जल संरक्षण अभियान : जलाशयों पर जीवन के संगीत की लहरें, गूंजने लगा पक्षियों का कलरव

बिलाड़ा क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोतों को मिली संजीवनी

जल संरक्षण अभियान : जलाशयों पर जीवन के संगीत की लहरें, गूंजने लगा पक्षियों का कलरव

यहां बारहेडेड गीज, ग्रेलग गूज, नॉर्दर्न शॉवेलर जैसे जलपक्षियों की बड़ी संख्या देखने को मिलती है।

जोधपुर। प्रदेश सरकार के जल संरक्षण अभियान व प्रशासन की सक्रियता से बिलाड़ा क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोतों को न केवल संजीवनी मिली है, बल्कि इन्हें जीव विविधता के स्वर्ग में बदल दिया है। रामासनी व ओलवी के तालाब, नीलकंठ महादेव सरोवर, कापरड़ा तालाब, चांदेलाअ तालाब सहित आसपास के खेतों में प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के लिए ये तालाब अब आवास बन चुके हैं।हर साल सेंट्रल एशिया, मंगोलिया जैसे दूरस्थ देशों से हजारों किलोमीटर की यात्रा कर आने वाले 10 से 12 हजार पक्षी यहां शीत ऋतु बिताते हैं। ईथोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की संयुक्त सचिव प्रो. रेणु कोहली बताती हैं, कि क्षेत्र में 100 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पंजीकृत हैं। इनमें नॉर्दर्न पिंटेल, स्पॉट-बिल्ड डक, कॉमन टील, ग्रे लग गूज, पैलिकन, शिकरा, मार्श हैरियर और दुर्लभ लाल कलगीदार पोचार्ड जैसी अनेक प्रजातियां शामिल हैं।ओलवी और रामासनी के तालाब पक्षियों को न केवल पानी बल्कि प्रचुर मात्रा में जलमग्न वनस्पति और कीट प्रदान करते हैं, जो इनके भोजन का मुख्य स्रोत हैं। यहां बारहेडेड गीज, ग्रेलग गूज, नॉर्दर्न शॉवेलर जैसे जलपक्षियों की बड़ी संख्या देखने को मिलती है। ओलवी तालाब पर 1000 से अधिक पक्षियों का झुंड देखा गया है।

 सेंडग्राउज का रहस्यमय स्नान
सबसे आकर्षक पक्षी में से एक है नर सेंडग्राउज, जो अपने बच्चों के लिए पंखों में पानी भरकर 20 किलोमीटर तक उड़ता है। प्रो. कोहली बताती हैं, कि इसके शरीर के निचले पंख विशेष रचना के होते हैं जो पानी सोख सकते हैं। यह पक्षी एक बार में लगभग 25 मिलीलीटर जलाशय में पंखों को डुबोकर पानी भरता है और फिर घोंसले में जाकर चूजों को पंखों से पानी पिलाता है। इस बार ओलवी तालाब पर सेंडग्राउज की असाधारण संख्या दर्ज की गई है। जो पक्षी पहले कभी-कभार दिखते थे, अब झुंड के झुंड नजर आ रहे हैं। जो जल संरक्षण और जैव विविधता के बीच का जीवंत रिश्ता दर्शाता है।

सरकार की पहल और प्रशासन का प्रयास
राज्य सरकार के जल जीवन मिशन, अमृत सरोवर योजना और जलाशयों के पुनर्जीवन की दिशा में उठाए कदमों के फलस्वरूप बिलाड़ा क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोत आज केवल पानी के भंडार ही नहीं, बल्कि जैविक विविधता के केंद्र बन गए हैं।सरपंच अशोक बिश्नोई के अनुसार, कुछ संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जाने तथा प्रशासन और स्थानीय लोगों के समर्पण ने इन जलाशयों को एक नई जिन्दगी दी। 

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