कांग्रेस की धरातल पर संगठन को मजबूत करने की कवायद : शक्तियों से जिलाध्यक्षों की बढ़ेगी ताकत, हाईकमान से रहेगा सीधा संवाद

फैसलों में अपना अधिकार मजबूती से हासिल कर सकें

कांग्रेस की धरातल पर संगठन को मजबूत करने की कवायद : शक्तियों से जिलाध्यक्षों की बढ़ेगी ताकत, हाईकमान से रहेगा सीधा संवाद

दिल्ली में जिलाध्यक्षों की हाल ही में हुई बैठक में खड़गे और राहुल गांधी ने इनके सुझाव भी लिए हैं, ताकि उचित बदलाव किया जा सके। 

जयपुर। कांग्रेस की धरातल पर संगठन को मजबूत करने की कवायद में राजस्थान सहित सभी राज्यों में जिलाध्यक्षों को शक्तियां देने जा रही हैं। अब जिलाध्यक्ष सिर्फ लेटरपैड वाले नहीं रहकर संगठन नियुक्तियों से लेकर टिकट वितरण तक के फैसलों में अपना अधिकार मजबूती से हासिल कर सकेंगे। नए फॉर्मूले में कांग्रेस हाईकमान से उनका सीधा संवाद रहेगा, ताकि बड़े नेताओं के दखल से कमजोर हो रहे संगठन को फिर से दुरुस्त किया जा सके। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने संगठन मजबूती की रणनीति में संगठन के विकेन्द्रीकरण और जमीनी कार्यकर्ताओं के स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाने की कवायद शुरू कर दी है। इससे पहले जिलाध्यक्षों की भूमिका मुख्य रूप से पीसीसी और हाईकमान के निर्देशों तक ही सीमित थी, लेकिन अब जिलाध्यक्षों को  जिले का सेनापति बनाने की तैयारी की जा रही है। दिल्ली में जिलाध्यक्षों की हाल ही में हुई बैठक में खड़गे और राहुल गांधी ने इनके सुझाव भी लिए हैं, ताकि उचित बदलाव किया जा सके। 

जिलाध्यक्षों को ताकत मिली तो बदल सकते हैं समीकरण
 हालांकि जिलाध्यक्षों को मिलने वाली शक्तियों को लेकर अभी फाइनल फॉर्मूला नहीं बना है, लेकिन शक्तियां मिलने से जिला स्तर पर संगठन के कई समीकरण बदल सकते हैं। इससे जिलाध्यक्षों की साख तो बढ़ेगी मगर इन शक्तियों को लागू करने से पीसीसी और कांग्रेस विधायक दल की शक्तियों में कुछ कमी आ सकती है तो संगठन के अंदर शुरूआत में कुछ टकराव भी आसार बन सकते हैं। 

कांग्रेस हाईकमान की ओर से ये है तैयारी
संगठनात्मक निर्णय : जिला स्तर पर पार्टी गतिविधियों जैसे सदस्यता अभियान, प्रदर्शन और रैलियों के आयोजन में जिलाध्यक्षों को अधिक स्वायत्तता मिल सकती है, जिसमें वे अपने क्षेत्र के वरिष्ठ नेताओं का मोहरा नहीं बने रहेंगे। अभी कई जिलों में जिलाध्यक्ष स्थानीय वरिष्ठ नेताओं, विधायकों, सांसदों के दबाव में काम करते हैं, जिससे गुटबाजी के आरोपों के बीच संगठन में निष्क्रियता छाई रहती है। 

आर्थिक सशक्तिकरण : जिलाध्यक्षों को वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन और उपयोग के अधिकार दिए जा सकते हैं। खुद के जिला कांग्रेस भवनों के लिए हाईकमान राशि देगा और इन भवनों की मदद से उन्हें आर्थिक सशक्तिकरण करने का फॉर्मूला भी तैयार किया जाएगा। 

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स्थानीय नेतृत्व का विकास : जिलाध्यक्षों को ब्लॉक और पंचायत स्तर के नेताओं को नियुक्त करने या उनके साथ समन्वय करने की जिम्मेदारी मिल सकती है, जिससे संगठन की नींव मजबूत हो। बैठकों में सभी वरिष्ठ नेताओं जैसे पीसीसी और एआईसीसी पदाधिकारियों, विधायक, पूर्व विधायक, सांसद, पूर्व सांसद आदि की अनिवार्यता तय की जाएगी। 

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टिकट वितरण में भूमिका : जिलाध्यक्षों को विधानसभा, लोकसभा सहित अन्य चुनावों में उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण भागीदारी दी जा सकती है। सीडब्ल्यूसी बैठकों में जिलाध्यक्षों की राय भी शामिल की जा सकती है, ताकि स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार लोकप्रिय उम्मीदवार को प्राथमिकता दी जा सके। 

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हाईकमान से सीधा संवाद : हाईकमान ने करीब 40 साल पहले जिलाध्यक्षों से सीधे संवाद की प्रक्रिया अपनाई थी। अब जिलाध्यक्षों की पहली बार सीधी संवाद बैठक के माध्यम से नई शुरूआत की गई है। आगामी दिनों में भी हाईकमान संगठन स्तर का पूरा फीडबैक हासिल करने के लिए इनसे सीधा संवाद की प्रक्रिया भी तय कर सकता है, ताकि वास्तविकता जानी जा सके। 

 

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