डीग के बहज में मिले सूखी नदी के अवशेष : कालीबंगा के बाद राजस्थान के सबसे बडे उत्खनन की कहानी

औद्योगिक नगर होने के मिलते हैं प्रमाण

डीग के बहज में मिले सूखी नदी के अवशेष : कालीबंगा के बाद राजस्थान के सबसे बडे उत्खनन की कहानी

अन्यत्र कालखंडों में प्राक-मौर्य समय में यज्ञ कुंडों तथा उसमे अर्पित सिक्कों के प्रमाण मिलना भी बहुत महतवपूर्ण है।

जयपुर। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के जयपुर मंडल की ओर से प्रदेश के डीग जिले के बहज गांव में उत्खनन कार्य जारी है। इस दौरान कई ऐसी पुरा महत्व की वस्तुएं मिली हैं जो उस समय की महत्ता की जानकारी देती है। अधीक्षण पुरातत्वविद् जयपुर मण्डल विनय गुप्ता के निर्देशन में ये कार्य किया जा रहा है। इनका अवलोकन करते हुए पुरातत्वविद पवन सारस्वत ने इससे सम्बंधित जानकारियां साझा करते हुए बताया कि ब्रज 84 कोस परिक्रमा का भाग होने के कारण इस क्षेत्र का धार्मिक महत्व है, लेकिन विभाग की ओर से उत्खनन के बाद इसकी पुरातात्विक पुष्टि भी स्पष्ट होती है। पिछले कई वर्षों से यहां उत्खनन में जो पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, उनमें विभिन्न काल खंड में ब्रज क्षेत्र की धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति के उन्नत होने के प्रमाण मिले हैं।

यहीं से प्राप्त हुई मिट्टी की सीलिंग
सारस्वत ने बताया कि उत्खनन से प्राप्त परिणामों से ये पता चलता है कि सबसे पहले यहां सूखी नदी के अवशेष मिले हैं जो संभवत: यमुना अथवा उसकी किसी सहायक नदी का भाग रही होगी। पुरातात्विक जमाव में यहां गैरिक मृदभांड संस्कृति के जमाव के उपर सबसे मोटा जमाव चित्रित्त धूसर मृदभांड संस्कृति का प्राप्त हुआ है। जिसमे विभिन्न कार्य-स्तर की पहचान की गई। इससे इस क्षेत्र की प्राचीनता का पता चलता है। पुरातत्वविद पवन सारस्वत ने बताया कि इसी सांस्कृतिक जमाव में मिट्टी की सीलिंग (मुहर-मुद्रण) मिला है जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में एकमात्र यहीं से प्राप्त हुआ है। इसके साथ ही पक्की मिटटी के बने शिव-पार्वती का अंकन भी शिव पूजा के प्राचीनतम पुरातात्विक प्रमाण है। चित्रित्त धूसर मृदभांड संस्कृति का पुरातात्विक जमाव अधिकतर उन स्थलों पर से प्राप्त होता है जो महाभारत में वर्णित है, इसलिए अनेक पुरातत्वविद इसे महाभारत कालीन संस्कृति भी मानते हैं।

औद्योगिक नगर होने के मिलते हैं प्रमाण
अन्यत्र कालखंडों में प्राक-मौर्य समय में यज्ञ कुंडों तथा उसमे अर्पित सिक्कों के प्रमाण मिलना भी बहुत महतवपूर्ण है। इसी काल के चांदी के पंचमार्क सिक्को की प्राप्ति यहां की आर्थिक स्थिति के सुदृढ़ होने का प्रमाण है। इसके अलावा वर्तुल कूप (रिन्गवेल), भवन स्थापत्य आदि के उन्नत होने के प्रमाण मिलते हैं। इन कालों के बाद टीले के उपरी जमाव में शुंग-कुषाण काल में इस क्षेत्र के औद्योगिक नगर होने के प्रमाण मिलते हैं। जिनमें हड्डियों से अत्यंत तक्षण औजार लेखनी, पॉइंट, मनके और कंघे आदि बनाने की कार्यशाला मिली है। साथ ही इसी कालखंड में यहां अर्ध्मुल्य्वान पत्थर के मनके बनाने की कार्यशाला का भी पता चलता है जिसमें सुसज्जित कार्नेलियन, अगेट आदि के उत्पाद और कच्चा माल दोनों यहां से मिला है। इसी के साथ अनेक देवी देवताओं की पत्थर और टेराकोटा की मूर्तियां प्राप्त हुई है। राजस्थान में कालीबंगा के बाद कई दशकों बाद वृहद स्तर पर ऐसा उत्खनन हुआ है जिससे प्राप्त परिणामों से प्राचीन भारतीय इतिहास लेखन में सहायता होगी।

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