कम उम्र में भी बढ़ने लगी है घुटनों की तकलीफ जोड़ प्रत्यारोपण में अब नई तकनीकें बनी वरदान
सिर्फ खराब हिस्सा बदलने की जरूरत
सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. धीरज दुबे ने बताया कि यह सर्जरी तभी की जाती है जब जोड़ का एक हिस्सा ही खराब हो। पूरा घुटना खराब होने पर संपूर्ण जोड़ प्रत्यारोपण किया जाता है।
ब्यूरो/नवज्योति, जयपुर। पहले बुजुर्गों की बीमारी मानी जाने वाली घुटनों की समस्या अब युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले रही हैं। इसके पीछे की वजह बिगड़ी लाइफस्टाइल और अनियमित खानपान प्रमुख है। पहले 60 वर्ष की उम्र के बाद घुटनों में दर्द और खराबी की समस्या सामने आती थी लेकिन अब यह उम्र घटकर 45 से 50 हो गई है। वहीं कई बार चोट के कारण इससे कम उम्र के युवा भी घुटने खराब होने की समस्या से ग्रसित हो जाते हैं। हमारे शरीर का सबसे ज्यादा भार घुटनों के जोड़ों पर पड़ता है। जब इनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है और चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं तो डॉक्टर घुटने के जोड़ का रिप्लेसमेंट सर्जरी करने की सलाह देते हैं जिसमें पूरा जोड़ बदला जाता है। लेकिन अब नई तकनीकें आ गई हैं जो जोड़ प्रत्यारोप में क्रांतिकारी बदलाव ला चुकी हैं। अब जोड़ों का आंशिक हिस्सा भी बदला जा सकता है जिसे टक्सप्लास्टी कहा जाता है।
सिर्फ खराब हिस्सा बदलने की जरूरत
सीनियर जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. धीरज दुबे ने बताया कि यह सर्जरी तभी की जाती है जब जोड़ का एक हिस्सा ही खराब हो। पूरा घुटना खराब होने पर संपूर्ण जोड़ प्रत्यारोपण किया जाता है। इस तकनीक में लगने वाले जोड़ की खासियत है कि इसकी पॉली (जोड़ के बीच घिसने वाली जगह) विटामिन ई से युक्त है जो उसे घिसने से बचाती है।
पूरा घुटना खराब होने से बचाती है ये तकनीक
हाफ नी रिप्लेसमेंट सर्जरी मरीज का घुटना पूरा खराब होने से बचाती है। डॉ. दुबे ने बताया कि युवा मरीजों में टक्सप्लास्टी यानि हाफ नी रिप्लेसमेंट ज्यादा कारगर होती है क्योंकि इस सर्जरी का फायदा है कि इससे हम घुटने के सिर्फ खराब हिस्से को बदल सकते हैं। सर्जरी में छोटा चीरा लगाने से रक्तस्त्राव ज्यादा होने का खतरा भी कम होता है। छोटे चीरे के कारण मरीज को रिकवर करने का वक्त भी कम ही लगता है।

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