अलर्ट: एक पल में सैकड़ों को मौत की नींद सुला सकती हैं स्लीपर बसें
सुरक्षा की अनदेखी से यात्रियों के लिए घातक साबित हो रही स्लीपर बसें
ग्लोबल स्टडीज से यह पता चला है कि हाईवे और ग्रामीण सड़कों पर यात्रा करते समय ड्राइवरों के सो जाने की संभावना अधिक होती है।
कोटा। बुलढाणा हादसे के बाद स्लीपर बसों के सुरक्षित होने पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए। इनकी डिजाइन ही इतनी खतरनाक है कि यह बसें कभी भी दुर्घटना का शिकार हो सकती हैं। छोटा सा शॉर्ट सर्किट एक पल में बस को आग का गोला बना सकता है। पिछले दिनों बुलडाना बस हादसे के बाद इन बसों में यात्रा करने वाले यात्रियों में भय सा बैठ गया है। दूसरी तरफ बस मालिक बिना सुरक्षा इंतजामों के धडल्ले से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में इनका मन माफिक मैन्युफैक्चरिंग करवाकर यात्रियों की जान से खेल रहे हैं। कोटा में 80 स्लीपर बसें रजिस्टर्ड हैं जब कि 150 से अधिक बसें आवागमन करती हैं। जानकार बताते हैं, 12 मीटर लंबी और 10 फीट उंची बसों का झुकाव एक तरह अधिक रहने से पलटने का खतरा अधिक रहता है। वहीं, बसों को लग्जरी रूप देने के लिए एसेसरीज का बढ़ता चलन शॉर्ट सर्किट के रूप में घातक साबित हो रहा है और आगजनी की घटनाएं बढ़ रही हैं। वहीं, बसों की फिटनेस जांचने के लिए परिवहन विभाग द्वारा प्राइवेट एजेंसी को ठेका दिया हुआ है। जिस पर सरकारी कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में सांठगांठ से अनफिट बसों को भी फिटनेस सर्टिफिकेट मिलने का अंदेशा रहता है। इन सबके बीच यात्रियों की जान दांव पर लगी रहती है।
प्राइवेट संस्था को फिटनेस जांचने का ठेका
आरटीओ से मिली जानकारी के अनुसार कोटा में 80 स्लीपर बसें रजिस्टर्ड हैं। जिनसे परिवहन विभाग 520 रूपए प्रति सीट के हिसाब से टैक्स वसूलता है। लेकिन, खुद इन बसों की फिटनेस नहीं जांचता। परिवहन विभाग मुख्यालय ने प्रत्येक जिले में प्राइवेट संस्था को बसों की फिटनेस जांचने का ठेका दिया हुआ है, जिस पर सरकारी नियंत्रण नहीं होता। ऐसे में सांठगांठ की आशंका रहती है। हालांकि, आरटीओ रोड पर चल रही बसों की निर्धारित पैरामीटर पर जांच करते हैं।
ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम न होना
एक्सपर्ट बताते हैं, अधिकतर स्लीपर बसों में ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम नहीं होता। ड्राउजीनेस अलर्ट सिस्टम नींद आने पर ड्राइवर को अलर्ट करता है। यह सिस्टम स्टीयरिंग के विभिन्न हिस्सों में लगे सेंसर और डैशबोर्ड पर कैमरे का उपयोग करता है। चालक के नींद या झपकी में सिस्टम बीप की तेज आवाज से सो रहे ड्राइवरों को सचेत करता है।
सर्वे में ड्राइवरों ने किया स्वीकार
सड़क परिवहन मंत्रालय ने वर्ष 2018 में 15 राज्यों में ड्राइवरों पर एक सर्वे किया था। इस सर्वे में शामिल करीब 25 ड्राइवरों ने स्वीकार किया था कि गाड़ी चलाते समय वे सो गए थे। ग्लोबल स्टडीज से यह भी पता चला है कि हाईवे और ग्रामीण सड़कों पर यात्रा करते समय ड्राइवरों के सो जाने की संभावना अधिक होती है। साथ ही आधी रात से सुबह 6 बजे के बीच इस तरह की घटनाएं होने की संभावना ज्यादा होती है।
