झालावाड़ के पिपलोदी स्कूल का मामला : हादसा प्रशासनिक उदासीनता और बुनियादी ढांचे की उपेक्षा का दुष्परिणाम- हाईकोर्ट
पीडब्ल्यूडी विभाग की ओर से नियमों की अनदेखी का परिणाम
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करना सरकार का संवैधानिक दायित्व हैं।
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि झालावाड़ हादसे की दुखद घटना प्रशासनिक उदासीनता और बुनियादी ढांचे की उपेक्षा के दुष्परिणामों की एक भयावह याद दिलाती है। इसके साथ ही जस्टिस समीर जैन की अदालत ने मामले में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए केन्द्रीय शिक्षा सचिव और मुख्य सचिव राजस्थान सहित अन्य से जवाब मांगा है। अदालत ने कहा कि घटना के बाद जो औपचारिकताएं और चिंताएं व्यक्त की जा रही है, अगर वो समय पर कर ली जाती तो शायद मासूमों की जान बच सकती थी। वहीं इस घटना ने अन्य मासूम बच्चों के मन पर जो प्रभाव डाला है, उसे रोका जा सकता था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करना सरकार का संवैधानिक दायित्व हैं।
आरटीई एक्ट के तहत यह अनिवार्य किया गया है कि सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से स्कूल परिसर का निरीक्षण करके यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बुनियादी ढांचे की आवश्यकता का पालन किया जा रहा हैं, लेकिन झालावाड़ की घटना घटिया सामग्री के उपयोग और पीडब्ल्यूडी विभाग की ओर से नियमों की अनदेखी का परिणाम है। अदालत ने मामले में निर्देश देते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों, खासतौर पर ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के स्कूलों के भवन की स्वतंत्र एजेंसी से ऑडिट कराई जाए। स्कूलों के बुनियादी ढांचे की वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट पेश की जाए। वहीं झालावाड़ की घटना में अब तक की गई जांच की रिपोर्ट पेश की जाए। जिसमें यह बताया जाए कि अब तक किस-किस की जिम्मेदारी तय की गई है और किन-किन पर कार्रवाई हुई हैं।

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