प्राकृतिक और अप्राकृतिक उथल-पुथल से भरा समय

कभी किसी स्थिर समयकाल में ऋतुओं की छह श्रेणियां होती थी

प्राकृतिक और अप्राकृतिक उथल-पुथल से भरा समय

मानवीय जीवन में विनाश की भूमिका का पूर्वाभ्यास निरंतर हो रहा है।

भारत और पाकिस्तान के मध्य सैन्य संघर्ष, देश व दुनिया में राजनीतिक-सामरिक उथल-पुथल, देश के अंदर उपस्थित विरोधी शक्तियों की भारतविरोधी गतिविधियां, कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरू में पहली बार छत्तीस से भी अधिक घंटों तक हुई तेज मूसलाधार वर्षा, वर्षा के कारण अस्त-व्यस्त व परास्त प्रांत, इस कारण 8-9 लोगों की मृत्यु, पूर्वोत्तर दक्षिण-पश्चिम व मध्य भारत में वातावरण का अकल्पनीय परिवर्तन, सिंगापुर व हांगकांग में कोरोना के रोगियों में वृद्धि, दुनियाभर में एक बार पुन कोरोना के परिवर्तित विषाणु के संक्रमण की आशंकाएं, तेज हवाएं, आंधी-तूफान, धूल से भरा हुआ वायुमंडल, धुंध से लिपटा हुआ नभ व क्षितिज, कहीं अत्यधिक घुटनभरा पर्यावरण तो कहीं सीमा से अधिक गर्मी ये सभी घटनाक्रम प्रतिदिन ही जीवन को प्राकृतिक विप्लव से अस्थिर कर रहे हैं। मानवीय जीवन में विनाश की भूमिका का पूर्वाभ्यास निरंतर हो रहा है। कभी किसी स्थिर समयकाल में ऋतुओं की छह श्रेणियां होती थीं। प्रत्येक श्रेणी अपनी संपूर्ण अवधि की जलवायु को अपनी प्राकृतिक विशिष्टता के साथ अनुरक्षित रखा करती थी। तब प्राकृतिक असंतुलन की चिंता दैनिक चिंता नहीं होती थी।

मनुष्य की बढ़ती इच्छाएं-अभिलाषाएं एक दिन उसके जीवन को जलवायु विकृतियों के एक भयंकर दुष्चक्र में बांधकर उसे निरुपाय पीड़ित छोड़ देंगी, यह उसके लिए न व्यतीत काल में विचारणीय था और न अब है। जीवन की प्रमुख आवश्यकताओं खाद्यान्न और जल के स्रोतों, संसाधनों और प्रचक्र पर अस्थिरता एवं विकृतता का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हुआ है। परिणामस्वरूप न तो सहज श्वासें लेने योग्य वायुमंडल उपस्थित है और ना ही पौष्टिक खाद्यान्न व जल उपलब्ध है। ऐसे में मानव का तन और मन दोनों ही असाध्य रोगों से घिर रहे हैं। मानवीय जीवन की यह कैसी दुर्गति है! यह लेखक निरंतर निकृष्ट होते मौसम को देखकर हतप्रभ होता है। इस वर्ष मई माह भी विचित्र ढंग से परिवर्तित होता रहा। आषाढ़ और ज्येष्ठ के संगम की यह माहावधि भी अपूर्व रूप लिए रही। प्रत्यक्ष देखने, अनुभव करने पर तो ग्रीष्म ताप में कमी हुई।