चीन 11 साल पहले लगा चुका बैन
चीन में वर्ष 2009 के बाद स्लीपर बस से जुड़े 13 हादसे हुए। इस दौरान 252 लोगों की मौत हो गई। वहीं, 2011 में हेनान प्रांत में एक स्लीपर बस में आग लगने से 41 लोगों की मौत हो गई थी। 28 अगस्त 2012 को शानक्सी प्रांत में एक हाईवे पर स्लीपर बस मेथनॉल ले जा रही टैंकर से टकरा गई। बस में आग लगने से 36 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद चीन में स्लीपर बसों के नए रजिस्ट्रेशन पर बैन लगा दिया था।
बॉडी मैकेनिक एक्सपर्ट ने बताई हादसों की प्रमुख वजह
बस में जगह की तंगी, हिलना-डुलना मुश्किल
स्लीपर बसें यात्रियों को सोने की सुविधा तो देती है लेकिन आने-जाने के लिए जगह बहुत कम होती है। बीच में छोटी सी गैलरी होती है। दुर्घटना के समय यात्री इसमें से निकल नहीं सकते।
आम तौर पर स्लीपर कोच में 30 से 36 सीट होती है। मल्टी-एक्सल कोचों में सीटों की संख्या 36-40 के बीच होती है। सभी बर्थ की लंबाई लगभग 6 फीट और चौड़ाई 2.6 फीट होती है। बस मालिक इसमें काफी फैरबदल करवा लेते हैं। जो दुर्घटना के बायस बनते हैं।
बसों की ऊंचाई का अधिक होना
स्लीपर बसें आमतौर पर 8 से 9 फीट ऊंची होती हैं। लेकिन, बस मालिक लगेज के लिए दो डिग्गी पैनल बनवाते हैं, जिससे बसों की उंचाई 10 से 12 फीट तक पहुंच जाती है। हाइवे पर घुमाव के दौरान बस अचानक एक तरफ झुक जाने से पलट जाती है।
ड्राइवर की ओवर वर्किंग
ज्यादातर स्लीपर बसें 300 से 1000 किमी का सफर रात में ही तय करती हैं। लंबे रूट में ड्राइवर के थकने और झपकी आ जाने की संभावना पूरी होती है। अधिकतर हादसे रात 2 से 5 बजे के बीच ही हुए हैं। बुलढाणा हादसे में बस पर नियंत्रण खोने से पहले ड्राइवर को झपकी आने की बात भी सामने आई है। तभी बस हाइवे पर पोल से टकराई।
शार्ट सर्किट बड़ा कारण
स्लीपर कोच में बाडी तैयार करवाते समय मालिक मनमाने तरीके से पंखे, चार्जिंग प्वाइंट,एसी विन्डो,पंखे आदि लगा देते हैं जो शार्ट सर्किट का कारण बनते हैं।
2020 से 2021 तक हुए बड़े हादसे
जनवरी 2020 - यूपी के कन्नौज में स्लीपर बस में आगे से 20 यात्रियों की मौत
जून 2022 - कर्नाटक के कलबुर्गी जिल के कमलापुरा कस्बे के पास हादसे में 7 लोगों की मौत ।
अक्टूबर 2022 - यवतमाल से मुंबई जा रही स्लीपर बस के नासिक के पास ट्रेलर से टकराने के बाद आग लगी। 12 लोगों की मौत हो। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर स्लीपर बस डंपर से टकरा गई। 4 यात्रियों की मौत, 42 लोग घायल।
11 मार्च 2022 - बारां जिले में नेशनल हाइवे 27 पर स्लीपर कोच बस पलट गई। बस में सवार 21 यात्री गंभीर घायल हो गए। यह बस अहमदाबाद से कानपुर जा रही थी।
1 जुलाई 2023 - महाराष्टÑ के बुलढाणा में समृद्धि हाइवे पर देर रात डिवाइर से टकराने के बाद स्लीपर बस में आग लग गई। इससे 25 यात्री जिंदा जल गए।
मैं सो जाता तो न जाने कितने लोग जिंदा जल जाते
आंखों देखी
