ऑनलाइन व बिग रिटेल फॉर्मेट से संकट में खुदरा कारोबार : देशभर में बंद हुई 2 लाख से अधिक खुदरा दुकानें, प्रतिदिन बंद हो रही हैं 1000 से अधिक दुकानें
सवा करोड़ से अधिक खुदरा दुकानों में 80% पारिवारिक व्यवसाय
देश में ऑनलाइन खरीदारी और बड़े व्यापारिक घरानों के रिटेल फॉर्मेट के बढ़ते प्रभाव के कारण पारंपरिक खुदरा दुकानों पर गंभीर संकट गहराता जा रहा है
जयपुर। देश में ऑनलाइन खरीदारी और बड़े व्यापारिक घरानों के रिटेल फॉर्मेट के बढ़ते प्रभाव के कारण पारंपरिक खुदरा दुकानों पर गंभीर संकट गहराता जा रहा है। हालात इतने गंभीर हैं कि अब तक दो लाख से अधिक खुदरा दुकानें बंद हो चुकी हैं, और प्रतिदिन एक हजार से अधिक दुकानें शटर डाउन कर रही हैं। इस गंभीर स्थिति पर चिंतन करते हुए टीम आरतिया ने एक बैठक आयोजित की और भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अधीन उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग को नेशनल रिटेल ट्रेड पॉलिसी हेतु सुझाव प्रेषित किए हैं।
सवा करोड़ से अधिक खुदरा दुकानों में 80% पारिवारिक व्यवसाय
टीम के सदस्यों विष्णु भूत, कमल कंदोई और आशीष सर्राफ ने बताया कि देश में वर्तमान में सवा करोड़ से अधिक खुदरा दुकानें कार्यरत हैं, जिनमें से 80% दुकानें पारिवारिक स्वरूप में संचालित होती हैं, जहां तीन पीढ़ियां एक साथ व्यवसाय संभालती हैं। यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन आज यह गहरे संकट से गुजर रहा है।
ई-कॉमर्स की ओर खिसक रहा उपभोक्ता, इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित
ऑनलाइन क्विक कॉमर्स के आक्रामक प्रचार ने उपभोक्ताओं को भ्रमित किया है, जिससे वे पारंपरिक 1.58 लाख इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल दुकानों की बजाय ई-कॉमर्स पोर्टल्स और बड़े ब्रांडेड चेन स्टोर्स की ओर उन्मुख हो रहे हैं।
क्विक कॉमर्स का तेजी से बढ़ता प्रभुत्व
प्रेम बियाणी, ओ.पी. राजपुरोहित और कैलाश शर्मा ने चिंता जताई कि क्विक कॉमर्स का प्रभाव अब दैनिक उपभोग की वस्तुओं की खरीद पर भी स्पष्ट रूप से दिख रहा है। 2024 में इस क्षेत्र में 74% की वृद्धि दर्ज की गई है, और अब देश के 82% से अधिक उपभोक्ता अपनी 25% या अधिक दैनिक जरूरतें इसी माध्यम से पूरी कर रहे हैं।
बिग फॉर्मेट की अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से खुदरा व्यवसाय जर्जर
तरुण शारदा, नरेश चौपड़ा, विक्रम सराफ और दिनेश गुप्ता ने बताया कि बड़े औद्योगिक घरानों के रिटेल फॉर्मेट भारी पूंजी निवेश के साथ आते हैं और बाजार में अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा फैलाते हैं। खुदरा दुकानदार जो दैनिक आय पर निर्भर रहता है, वह इस दबाव को एक वर्ष से अधिक नहीं झेल पाता। उन्होंने कहा कि सरकार के अधिकारी इस संकट से वाकिफ होने के बावजूद बड़ी लॉबी के दबाव में खुदरा क्षेत्र की अनदेखी करते रहे हैं, क्योंकि यह क्षेत्र असंगठित है और इसकी आवाज कमजोर पड़ जाती है। टीम आरतिया के सुझाव: नीति निर्माण में खुदरा व्यापारियों को मिले भागीदारी
टीम आरतिया ने सुझाव दिया कि -
- खुदरा दुकानदारों के लिए कर की दरों को न्यूनतम और व्यवहारिक बनाया जाए।
- जैसे किसानों के लिए सरकार योजनाएं बनाती है, वैसे ही खुदरा दुकानदारों की भी रक्षा की जाए।
- अनुचित व्यापार व्यवहार आयोग के नियमों को खुदरा क्षेत्र में सख्ती से लागू किया जाए।
- खुदरा व्यापारियों के लिए प्रभावी नियम-कायदे तत्काल लागू किए जाएं।
- सहकारी फॉर्मेट को बढ़ावा देकर व्यवसाय को सशक्त किया जाए।
- नीति के मसौदे को अंतिम रूप देने से पूर्व ग्राउंड लेवल से खुदरा व्यापारियों के सुझाव आमंत्रित किए जाए
ये है मांग
देश की खुदरा व्यवस्था को संरक्षित रखने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। यदि यह प्रवृत्ति यूं ही जारी रही तो देश की करोड़ों खुदरा दुकानें और उनसे जुड़े लाखों परिवार आजीविका संकट में घिर सकते हैं।

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