एसएमएस अस्पताल : हार्ट में पहले लगे सर्जिकल वॉल्व में बिना ऑपरेशन किए दोबारा कृत्रिम वॉल्व लगाया
उत्तरी भारत में एसएमएस मेडिकल कॉलेज पहला सेंटर, जहां हुआ वॉल्व-इन-वॉल्व टावर प्रोसीजर
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के कार्डियोलॉजी विभाग ने दिल के मरीजों के इलाज में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है।
जयपुर। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के कार्डियोलॉजी विभाग ने दिल के मरीजों के इलाज में एक और कीर्तिमान स्थापित किया है। यहां 80 वर्षीय मरीज पर बेहद जटिल वॉल्व-इन-वॉल्व ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट यानी टावर प्रक्रिया को सफलता पूर्वक अंजाम दिया गया। मरीज से इसका कोई खर्च नहीं लिया गया और यह उत्तर भारत के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में इस तरह की प्रक्रिया का पहला मामला रहा। कार्डियोलॉजी विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. एसएम शर्मा ने बताया कि मरीज भरतपुर का रहने वाला है। 2016 में पहले ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी थी। इस बार डॉक्टरों ने बिना सीना खोले कैथेटर के जरिए नया कृत्रिम वॉल्व लगाया। इससे न केवल सर्जरी का खतरा कम हुआ बल्कि मरीज की रिकवरी भी जल्दी हो गई। इस केस में सीनियर स्ट्रक्चरल हार्ट एक्सपर्ट डॉ. प्रशांत द्विवेदी का विशेष तकनीकी सहयोग रहा।
क्यों खास है यह प्रक्रिया ?
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दिनेश गौतम ने बताया कि इस तकनीक में पुराने खराब हो चुके सर्जिकल वॉल्व के अंदर ही नया वॉल्व डाला जाता है। ऐसे मामलों में मरीज का पहले से बदला हुआ हृदय ढांचा यानी एनॉटॉमी और पुराने वॉल्व की स्थिति, नए वॉल्व को सही जगह पर फिट करना मुश्किल बना देती है। अगर वॉल्व एकदम सटीक नहीं बैठा तो उसमें रिसाव हो सकता है या फिर वॉल्व ठीक से काम नहीं करेगा। इसके अलावा एक बड़ा खतरा यह भी रहता है कि नया वॉल्व दिल की खून पहुंचाने वाली कोरोनरी धमनियों को ब्लॉक न कर दे। ऐसा होने पर मरीज को हार्ट अटैक आ सकता है।

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