परिवार सहित जोधपुर से कोटा आ रहा था। बस में करीब 80 से 100 यात्री सवार थे। रात 3 बजे का समय था। मैं जगा हुआ था। हमारी वोल्वो बस ब्यावर से 25 किमी दूर नेशनल हाइवे पर थी। रास्ते में ढाबा आया, वे लोग बस की ओर देखकर इशारा कर रहे थे लेकिन ड्राइवर ने ध्यान नहीं दिया। दूसरे ट्रक चालक ने बस के पास आकर बताया कि भाई बस में आग लग रही है। आग बस के आगे के हिस्से में शोर्ट सर्किट से लगी थी। यात्रियों को खिड़कियां बजा बजा कर जगाया। तब तक आग की लपटे केबीन को चपेट में ले चुकी थी। चीख-पुकार मचने लगी। ईश्वर की कृपा से समय रहते सभी यात्रियों को सह कुशल बाहर निकाल लिया। 5 मिनट में ही लग्जरी वोल्वो खाक में बदल गई। हादसे में बूंदी के तालेड़ा में बेटी को पेरावहनी पहनाने जा रहे एक माता-पिता का 9 तोला सोना और कपड़ों का ढेर जलकर राख हो गया।
- कपिल सिंह केशवपुरा सैक्टर 7 निवासी
स्लीपर बसें बंद होनी चाहिए
मैं कोटा से जोधपुर विवाह समारोह के लिए जा रहा था। गर्मी के दिन थे। रात में बस में एसी चल रहा था। तड़के 4 बजे बिलाड़ा से पहले अचानक बस के पिछले हिस्से में किसी ने लपटें उठती देखी। बस चालक को बताया तो बस रोकी और सभी सवारियों को निकाला। कुछ ही पलों में बस खाक हो गई। केवल इनसान बचे। ऐसी बसों को अब बंद कर देना चाहिए यह बहुत खतरनाक हैं।
- दुर्गा शंकर पाटीदार, जय हिन्द कॉलोनी निवासी
स्लीपर बसें सुरक्षित हैं या नहीं, इसका फैसला भारत सरकार करती है। परिवहन विभाग मुख्यालय ने बसों की फिटनेस जांचने के लिए प्राइवेट संस्था को ठेका दिया है। वहीं, आरटीओ इंस्पेक्टर भी हाइवे व शहरी सड़कों से गुजरने वाली बसों की निर्धारित मापदंड के अनुरूप बसों की फिटनेस जांचते हैं।
- दिनेश सिंह सागर, अतिरिक्त प्रादेशिक परिवहन अधिकारी कोटा
गाड़ियों की आधा व एक फीट लंबाई बॉडी बिल्डर खुद बढ़ाते थे। लेकिन यह दो साल पहले तक होता था। अब यह बंद हो गया है। सरकार पीछे की तरफ इमरजेंसी गेट बनाने की परमिशन नहीं देती है। यदि, इजाजत बने तो हम बड़ा गेट बनवाएंगे। बस पलटने व आगजनी की घटना के दौरान कांच तोड़कर या एक्जिट गेट से बाहर निकलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वर्ष 2017 में सरकार ने एक नियम बनाया था, जिसके तहत बॉडी बिल्डर को लिखकर देना होता था कि वह बस में क्या-क्या सामान लगा रहा है। लेकिन, यह नियम भी बंद हो गया। बस में लगाए गए मेटेरियल की क्वालिटी जांच नहीं होती।1000 किमी की दूरी पर दो ड्राइवर होते हैं और 500 से कम दूरी वाली बसों में सिंगल ड्राइवर होता है। बसों में लगातार हो रही घटनाओं के मद्देनजर एसोसिएशन की बैठक कर सुरक्षा को लेकर सभी जरूरी इंतजाम किए जाएंगे।
- अशोक कुमार, अध्यक्ष, कोटा ट्रेवल एसोसिएशन
आज से करीब 5 साल पहले तक आरटीओ ट्रैक्टर-ट्रॉली की डिजाइन व उसमें लगे इलेक्ट्रिक पार्ट्स सहित अन्य मेटेरियल जांचने के लिए राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में भेजा जाता था। यहां लैब में मेटेरियल की गुणवत्ता व स्टेबिलिटी की जांच की जाती थी लेकिन अब यह वाहन नहीं आते। आरटीओ को बॉडी बिल्डर द्वारा बनाई गई बसों की बॉडी का डिजाइन, वायरिंग, सीट कवर, स्पंच सहित अन्य हाडवेयर व वायरिंग से संबंधित मेटेरियल की टेस्टिंग करवानी चाहिए। बस के अंदर लगने वाले उपकरणों की गुणवत्ता परखी जानी बेहद जरूरी है।
- मनीष चतुर्वेदी, प्रोफेसर मैकेनिकल विभाग, आरटीयू

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