मां आसावरी के दरबार में सालभर बहता है झरना

मां आसावरी के दरबार में सालभर बहता है झरना

मीणा राजाओं के साथ सात जातियों की है कुलदेवी : जयपुर में है यह तीर्थ स्थान

 जयपुर। आगरा रोड से सटी अरावली पर्वत श्रृंखला में विराजमान हैं मां आसावरी का प्राचीन मंदिर। कभी मीणा राजाओं की आराध्य देवी रहीं माता वर्तमान में सात जातियों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां अनवरत बहने वाला झरना। कई सालों से लगातार बहुत कम बारिश होने से जयपुर और इसके आसपास के सभी जलाशय सूखे पड़े हैं, लेकिन माता आसावरी के दरबार में आज भी सालभर अनवरत रूप से झरना बहता है। मंदिर में मां आसावरी की आदमकद मूर्ति के साथ ब्रह्मणी, शक्ति और शिवजी की प्रतिमाएं हैं। इनके ठीक सामने मंदिर में प्राचीन धूणा भी है। मंदिर गर्भगृह को चारों तरफ से दीवार से कवर किया हुआ है। मंदिर से सटकर दक्षिण दिशा में आकर्षक गार्डन भी है।

जयपुर में है यह तीर्थ स्थान
यह मंदिर जयपुर में खो नागोरियान में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए इस गांव के बीच से मंदिर तक सड़क जाती है। मंदिर के पुजारी रामनारायण मीणा बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना राजा चन्द्रसेन ने संवत 221 में की थी। इसके बाद अंतिम मीणा राजा आलम सिंह ने भी यहां किला और बावड़ियां बनवाई। पहले यह स्थान प्राकृतिक झरना बहने के कारण खो गंग के नाम से जाना जाता था, जिसे बाद में खो नागोरियान कहा जाने लगा। यह खो गंग आज भी अनवरत बह रही है। खो गंग यहां की पहाड़ियों पर स्थित प्रचीन काला गोरा भैरव मंदिर के पास से एक चट्टान मेंं निकलती है। इसके बाद यह एक कुई में समा जाती है। सर्दी हो या गर्मी यह झरना हमेशा बहता रहता है। इस कुई में मोटर लगा रखी है। इसी का पानी मंदिर में पीने के काम आता है। चट्टान से जलधारा फूटने के बाद यह गुप्त गंगा का रूप लेकर कुई में समा जाती है। यह कुई हमेशा जल से भरी रहती है। माता के मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु इस झरने में स्नान करने को पवित्र मानते हैं, लेकिन झरने तक दुर्गम रास्ता होने के कारण बहुत कम लोग ही इस तक पहुंच पाते हैं। भीषण गर्मी से जब बड़े-बड़े जलाशय सूख जाते हैं, तब भी यहां का प्राकृतिक झरना बहता रहता है। वैसे तो मंदिर में मीणा समाज के कुलदेवी के रूप में जात जडूले लगते हैं, लेकिन यहां सभी जाति समाजों के लोग दर्शनार्थ आते हैं। मंदिर में रोज सैकड़ों भक्तजन आते हैं पर नवरात्र में काफी भीड़ देखने को मिलती है। यहां सवामणी और गोठ के आयोजन खूब होते हैं। माता को लक्ष्मी का रूप मानते हैं। इसलिए प्रसाद भी सात्विक ही चढ़ता है। यह स्थान चारों ओर जंगल से घिरा है, जिसमें बघेरों के अलावा नीलगाय, सियार, लोमड़ी, भेड़िए जैसे वन्य जीव भी स्वछंद विचरण करते हैं, लेकिन आज तक किसी भक्त को कोई हानि नहीं पहुंचाई।

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