महात्मा गांधी अस्पताल में हुए सौ बोनमैरो ट्रांसप्लांट : अधिकांश ट्रांसप्लांट राज्य सरकार की चिरंजीवी अथवा मां योजना के अंतर्गत

फ़ेंकौनी एनीमिया एवं इम्युनो डिफिशिएंसी डिजीज़ मुख्य

महात्मा गांधी अस्पताल में हुए सौ बोनमैरो ट्रांसप्लांट : अधिकांश ट्रांसप्लांट राज्य सरकार की चिरंजीवी अथवा मां योजना के अंतर्गत

बच्चों की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ प्रियंका सोनी के अनुसार बाल चिकित्सा गैर-कैंसर रोगों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (SCT) थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया, इम्यूनोडिफिशिएंसी और कुछ मेटाबॉलिक विकारों में लाभकारी है।

जयपुर। सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में श्रीराम कैंसर सेंटर के विशेषज्ञों ने सौ बोन मैरो ट्रांसप्लांट चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया मुकाम हासिल किया है। खास बात ये है कि इनमें से अधिकांश ट्रांसप्लांट राज्य सरकार की चिरंजीवी अथवा मां योजना के अंतर्गत किए गए हैं। हिमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष एवं ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. नवीन गुप्ता ने बताया कि बॉन मैरो ट्रांसप्लांट तीन तरह के होते हैं। अभी तक 60 ऑटोलॉगस विधि से एवं 41 एलोजेनिक ट्रांसप्लांट किए गए हैं। उपचारित रोगियों में अधिकतर मरीज बोन मैरो के कैंसर (मायलोमा और ल्यूकेमिया) एवं एप्लास्टिक एनीमिया से ग्रसित थे। डॉ नवीन ने बताया कि इन मरीजों में 22 बच्चे भी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि कई दुर्लभ बीमारियों के लिए भी ट्रांसप्लांट किए गए हैं इनमें फ़ेंकौनी एनीमिया एवं इम्युनो डिफिशिएंसी डिजीज़ मुख्य हैं। 

बोनमैरो ट्रांसप्लांट विधियों के बारे में उन्होंने बताया कि- ऑटोलॉगस स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में रोगी स्वयं ही अपना डोनर होता है। कैंसर-रोधी दवाओं जैसे कीमोथेरेपी या रेडिएशन से पहले रोगी के स्वस्थ स्टेम सेल निकालकर सुरक्षित रखे जाते हैं। उपचार के बाद इन्हें प्रोसेस कर वापस शरीर में डाल दिया जाता है, ताकि रक्त कोशिकाओं का उत्पादन फिर से शुरू हो सके। इसे “रेस्क्यू ट्रांसप्लांट” भी कहा जाता है, क्योंकि यह मरीज को गहन इलाज सहने और जल्दी स्वस्थ होने में मदद करता है। वहीं एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में स्टेम सेल किसी अन्य व्यक्ति (डोनर) से लिए जाते हैं। डोनर मेल खाने वाला नज़दीकी रिश्तेदार इनमें अक्सर भाई या बहन होते हैं। मेल खाने वाला गैर-रिश्तेदार भी हो सकता है। हैप्लो आइडेंटिकल डोनर वाले मामलों में आंशिक मेल वाला परिवार सदस्य, जैसे माता-पिता या संतान हो सकते हैं।

एलोजेनिक ट्रांसप्लांट का एक अतिरिक्त लाभ होता है जिसे “ग्राफ्ट-वर्सेस-कैंसर” प्रभाव कहते हैं, इसमें डोनर की प्रतिरक्षा कोशिकाएं रोगी के शरीर में बची हुई कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर नष्ट कर देती हैं, जिससे कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम हो सकती है। ट्रांसप्लांट डॉ हेमंत मल्होत्रा में किए जा रहे हैं। पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ प्रियंका सोनी और वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ प्रो. डॉ अजय यादव की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने जानकारी दी कि बोनमैरो ट्रांसप्लांट के दौरान रोगी की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो जाती है। इसके चलते गंभीर संक्रमण की आशंका रहती है। इससे बचाव के लिए अस्पताल में एक संक्रमणमुक्त गहन चिकित्सा इसका स्थापित की गई है। जहां चिकित्सकों तथा प्रशिक्षित नर्सिंग द्वारा चौबीसों घंटे मॉनिटरिंग की जाती है। इन ट्रांसप्लांट की सफलता दर विश्वस्तरीय है। बच्चों की कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ प्रियंका सोनी के अनुसार बाल चिकित्सा गैर-कैंसर रोगों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (SCT) थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया, इम्यूनोडिफिशिएंसी और कुछ मेटाबॉलिक विकारों में लाभकारी है।

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