सड़क हादसों पर गंभीर चर्चा जरूरी
नियमों का पालन न होना
जब भी कोई सड़क हादसा होता है, तो हम कितने मरे और कितने घायल की जानकारी देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं।
असल में जब भी कोई सड़क हादसा होता है, तो हम कितने मरे और कितने घायल की जानकारी देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं। तेज गति और गलत तरीके से वाहन चलाने को सड़क हादसे का जिम्मेदार बताकर बाकी सभी कामों की इतिश्री कर ली जाती है। कभी भी सड़क हादसे के त्वरित कारणों के अलावा विस्तार से चर्चा नहीं होती,उन अन्य कारणों पर भी शायद ही कभी चर्चा हुई हो, जो इन सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार हैं। कभी इस बात पर जिक्र नहीं होता कि कंसल्टेंट की ओर से तैयार डीपीआर में गलतियां सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है।
जागरुकता की कमी :
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल बड़ी संख्या में होने वाले सड़क हादसों के प्रमुख कारण खराब सड़कें और लोगों में यातायात नियमों के प्रति जागरुकता की कमी है। इसके अलावा, सही समय पर घायलों को अस्पताल नहीं पहुंचा पाना भी मौत के आंकड़े में बढ़ोतरी का बड़ा कारण है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकारी प्रयासों के धरातल पर परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता के प्रयासों में तेजी लाने की दरकार है। हालांकि विशेषज्ञों की सलाह पर बहुत गंभीरता से काम किया गया हो, ऐसा कभी देखने में नहीं आया है। अगर उनकी सलाह पर काम होता, तो सड़क हादसों में निश्चित तौर पर कमी आती। लोगों की लापरवाही पर तो फिर भी चर्चा हो जाती है, लेकिन सड़कों की खराब डीपीआर और खराब इंजीनियरिंग पर तो कभी चर्चा ही नहीं होती। इस पर गंभीरता से बातचीत करना समय की दरकार है।
हादसों को न्योता देते :
सड़क हादसों पर जहां एक ओर मीडिया की रिपोर्टिंग सीमित है, वहीं पुलिस की कार्यप्रणाली भी हादसे के बाद वाहन का चालान काटने और दुर्घटना होने पर उसे सीज करने तक ही काम करती है। हादसे की विस्तृत रिपोर्टिंग और जांच तक किसी का ध्यान नहीं जाता। हमारे देश में बिचौलियों को पैसे देकर ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है, जबकि विदेशों में लाइसेंस के लिए बहुत कठोर टेस्ट देना पड़ता है। जापान में कार खरीदने से पहले पार्किंग की जगह होने का सर्टिफिकेट देना जरूरी है, लेकिन भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। यहां व्यक्ति कार खरीदता है और घर के बाहर सड़क पर ही पार्किंग बनाकर सड़क को अवरुद्ध कर देता है। देश में बिना बालिग हुए लोग वाहन चला रहे हैं, जो सड़क हादसों को न्योता देते हैं। इन बातों पर कभी चर्चा नहीं होती, जबकि बहुत गंभीरता से होनी चाहिए, क्योंकि जिंदगियों का सवाल है।
नियमों का पालन न होना :
सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह यह भी है कि ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन न होना और आसानी से ड्राइविंग लाइसेंस मिलना। वहीं नशे की आदत इतनी बढ़ चुकी है कि कई बार गाड़ियों की भीड़ के कारण नहीं, बल्कि चालक की होश में ना होने की स्थिति के कारण हादसा हो जाता है। कुछ गाड़ी चलाने वालों में अधीरता इतनी होती है कि वे दूसरों से पहले निकलने की जल्दी में टक्कर मारते हुए निकल जाते हैं। कहीं-कहीं पर रफ्तार को नियंत्रित करने के लिए सड़क पर स्पीड ब्रेकर बनाए जाते हैं, लेकिन उनके बनाने का कोई मानक नहीं होता है। कई बार जहां पर आवश्यकता होती है, वहां पर नहीं बनते और अनावश्यक जगहों पर मानक हीन स्पीड ब्रेकर बना दिए जाते हैं, इसलिए ऐसे स्पीड ब्रेकर दुर्घटनाओं का कारण बन जाते हैं। इन सभी वजहों पर चर्चा होना आवश्यक है, लेकिन उम्मीदों के अनुरूप होती नहीं है।
हादसों पर लगाम लगे :
सड़क हादसों में जान गंवाने वाले परिवारों पर क्या बीतती है, इस पर भी बहुत कम चर्चा होती है। हादसे के दूरस्थ परिणामों पर शायद ही कभी विस्तार से बात हुई हो।
सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए उन पर विस्तार से बात करने की जरूरत है। उनके कारणों का हमें गंभीरता से पता लगाना होगा। केवल हादसे की सामान्य रिपोर्टिंग तक सीमित नहीं रहा जा सकता। हमें उसके बाद भी काम करना होगा। उसके परिवार की स्थिति पर बात करनी होगी। हादसे में जान गंवाने वाले अपने पीछे क्या छोड़ गए हैं, उन पर भी चर्चा करनी होगी। उनके बच्चों को समुचित शिक्षा और खाना मिल पा रहा है या नहीं, इस बात का भी पता लगाना होगा। हादसे में एक व्यक्ति का खत्म होना केवल उस आदमी का जाना नहीं होता, बल्कि एक परिवार का बिखर जाना होता है। हमें इन बिखरे परिवारों को संभालने के लिए और उन तक हर संभव सरकारी और निजी सहायता पहुंचाने के लिए प्रयास करना होगा।
-अमित बैजनाथ गर्ग
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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