राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का फैसला : आइएएस कृष्ण कुणाल को अवमानना याचिका से बरी करने का निर्णय बरकरार
कुणाल का नाम याचिका में यथावत रखने का अनुरोध
अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि जिला आयोग ने डाक से आए पत्र को दस हजार की कॉस्ट के साथ खारिज कर कुणाल को आपराधिक अवमानना याचिका से बरी करने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की है सो निगरानी याचिका खारिज की जाए।
जोधपुर। राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष देवेन्द्र कच्छवाहा और सदस्य लियाकत अली ने निगरानी याचिका खारिज करते हुए वरिष्ठ आइएएस और वर्तमान में प्रमुख शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिका से बरी करने के जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय को बरकरार रखा। लक्ष्मण खेतानी ने निगरानी याचिका दायर कर कहा कि जिला आयोग ने कुणाल के खिलाफ दायर आपराधिक अवमानना याचिका को खारिज कर गलत किया है,क्योंकि एक बार अवमानना याचिका दायर हो जाने और चार्ज सुनाए जाने के बाद आपराधिक अवमानना याचिका से नाम हटाकर उनके खिलाफ कार्रवाई समाप्त नहीं की जा सकती है।
कुणाल की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता अनिल भंडारी ने कहा कि 25 नवंबर 2006 को जिला आयोग ने श्याम नगर के भूखंड संख्या 248,249,357 और 404 का भौतिक कब्जा खेतानी को दिए जाने का आदेश नगर सुधार न्यास को दिया था। उन्होंने कहा कि निगरानी कर्ता ने जिला आयोग के समक्ष आपराधिक अवमानना याचिका में प्रार्थना पत्र पेश कर कहा था कि कुणाल का बतौर जेडीए सचिव कार्यकाल बहुत ही कम अवधि का रहा है और उन्होंने पुरजोर कोशिश की कि याची को भूखंड का कब्जा सौंप दिया जाए सो वह अवमानना याचिका से कुणाल का नाम हटाना चाहता है। उन्होंने कहा कि एक माह बाद डाक से पत्र भेजकर याची ने कुणाल का नाम याचिका में यथावत रखने का अनुरोध किया।
अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि जिला आयोग ने डाक से आए पत्र को दस हजार की कॉस्ट के साथ खारिज कर कुणाल को आपराधिक अवमानना याचिका से बरी करने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की है सो निगरानी याचिका खारिज की जाए। राज्य उपभोक्ता आयोग ने निगरानी याचिका को खारिज करते कहा कि याची ने जिला आयोग के फैसले के मद्देनजर दस हजार रुपए की कॉस्ट जमा करवा कर डाक से भेजे प्रार्थना पत्र को खारिज करने के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया और याची ने स्वयं जिला आयोग के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश कर कहा कि कुणाल ने जिला आयोग के आदेश की पालना करने की पूरी कोशिश की थी सो अब जिला आयोग के आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती है और निगरानी याचिका बिलकुल ही सारहीन है।

Comment List