बसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का संदेश नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी करती है जागृत

बसंत पंचमी से शीत ऋतु का प्रभाव कम होने के साथ ही बसंत ऋतु का आगमन होता

बसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का संदेश नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी करती है जागृत

बसंत पंचमी पर इस बार गुरु, शुक्र, बुध और मंगल का विशेष संयोग बनने से लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी

जयपुर। बसंत पंचमी पर इस बार गुरु, शुक्र, बुध और मंगल का विशेष संयोग बनने से लक्ष्मी की विशेष कृपा होगी। बसंत पंचमी माने क्या? प्रकृति अपना पूर्ण शृंगार करती है, सरसों पर फूल खिलने लगते हैं। मौसम करवट बदलने लगता है और ठंडी हवाओं की जगह अब मंद- मंद सुखद हवा की बयार बहने लगती है। बसंत पंचमी से शीत ऋतु का प्रभाव कम होने के साथ ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। खेतों में नई फ सलें लहलहाने लगती हैं, फूलों और पत्तों पर ओस की बूंदें चमकती हैं और संपूर्ण वातावरण हरे-भरे परिदृश्य में परिवर्तित हो जाता है। इस दिन ही विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ही प्रजापिता ब्रह्मा ने मां सरस्वती को वीणा बजाने के लिए कहा था और मां ने मधुर नाद किया था। यह केवल ऋतुु परिवर्तन का संदेश नहीं देती, बल्कि यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी जागृत करती है। यह पर्व ज्ञान, प्रेम और प्रकृति के नवसंचार का प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को नई ऊर्जा और उत्साह से भर देता है। 

कब मनाई जाती है बसंत पंचमी
हिन्दू पंचाग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन न केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है, बल्कि ज्ञान, संगीत और कला की देवी सरस्वती की आराधना का पर्व भी है। इस दिन प्रकृति में एक नई उमंग और ऊर्जा का संचार होता है। सरसों के पीले फू ल खिलने लगते हैं, आम के वृक्षों पर मंजर आने लगते हैं और कोयल की मधुर कूक वातावरण को संगीतमय बना देती है। इस पर्व को मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जो प्रेम और सौंदर्य का उत्सव है। यह समय किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, रबी की फ सलें बढ़ने लगती हैं और प्रकृति अपने शृंगार में रत हो जाती है।

सरस्वती पूजन ज्ञान और विद्या का महापर्व
इस दिन विशेष रूप से मां सरस्वती की पूजा की जाती है, जिन्हें ज्ञान, बुद्धि, संगीत और कला की देवी माना जाता है। विद्यार्थी, कलाकार और साहित्य प्रेमी इस अवसर पर सरस्वती वंदना कर उनसे ज्ञान और विद्या का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं और पीले पकवान बनाकर देवी को अर्पित करते हैं। 

मदनोत्सव और प्रेम का पर्व
बसंत पंचमी को प्राचीनकाल से ही मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता था। इसे प्रेम और सौंदर्य का उत्सव माना जाता है, जिसमें कामदेव और रति की पूजा की जाती थी। बसंत पंचमी को प्रेम के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह मौसम मानवीय संवेदनाओं को नई ऊर्जा प्रदान करता है। 

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बसंत एक राग भी तो ताल भी है। बसंत पंचमी का भारतीय समाज में आरम्भ से ही महत्व है, यह प्रेम, स्नेह का प्रतीक होने के साथ ही सारी पृथ्वी बसंत पंचमी से शृंगार करती है। इस बसंत पंचमी पर गुरु, शुक्र, बुध और मंगल का विशेष संयोग  बन रहा है, इससे लक्ष्मी की विशेष कृपा रहेगी। ऋतु परिर्वतन होने के साथ ही  ज्ञान,संगीत और शिक्षा प्रतिष्ठानों में पूजा करने का विधान भी है। इस दिन अबूज सावा भी होता है।’ 
- डॉ. पुरूषोतम गौड़, प्रख्यात ज्योतिषी एवं भारतीय संस्कति के अध्येता 

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