हर मस्जिद, दरगाह में मंदिर ढ़ूंढना मुसलमानों की आस्था को ठेस पहुंचाना, समाज हित में नहीं यह परिपाटी: नसीरुद्दीन
लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए मस्जिद को मंदिर बनाने का तरीका अपना रहे है।
प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख राजनीतिज्ञों की चादर पेश होती है। यह तब से चला आ रहा है जब 1236 ईस्वी में ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ और दरगाह बनी।
अजमेर। राजस्थान के अजमेर की विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैय्यद नसीरुद्दीन ने कहा है कि देश में दरगाह और मस्जिदों में मंदिर ढ़ूंढने की जो नई परिपाटी शुरू हुई है, वह न देश एवं समाज हित में है और न ही आने वाली पीढ़ी के हित में ठीक है। नसीरुद्दीन ने अजमेर में हिन्दू मंदिर का दावा सम्बंधित वाद को न्यायालय में सुनवाई के लिए स्वीकार करने तथा पक्षकारों को नोटिस जारी करने के समाचारों के बाद मीडिया को अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही। उन्होंने कहा दरगाह का इतिहास 850 साल पुराना है। अकीदत का मरकज इतिहास का हिस्सा है। हर दौर के लोग यहां आकर मुराद मांगते है और वह पूरी होती है। प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख राजनीतिज्ञों की चादर पेश होती है। यह तब से चला आ रहा है जब 1236 ईस्वी में ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ और दरगाह बनी।
उन्होंने कहा कि जो लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए मस्जिद को मंदिर बनाने का तरीका अपना रहे है, उनके लिए केन्द्र सरकार को उन्हें कानून के दायरे में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे अपने वकीलों से कानूनी राय कर वाद को खारिज कराने की कानूनी प्रक्रिया अमल में लायेंगे।
अंजुमन मोईनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दामें-ए- ख्वाजा सैय्यद जादगान के सचिव सैय्यद सरवर चिश्ती ने कहा कि गरीब नवाज की दरगाह थी, है और आगे भी रहेगी। उन्होंने कहा कि देश में हर मस्जिद एवं दरगाह में मंदिर ढ़ूंढना मुसलमानों की आस्था को ठेस पहुंचाने का काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अजमेर दरगाह तो सभी की आस्था केंद्र है।
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