आरटीआई कानून को कमजोर करने की कोशिश, स्वीकार नहीं होगा : जूली
आरटीआई कोई साधारण कानून नहीं
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने केंद्र सरकार पर आरटीआई कानून को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए ऐसी कोशिश को स्वीकार नहीं करने की बात कही है
जयपुर। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने केंद्र सरकार पर आरटीआई कानून को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए ऐसी कोशिश को स्वीकार नहीं करने की बात कही है। जूली ने कहा है कि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (डीपीडीपीए) के माध्यम से सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर किया जा रहा है, जो लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए एक बड़ा खतरा है। इस विषय को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी एवं सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री को पत्र लिखा। सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005 के पीछे देश की पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की दूरदृष्टि, राजनीतिक इच्छाशक्ति और लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता थी, जिन्होंने इस ऐतिहासिक कानून को लागू किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस आरटीआई कानून ने देश में सुशासन, जवाबदेही और जनभागीदारी की भावना को मजबूती दी, आज उसी कानून की आत्मा को भाजपा सरकार कमजोर करने का प्रयास कर रही है।
आरटीआई कोई साधारण कानून नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ है, यह नागरिकों को सत्ता की आंखों में आंखें डालकर सवाल जवाब पूछने का अधिकार देता है। डीपीडीपीए की धारा 44(3) सूचना के अधिकार की मूल भावना को आघात पहुँचाती है और नागरिकों की महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच को बाधित करती है। यह संशोधन न केवल पारदर्शिता को सीमित करेगा, बल्कि भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर भी देगा। यह बेहद चिंताजनक है कि इस मुद्दे को लेकर देश के विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लगभग 150 माननीय सांसदों ने भारत सरकार को पत्र लिखकर गहरी चिंता जाहिर की है। केंद्र सरकार से आग्रह है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए डीपीडीपीए अधिनियम की धारा 44(3) को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए। इसके अतिरिक्त, अधिनियम के कुछ प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भी विरुद्ध प्रतीत होते हैं, जिनकी पुनः समीक्षा आवश्यक है। सूचना का अधिकार कमजोर हुआ तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा और यह किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता।

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