बेहद खतरनाक है यह फंगस
कृषि आतंकवाद का खतरनाक हथियार
फंगस केवल फसलों का ही दुश्मन नहीं है, वह इंसानों की भी जान के लिए बेहद खतरनाक है।
फंगस केवल फसलों का ही दुश्मन नहीं है, वह इंसानों की भी जान के लिए बेहद खतरनाक है। एक साइंस जर्नल के मुताबिक फंगस कृषि आतंकवाद का खतरनाक हथियार है। फंगस से प्रभावित फसल के सेवन से मनुष्य और पशुओं की जान भी खतरे में पड़ सकती है। यह एक ऐसा फंगस है जो विभिन्न अनाजों के विकास को प्रभावित करता है। इससे उपज भी कम हो जाती है। एक बार संक्रमित होने के बाद यह फंगस फसल के परिपक्व होने के साथ फैलता चला जाता है। यह छोटे अनाज के तने और जड़ों जैसे पौधों के अनेक ऊतकों, उनके अवशेषों में जीवित रहने और नए पौधों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। यह माइकोटाक्सिन पैदा करता है, जो इंसानों और पशुओं के लिए भी जो इसका सेवन करते हैं, हानिकारक होता है।
बीते दिनों अमरीकी खुफिया एजेंसी ने एक बड़ी जैविक आतंकी साजिश को नाकाम करते हुए अमेरिकी मिशीगन यूनीवर्सिटी में शोध कर रही एक चीनी शोध वैज्ञानिक युनकिंग जियांग को गिरफ्तार किया है जो अमेरिका में खतरनाक जैविक फंगस फुसेरियम ग्रेमिनिएरम लेकर आई। यह फंगस गेहूं, चावल, मक्का और जौ में हेड क्लाइंट रोग फैलाता है। इससे विषाक्त द्रव्य निकलता है, जिससे हर साल जहां अरबों डालर की फसल बरबाद होती है, वहीं फसल की उपज भी कम होती है, नतीजतन कृषि आय प्रभावित होती है। असलियत यह है कि यह खतरनाक फंगस भारत में भी पाया जाता है। अमेरिकी नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडिसिन की 2022 की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर भारत में गेहूं की फसल में कई बार हेड ब्लास्ट के लक्षण देखे गए हैं। वह बात दीगर है कि हर बार समय रहते उस पर नियंत्रण पा लिया गया है। इसके यहां सक्रिय होने के पीछे जलवायु परिवर्तन अहम कारण है। गेहूं की फसल के लिए खासकर इसे बहुत बड़ा खतरा माना जाता है।
असलियत में अमेरिका में चीनी वैज्ञानिक द्वारा फंगस फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम की तस्करी की घटना ने जहां वैश्विक कृषि सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं भावी भविष्य की चेतावनी भी है कि इस तरह मिट्टी, बीज और फसलें भी न केवल आतंकवाद के हथियार बन सकते हैं, वहीं यह फंगस अनाज को सड़ा भी सकता है, जिससे इंसान ही क्या मवेशियों के भी जान के लाले पड़ सकते हैं। चूंकि यह इतना सूक्ष्म होता है, इसलिए आसानी से पकड़ में नहीं आता और हवा, मिट्टी और बीज के जरिए अपना विस्तार करता है। इसके शुरूआत में लक्षण सामान्य रूप से फसली रोग जैसे होते हैं। इंसानों में जबतक इसका पता चलता है तब तक बहुत देर हो जाती है। इस तरह यह जैविक युद्ध का मौन हथियार साबित हो सकता है। वैज्ञानिक इसे एग्रो टैररिज्म यानी कृषि आतंकवाद बता रहे हैं।
असलियत में फसलों को बर्बाद करने या नष्ट करने की खातिर जैविक एजेंट का इस्तेमाल कृषि आतंकवाद कहलाता है। यह तरीका आसानी से पकड़ में भी नहीं आता है। चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी अर्थ व्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 17 फीसदी से ज्यादा है और देश की आधी से ज्यादा आबादी खेती से जुड़ी है, इसलिए भारत भी चीन के निशाने पर हैं। जबकि पंजाब, राजस्थान और हिमाचल जैसे सीमावर्ती राज्य चीन और पाकिस्तान से सटे हुए हैं और दोनों ही देश दुश्मन देश हैं, जिन्हें भारत फूटी आंख नहीं सुहाता है। अब बंग्लादेश भी चीन और पाकिस्तान की राह पर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस फंगस का जहर काफी खतरनाक है। इसके असर से इंसान को उल्टी, दस्त, बुखार, हार्मोनल असंतुलन,प्रजनन संकट, त्वचा में जलन और कोशिकाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इसके अलावा पशुओं का विकास बाधित हो सकता है। उनमें भूख की कमी, बांझपन की समस्या, लिवर और किडनी खराब होने का खतरा बना रह सकता है। वह बात दीगर है कि भारत में कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि विश्वविद्यालयों में फफूंदरोधी गेहूं की उन्नत किस्मों पर अध्ययन जारी है, रोग प्रतिरोधक बीजों का ट्रायल किया जा रहा है, लेकिन इसके साथ साथ जैविक सुरक्षा मानकों व दिशा-निर्देशों को सख्त बनाना, अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से निरंतर सहयोग-परामर्श केअलावा मौसम आधारित पूर्वानुमान प्रणाली और आधुनिक निगरानी तंत्र विकसित किया जाना बेहद जरूरी है, तभी कुछ सीमा तक इस पर नियंत्रण संभव है।
उस हालत में जबकि गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य के तहत इसके दुष्प्रभावों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है और ना ही द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी द्वारा ब्रिटेन की फसल को नुकसान पहुंचाने की गरज से कोलोराडो पोटेटो बीटल नामक कीट छोड़े जाने के इतिहास को भुलाया जा सकता है। जरूरत है जागरूकता और जरूरी प्रभावी चिकित्सकीय उपचार की, तभी इस पर नियंत्रण की उम्मीद की जा सकती है।
-ज्ञानेन्द्र रावत
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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