों में  शुरू हो गया था। दक्षिण में केवल एक आध को छोड़ इन सभी राज्यों में गैर बीजेपी सरकारें हैं। आन्ध्र प्रदेश में  बीजेपी की सरकार तेलुगु देशम तथा जन सेना के साथ गठबंधन से बनी है।  दक्षिण के प्रमुख राज्य तमिलनाडु में द्रमुक और कांग्रेस की मिली जुली सरकार है। तेलंगाना और कर्नाटक में  कांग्रेस की अपने बहुमत वाली सरकारें है। 

धुर दक्षिण में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार है सभी गैर बीजेपी सरकारें नए परिसीमन के खिलाफ  हैं, नए परिसीमन का प्रस्ताव संसद में 1976 में पारित हुआ था। अगला लोकसभा चुनाव 2029 में होना है तथा ये चुनाव नए परिसीमन के बाद ही होगा। महिलाओं के लिए संसद में 33 प्रतिशत का आरक्षण भी तभी से लागू होना है। सामान्यत: राष्ट्रीय जन गणना हर एक दशक के बाद होती रही है, पिछले जन गणना 2011 में हुई थी। इस हिसाब से अगली राष्ट्रीय जन गणना करने का काम 2021 में होना था, लेकिन दो साल लगातार कोविड के प्रकोप के चलते यह काम टल गया।  कुछ राज्य में विधान सभा चुनाव आ गए। 

लोकसभा के चुनाव भी 2024 में होने वाले थे, इसके चलते राष्ट्रीय जनगणना का काम 2025 में करना निर्धारित किया गया। लोकसभा तथा राज्यों में विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन का मुख्य आधार जन संख्या ही है। देश की सही जन संख्या के आंकड़े इस वर्ष के अंत तक सामने आने का अनुमान है। 

इस समय लोकसभा में कुल 543 चुनाव क्षेत्र हैं, ऐसा अनुमान है कि अगले परिसीमन के बाद यह संख्या बढ़ कर 848 हो जाएगी। इसी प्रकार राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी, फिर इसी अनुपात में  राज्यसभा के सीटों का इजाफा हो जाएगा। दक्षिण के राज्यों का कहना है कि  जब देश में जन संख्या को कम करने का अभियान चल रहा था, तब दक्षिण  के राज्यों, जहां शिक्षा प्रतिशत उत्तर भारत की तुलना में काफी अधिक रहा है में लोग अधिक संख्या में नसबंदी के लिए आगे आए। 

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अधिकतर राज्यों ने दो बच्चे पैदा करने की मुहीम चलाई थी। इसके चलते उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण के राज्यों में जन संख्या कम हो गई। परिसीमन का सबसे अधिक विरोध  तमिलनाडु में हो रहा है, जहां कुल 39 लोकसभा सीटें हैं, राज्य के मुख्यमंत्री तथा सत्तारूढ़ द्रमुक के मुखिया एम के स्टालिन का कहना है कि नए परिसीमन से राज्य में लोकसभा की सीटें घट कर 41 रह जाने का अनुमान, इसी प्रकार दक्षिण के अन्य राज्यों में भी लोक सभा सीटें कुछ घट सकती हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि संसद में पहले से ही  उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व पहले से ही कम है, इस नए परिसीमन के बाद दक्षिण के राज्यों की सदन में सदस्यता और भी कम हो जाएगी। 

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इस नए परिसीमन के विरोध में तमिलनाडु सबसे अधिक मुखर है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कुछ दिन पहले एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, इसमें केवल बीजेपी ने भाग नहीं लिया, जबकि छोटे बड़े सभी तीन दर्जन दलों के नेताओं ने इसमें भाग लिया, इसमें सर्वसम्मति से एक 6 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया, इन प्रस्तावों के हिसाब से परिसीमन का काम 2056 तक टाल दिया जाना चाहिए, इसके बाद जब भी परिसीमन का काम शुरू किया जाए, तो इसका आधार 1971 की जन संख्या ही होनी चाहिए, अपने स्तर पर स्टालिन अपनी जन सभाओ में जोर जोर का प्रचार कर रहे हैं कि तमिलनाडु के लोगों को अब अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए, ताकि दक्षिण के राज्यों की आबादी उत्तर भारत के बराबर या उससे भी अधिक हो जाए।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि तमिलनाडु के पास ऐसा कोई ठोस आधार नहीं है, जिसके बल पर यहां के नेता अपना यह दावा सिद्ध करें कि परिसीमन के बाद राज्य में लोकसभा की सीटें घट जाएंगी, उनका कहना है इसके विपरीत उत्तर भारत के अनुपात में दक्षिण के राज्यों में भी लोकसभा की सीटों में इजाफा होगा।  

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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