बायोलॉजिकल पार्क को झटका, अटकी बब्बर शेर व भालू की एंट्री
लॉयन और भालू लाने की एक साल बाद भी नहीं मिली परमिशन
कोटा की लॉयनेस और मादा भालू का जोड़ा बनाने के लिए वन्यजीव विभाग ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को पिछले साल प्रस्ताव भिजवाएं थे, जिसकी स्वीकृति नहीं मिली।
कोटा। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में बब्बर शेर, भालू और फॉक्स की एंट्री अटक गई। वन्यजीव विभाग को एक साल बाद भी इन्हें लाने की परमिशन नहीं मिली। नतीजन, शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों का जीवन लंबे समय से अकेले ही कट रहा है। किसी को दूल्हा तो किसी को दुल्हनिया का इंतजार है। विभाग ने प्रस्ताव भी भेजे लेकिन केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से स्वीकृति नहीं मिली। जिसकी वजह से उदयपुर सज्जनगढ़ से लॉयन अली व नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से गणेश की अभेड़ा में एंट्री अटक गई। दरअसल, कोटा की शेरनी सुहासिनी और मादा भालू काली का जोड़ा बनाने के लिए वन्यजीव विभाग ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को पिछले साल प्रस्ताव भिजवाएं थे, जिसकी स्वीकृति नहीं मिली। इसके बाद रिमाइंडर भिजवाए, जिस पर भी बात नहीं बनी। ऐसे में अकेले रहने से वन्यजीवों पर साइकोलोजी प्रभाव पड़ रहे हैं।
लाने को तैयार पर स्वीकृत का इंतजार
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पूर्व में लॉयन व टाइगर का जोड़ा लाने के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को प्रस्ताव भेज चुके थे। जहां से लॉयनेस व टाइगर लाने की परमिशन मिली थी। गत 20 फरवरी को शेरनी सुहासिनी को जयपुर नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में शिफ्ट किया। इसके बाद 1 मार्च को नाहरगढ़ से ही टाइगर का जोड़ा शिफ्ट कर दिया था लेकिन, बब्बर शेर अली की स्वीकृति नहीं मिल पाई। ऐसे में गत फरवरी माह में फिर से प्रस्ताव बनाकर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को भेजे गए। वहां से स्वीकृति मिलने के बाद सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेज दिए लेकिन वहां से अभी तक स्वीकृति नहीं मिल सकी।
सीजेडए की मोहर के बाद ही एंट्री संभव
बब्बर शेर को उदयपुर के सज्जनगढ़ तथा नर भालू को जयपुर के नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से लाया जाना है। दोनों की एंट्री अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में तब तक नहीं हो पाएगी, जब तक सीजेडए की प्रस्ताव पर मोहर न लग जाए। लॉयनेस की उम्र करीब 13 साल तो मादा भालू करीब 2 साल की हो गई है।
जीते-जी सांभर को नहीं मिला जीवन साथी
बायोलॉजिकल पार्क से मिली जानकारी के अनुसार सांभर को वर्ष 2020 की शुरुआत में रेस्क्यू कर लाया गया था। उसकी उम्र 10 वर्ष थी लेकिन अभेड़ा में 3 साल से अकेला रहा। कुछ माह पहले उसकी मौत हो गई। अकेले रहने से वन्यजीवों का जीवन साइकोलोजी रूप से प्रभावित होता है। इनका व्यवहार बदल जाता है। जबकि, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की गाइड लाइन के अनुसार जू में किसी भी जानवर बिना जोड़े के नहीं रखा जा सकता। इसके बावजूद बायोलॉजिकल पार्क में कई वन्यजीव अकेले ही जीवन काटने को मजबूर हैं।
प्रस्ताव भेजे हैं, स्वीकृति मिलते ही लाएंगे
बब्बर शेर को सज्जनगढ़ तथा नर भालू को नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से लाया जाना है। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को पूर्व में प्रस्ताव भेजे गए थे। जहां से स्वीकृति भी मिल गई। लेकिन केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को भेजे प्रस्ताव पर स्वीकृति नहीं मिली है। परमिशन मिलते के बाद ही लाया जा सकेगा।
- दुर्गेश कहार, रैंजर, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क
अकेलापन से स्ट्रेस में रहते हैं वन्यजीव
कोई भी एनिमल अकेले रहने से स्ट्रेस में आ जाता है। उनमें फिजियोलोजिकल व व्यवहार में बदलाव आते हैं। इससे उनका जीवन कम हो जाता है। लाइफ स्पान घट जाता है। प्रजन्न क्षमता कम होती है। भोजन कम होना और चिड़चिड़ापन की शिकायत रहती है। एनिमल कलेक्शन प्लान के तहत वन्यजीवों को समूह व जोड़ों में रखा जाना होता है। किसी भी चिड़ियाघर या बायोलॉजिकल पार्क में वन्यजीवों को अकेला रखना उनके साथ हिंसा करना जैसा है। अकेलापन, सीजेडए की गाइड लाइन के विपरीत है। यहां जो भी एनिमल अकेले हैं, जल्द से जल्द उनका जोड़ा बनाया जाना चाहिए।
- अखिलेश पांडे, वरिष्ठ पशुचिकित्सक, बहुउद्देशिय पशु चिकित्सालय

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