डॉ. सत्यनारायण की डायरी ‘इस मिनखाजून में’ पर चिंतन-मनन का रोचक आयोजन
मनुष्य अपने भीतर चौरासी लाख किरदार समेटे हैं: डॉ. हेतु भारद्वाज
राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा डॉ. सत्यनारायण की डायरी ‘इस मिनखाजून में’ पर साहित्यिक संवाद हुआ। वक्ताओं ने कहा कि लेखक मनुष्य की बहुरूपता, संवेदना और अनुभवों का साक्षी होता है। रचनाओं में जीवन, प्रकृति और आत्मचिंतन की गहराई को विशेष रूप से रेखांकित किया गया।
जयपुर। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से आयोजित डॉ सत्यनारायण की चर्चित डायरी ‘इस मिनखाजून में’ पर केंद्रित साहित्यिक संवाद में वक्ताओं ने मानव जीवन, संवेदना और लेखकीय दृष्टि पर गहन विचार साझा किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि लेखक को भीड़ का आदमी होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य अपने भीतर भावनाओं और अनुभवों की अनगिनत परतें लिए रहता है।
उन्होंने कहा कि डायरी में उपस्थित विविध किरदार यह दर्शाते हैं कि मनुष्य के भीतर मौजूद बहुरूपता ही जीवन की असली समृद्धि है। मुख्य अतिथि हरिराम मीणा ने कहा कि डॉ. सत्यनारायण की खामोशी उनकी रचनाओं में मुखर होती है। वे प्रेम और पेड़ों के लेखक हैं, जिनकी प्रकृति और मनुष्य के प्रति गहरी संवेदना उनके पात्रों और शैली को अनोखी अर्थवत्ता देती है। उन्होंने कहा कि लेखक अपनी रचनाओं में जीवन की तलाश करता है और पाठक को भी आत्मचिंतन की ओर ले जाता है।
वरिष्ठ आलोचक राजाराम भादू ने कहा कि डॉ. सत्यनारायण कथा और कथेतर दोनों विधाओं के समर्थ रचनाकार हैं। उन्होंने कथेतर लेखन को उस समय प्रतिष्ठा दिलाई जब इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता था। उषा दशोरा ने कहा कि डॉ. सत्यनारायण के पात्रों की आंतरिक संवेदना और पीड़ा पाठक के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। अंत में डॉ.सत्यनारायण ने कहा कि संघर्ष ही जीवन का सौंदर्य है और इन्हीं अनुभवों से लेखक समाज का साक्षी बनता है।

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