सिर्फ डायलॉग याद कर लेना ही पर्याप्त नहीं, संवाद में संगीतात्मकता हो : भार्गव
नाट्य शास्त्र पर व्याख्यान और परिचर्चा
भौगोलिक परिस्थितियां व्यक्ति के हाव-भाव, भाषा, वेशभूषा और सांस्कृतिक परिवेश को प्रभावित करती हैं, जिससे अभिनय की शैली भी बदलती है।
जयपुर। जेकेके की ओर से कृष्णायन में नाट्य शास्त्र पर व्याख्यान एवं परिचर्चा के दो दिवसीय कार्यक्रम शुरु हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ नाट्य गुरु भारतरतन भार्गव ने नाट्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने रंगकर्मियों को सरल भाषा में इसके महत्व व बारीकियों से अवगत कराया। भार्गव ने नाट्यशास्त्र को लेकर कलाकारों के बीच चर्चा से कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि नाट्यशास्त्र को केवल पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि समझना आवश्यक है। इसमें भूगोल का विशेष महत्व है, क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां व्यक्ति के हाव-भाव, भाषा, वेशभूषा और सांस्कृतिक परिवेश को प्रभावित करती हैं, जिससे अभिनय की शैली भी बदलती है।
इतिहास के संदर्भ में उन्होंने बताया कि समय के साथ नाट्य शैली में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन इसके मूल तत्व स्थिर रहे हैं। उन्होंने अभ्यास के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि नाटक को महज 10-15 दिनों में तैयार करना उपलब्धि नहीं है, बल्कि निरंतर अभ्यास ही इसे दर्शकों तक प्रभावी रूप से पहुंचा सकता है। इसी के साथ सिर्फ डायलॉग याद कर लेना ही कला नहीं, बल्कि संवाद में संगीतात्मकता होनी चाहिए और कलाकारों को आंगिक और वाचिक तत्वों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
Comment List