यदा-कदा शीतल वायु प्रवाह होता रहा। घन विस्फोटों के उपरांत किसी एक पर्वतीय अथवा समतल नगरीय स्थान पर तीव्र धाराओं के साथ वर्षण हुआ। आंधी-तूफान आया। साथ ही कभी-कभी दोपहर व अपराह्न काल के ग्रीष्म ताप में अत्यधिक वृद्धि भी हुई। राजधानी दिल्ली सहित पूर्व, पश्चिमोत्तर और दक्षिण व मध्य भारत में अंधड़-तूफान आए। तेज हवाएं चलीं। तीव्र वर्षण हुआ। घन विस्फोट के कारण एक ही स्थान पर अत्यधिक तीव्रतापूर्वक वर्षा हुई। जलवायु की ऐसी दशा केवल भारतवर्ष में ही नहीं थी। विश्व स्तर पर हर दृष्टि में अग्रणी देश अमेरिका के अनेक भूभागों पर स्थित नगरों-महानगरों पर भी ऐसी ही पारिस्थितिकीय अस्थिरता परिव्याप्त रही। इस देश में 15 से 17 मई के मध्य और विशेषकर 16 मई को आए तूफान और बवंडर के कारण 27 लोगों की मृत्यु हो गई। ध्वस्त क्षेत्रों में धरातल पर कार्यरत राहत बल के कर्मियों ने आशंका व्यक्त की है कि मृतकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। वहां दक्षिण-पूर्वी केंटुकी, लारेल काउंटी, मिसौरी, विस्कान्सिन,सेंट लुई क्षेत्रों में अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन के कारण आधुनिकता की व्यवस्थाएं पूर्ण रूप में ध्वस्त हो गईं। विशाल वृक्ष जड़ से उखड़ गए। आवासीय भवन ध्वस्त हो गए। 

विनाशकारी मौसम में नगर के नगर उजड़ गए। इस परिस्थिति में जीवित बचे और भग्नावशेषों में फंसे हुए लोगों की हर संभव माध्यम से खोज की गई। इस प्राकृतिक उथल-पुथल में वहां विद्युतापूर्ति बाधित हो गई। जलापूर्ति रुक गई। सामान्य जनजीवन अकस्मात् ही कठिन हो गया। प्रतिकूल मौसम के संबंध में अमेरिका का उल्लेख करना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि विगत सौ-डेढ़ सौ वर्षों में इसी देश ने विश्व के सभी देशों को वैज्ञानिक आविष्कारों, औद्योगिक उत्पादन और विज्ञान के अभिशापित पथ पर चलने के लिए सर्वाधिक दुष्प्रेरित किया है। वैसे तो माह के आरंभ में ही मौसम के लक्षण असामान्य होने आरंभ हो गए थे।असामान्य जलवायु का यह प्रभाव न्यूनाधिक मात्रा में विश्व के सभी महाद्वीपों पर हुआ। एशिया द्वीप के भूभागों में से एक महत्वपूर्ण भारतीय भूभाग की तुविकृतियों के प्रत्यक्ष साक्षी तो राजधानी दिल्ली सहित, पूर्वोत्तर, पश्चिम एवं दक्षिण-मध्य भारत के जन-जन हैं ही, किंतु विश्व के विभिन्न क्षेत्रों पर भी जीवनघाती जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव भयंकर रूप में हो रहा है। बेंगलुरू में तो जनजीवन अप्रत्याशित, अत्यधिक व दीर्घवाधि के मूसलाधार वर्षण द्वारा सहसा भयांक्रात होकर असुरक्षित हो गया है। 

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वर्ष प्रतिवर्ष मानवीय जीवन के सम्मुख प्राकृतिक, पर्यावरणीय तथा जलवायु संबंधी नए-नए असंतुलन उत्पन्न हो रहे हैं। इस पांचतात्विक पारिस्थितिकी परिवर्तन के मूल कारणों पर ध्यान लगाने के बदले देश-दुनिया के कर्ताधर्ताओं का ध्यान आधुनिक प्रगति पर ही लगा हुआ है। आधुनिक प्रगति के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जो-जो अप्राकृतिक उत्पादन, खनन, उत्खनन, साधन-संसाधन प्रतिदिन ही बढ़ रहे हैं, क्या उस कारण मानवास्तित्व के सम्मुख उठ खड़े हुए जलवायु परिवर्तन कारकों के निवारण की दिशा में कुछ क्रांतिकारी कर्मकर्त्तव्य निर्धारित होंगे अथवा प्रगति की आत्मघाती, जीवघाती तथा जीवनघाती यात्रा ऐसी ही चलती रहेगी।

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-विकेश कुमार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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