प्रदेश में 7 दिन का ही बचा कोयला
कुछ इकाइयों में पांच से सात दिन का ही कोयला है
कोयले की कमी से बरकरार बिजली संकट में अभी राहत मिलती नजर नहीं आ रही। छत्तीसगढ़ की खदानों से भी कोयला नहीं मिलने से बिजली उत्पादन गड़बड़ाने लगा है।
जयपुर। कोयले की कमी से बरकरार बिजली संकट में अभी राहत मिलती नजर नहीं आ रही। छत्तीसगढ़ की खदानों से भी कोयला नहीं मिलने से बिजली उत्पादन गड़बड़ाने लगा है। प्रदेश की सात थर्मल इकाइयां ठप पड़ी हैं और कुछ इकाइयों में पांच से सात दिन का ही कोयला है। इसके चलते बिजली कटौती बढ़ सकती है। छत्तीसगढ़ में आवंटित नई खदान से कोयला नहीं मिलने पर प्रदेश के 4340 मेगावाट क्षमता के थर्मल प्रोजेक्ट से उत्पादन बंद हो जाएगा। प्रदेश की थर्मल इकाइयां भी कोयला संकट के चलते पूरी क्षमता से नहीं चल पा रही। कैपेटिव कोल माइंस में जून के पहले सप्ताह तक का कोयला बचा है। छत्तीसगढ़ कोयला खदान विवाद को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी के कई बार हुए प्रयास भी कारगर साबित नहीं हो पाए।
7 दिन का कोयला ही बचा है
कोयला आधारित 23 बिजली उत्पादन इकाइयों में 26 दिन का कोयला स्टॉक होना चाहिए, लेकिन अधिकांश इकाइयों में पांच से 7 दिन का कोयला ही बचा है। वर्तमान में सात बिजली उत्पादन इकाइयां ठप पड़ी हैं। इनमें सूरतगढ़ की तीन, छबड़ा की तीन और कालीसिंध की एक इकाई बंद है। सभी सात उत्पादन इकाइयों की कुल क्षमता 2510 मेगावाट है। इनमें से दो इकाई मेंटेनेंस के नाम पर और पांच इकाइयां तकनीकी कारणों से बंद हैं। राहत की बात यह है कि कालीसिंध की 600 मेगावाट की एक और सूरतगढ़ की 250 मेगावाट की एक इकाई से उत्पादन शुरू हो गया।
बिजली कटौती और बढ़ सकती है
कोयला संकट का हल नहीं निकलने पर आगामी दिनों में बिजली कटौती और बढ़ सकती है। आवंटिन खदानों से कोयला नहीं मिल रहा और राजस्थान विदेशों से महंगा कोयला खरीदने में रुचि नहीं दिखा रहा। ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की मानें तो संकट का हल जल्द नहीं निकलने पर आगामी दिनों में ब्लैकआउट की स्थिति भी बन सकती है।

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