सड़क हादसे बढ़ा रहे सामाजिक दूरियां
हर दिन 462 से अधिक लोगों की मौत हो जाती
देश में रोजाना 1264 से अधिक सड़क हादसे होते हैं।
देश में रोजाना 1264 से अधिक सड़क हादसे होते हैं, जिसमें हर दिन 462 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। इनमें ज्यादातर लोग 25 से 35 वर्ष के होते हैं। देश में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं। उसके बाद मध्य प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और फिर राजस्थान में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं। देश में सड़क हादसों की संख्या लगातार बढ़ रही है और हर साल 1.7 लाख से अधिक लोगों की मौत ऐसी दुर्घटनाओं में हो जाती है। यह पूरी दुनिया में होने वाली कुल मौतों का करीब 15 प्रतिशत से अधिक है। यह आंकड़ा वर्ष 2024 तक देशभर में हुए सड़क हादसों व उसमें जान गंवाने वाले लोगों के आधार पर बताया गया है। असल में भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं लापरवाही या जागरुकता की कमी के कारण होती हैं।
ऐसे में जीवन रक्षा के लिए सड़क सुरक्षा शिक्षा आवश्यक हो जाती है। सड़क सुरक्षा पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं के कारण सालाना लगभग 1.19 मिलियन लोगों की मौत होती है और 20 से 50 मिलियन लोग गैर-घातक चोट से प्रभावित होते हैं। सड़क यातायात से होने वाली मौतों और चोटों में से आधे से ज्यादा लोग कमजोर वर्ग के सड़क उपयोगकर्ताओं जैसे कि पैदल यात्री, साइकिल चालक एवं मोटरसाइकिल चालक और उनके सहयात्री होते हैं। रिपोर्ट कहती है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सड़क यातायात से होने वाली चोटों की दर ज्यादा है, जिनमें से 92 प्रतिशत मौतें निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों से होती हैं। अगर भारत में सड़क दुर्घटना संबंधी आंकड़ों की बात करें तो एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान देश में 1.33 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। वहीं 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.55 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
सबसे अधिक मौतें दोपहिया वाहनों के कारण हुईं। दुर्घटनाओं में बसों के कारण तीन प्रतिशत मौतें हुईं। वहीं कुल मौतों में से आधे से अधिक मौत तेज गति से वाहन चलाने के कारण हुई। खतरनाक एवं लापरवाह ड्राइविंग भी मौतों का प्रमुख कारण रहा। अगर राजस्थान की बात करें तो सरकार की ओर से जारी एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2023 में प्रदेश में कुल 24,694 दुर्घटनाएं हुईं। प्रदेश में सड़क हादसों में जान गंवाने वालों में बड़ी तादाद 18 से 25 साल की आयु वर्ग के युवा हैं। सबसे अहम बात यह है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली सामाजिक-आर्थिक लागत भी सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। सड़क दुर्घटनाएं न केवल व्यक्तिगत रूप से दुखद हैं, बल्कि वे अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण लागत भी हैं। सड़कों को सुरक्षित बनाना, वाहन चालकों को प्रशिक्षण देना और यातायात नियमों को सख्ती से लागू करने जैसे प्रावधान करके इस लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है वहीं सड़क दुर्घटनाएं पीड़ित परिवारों के लिए आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से नुकसानदेह होती हैं। ये दुर्घटनाएं आय में कमी, जीवन स्तर में गिरावट और मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा कर सकती हैं, जिससे परिवार कई तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं।
सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत या चोट से परिवार के कमाऊ सदस्य की आय बंद हो जाती है, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। गंभीर चोटों के इलाज में भारी खर्च आता है, जिससे परिवार कर्ज में डूब जाता है। दुर्घटना के कारण परिवार को अपने घर या व्यवसाय को खोना पड़ सकता है। दुर्घटना के बाद परिवार के सदस्यों के बीच सामाजिक जुड़ाव में कमी आती है। दुर्घटना से पीड़ित परिवार सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करता है, क्योंकि उन्हें सहानुभूति और समर्थन की कमी रहती है। दुर्घटना के कारण परिवार के सदस्यों को अपनी शिक्षा या व्यवसाय को बीच में ही छोड़ना पड़ता है, जिससे उनके भविष्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल बड़ी संख्या में होने वाले सड़क हादसों के प्रमुख कारण खराब रोड इंजीनियरिंग, वाहन इंजीनियरिंग और लोगों में यातायात नियमों के प्रति जागरुकता की कमी है। इसके अलावा सही समय पर घायलों को अस्पताल नहीं पहुंचा पाना भी मौत के आंकड़े में बढ़ोतरी का बड़ा कारण है। एक्सपर्ट कहते हैं कि सरकारी प्रयासों के धरातल पर परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता के प्रयासों में तेजी लाने की दरकार है। बड़े हादसे ग्रामीण सड़कों और ग्रामीण इलाकों से गुजर रहे राष्ट्रीय राजमार्गों पर ज्यादा सामने आ रहे हैं। हमें जागरुकता के साथ चिकित्सा सुविधाओं पर ध्यान देना भी जरूरी है, तभी मौतों के आंकड़ों में कमी आ सकेगी।
-अमित बैजनाथ गर्ग
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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