डिजिटल दौर की समस्या: शहर में लगातार बढ़ रहा ई-वेस्ट, निष्पादन की नहीं व्यवस्था

ई-वेस्ट को खरीदने के लिए नहीं कोई आधिकारिक सेंटर व डीलर

डिजिटल दौर की समस्या: शहर में लगातार बढ़ रहा ई-वेस्ट, निष्पादन की नहीं व्यवस्था

मोबाइल और कम्प्यूटर के उपयोग के कारण शहर में ई-वेस्ट पिछले कुछ सालों में काफी मात्रा में बढ़ा है।

कोटा। डिजिटल दौर में हर काम कम्प्यूटर और मोबाइल पर होने लगा है। जिसने देश दुनिया में मोबाइल और कम्प्यूटर की मांग बढ़ रही है। वही इसी मांग के चलते हमारे वातावरण में ई-वेस्ट की भी मात्रा लगातार बढ़ रही है। इलेक्ट्रिक उत्पादकों के कुछ पार्ट्स को तो रिसाइकल कर लिया जाता है। लेकिन कुछ पाटर््स ऐसे हैं, जिन्हें ना तो रिसाइकल किया जा सकता है ना ही नष्ट जो कचरा पॉइंट या सड़कों और दुकानों में यूं ही पड़ा रहता है। जो वातावारण में मौजूद प्रदूषण को लगातार बढ़ा रहा है।

पिछले कुछ सालों में बढ़ा ई-कचरा
मोबाइल और कम्प्यूटर के उपयोग के कारण शहर में ई-वेस्ट पिछले कुछ सालों में काफी मात्रा में बढ़ा है। जिसमें सबसे ज्यादा कम्प्यूटर, की-बोर्ड, माउस, टीवी, मोबाइल, ई-व्हीकल और अन्य वाहनों की बैटरी सहित अन्य सामनों से निकला ई-वेस्ट शामिल है। शहर में सालाना 800 से 850 टन कचरा निकलता है। इसमें प्लास्टिक की थैलियां, कांच, टायर, लोहे का स्क्रेप सहित अन्य कचरा होता है। इसमें करीब 5 प्रतिशत यानि 40 टन कचरा ई-वेस्ट होता है। लेकिन इसमें से निगम द्वारा साल भर में केवल 100 से 150 किलो ई वेस्ट का निष्पादन किया जाता है। बाकि कचरा कबाड़ी या दूसरे वेंडरों के पास जाता है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों में बढ़ोतरी को देखते हुए दस साल में ई-वेस्ट पूरे कचरे का 10 से 12 प्रतिशत पहुंच सकता है।

ई-वेस्ट के ये नुकसान
पर्यावरणविद् सौरभ मेहता ने बताया कि ई वेस्ट में कई तरह के हानिकारक तत्व होते हैं जो शरीर पर बुरा प्रभाव डालते हैं। ुई वेस्ट में मौजूद सीसा, पारा और कैडमियम के संपर्क में आने से तंत्रिका, गुर्दे और मस्तिष्क को नुकसान, ई-कचरे के धुएं से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारी, सीसा और कैडमियम जैसे रसायनों से बांझपन और प्रजनन रोग, डाईआॅक्सिन के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा, इससे मिट्टी और जल प्रदूषण, खाद्य श्रृंखला पर असर और क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस से ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। 

कोटा में नहीं कोई आॅथोराइज्ड डीलर व सेंटर
शहर में नियमित ई-वेस्ट कलेक्शन के लिए कोई आॅथोराइज्ड सेंटर या डीलर नहीं है जो इन्हें खरीदकर आगे भेजता या इनका सेगरेगेशन करता हो। शहर में लोग स्क्रेप खरीदने वाले कबाड़ियों या इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकानों पर ही पुराने ई सामान या ई वेस्ट को बेच रहे हैं। जहां इलेक्ट्रिोनिक्स की दुकान वाले और कबाड़ी केवल जरूरी चीजें निकाल लेते हैं जबकि बचे हुए ई-वेस्ट को यूं ही फेंक देते हैं। जो सड़कों से लेकर कचरा पॉइन्ट तक प्रदूषण करता है। वहीं नगर निगम, जिला प्रशासन और प्रदूषण मंडल स्तर पर भी ई वेस्ट के लिए पर्याप्त निष्पादन की व्यवस्था नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने करीब दो वर्ष पहले रिपोर्ट जारी की थी। इसके तहत 2021-22 तक देश में 14 लाख 15 हजार 961 टन ई-वेस्ट पैदा हुआ था। इसमें से 70 फीसदी का निष्पादन सही ढंग से नहीं हो पाया है।

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दुकान वालों का कहना है
ई वेस्ट ज्यादातर अब मोबाइल और कम्प्यूटर से निकलता है अब इसमें टीवी भी शामिल हो गई है। बहुत सारे पार्ट्स को री यूज कर लिया जाता है। लेकिन लीथियम बैटरी और मदर बोर्ड का फिर उपयोग नहीं हो पाता। ऐसे में इन्हें री साइकल करने के लिए बाहर ही भेजना पड़ता है जो महंगा होता है।
- आतिक अहमद, कम्प्यूटर विक्रेता, भीमगंज मंडी

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शहर में ई वेस्ट का कोई सेंटर नहीं है, सब कबाड़ी वाले को ही बेचते हैं। जो केवल उन्हीं चीजों को लेते हैं जो आसानी से री साइकल या री यूजेबल हों, बाकि चीजें बिना किसी निष्पादन के पड़ी रहती हैं, या उन्हें बाहर री साइकल के लिए बाहर भेजना पड़ता है।
- मनमोहन सिंह, कम्प्यूटर विक्रेता, गुमानपुरा

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इनका कहना है
शहर में अभी ई वेस्ट के लिए कोई आॅथोराइज सेंटर या डीलर नहीं है। राइजिंग राजस्थान समिट के दौरान कुछ इन्वेस्टरर्स ने इसके लिए आवेदन किया है। जिसके बाद कोटा में भी ई वेस्ट का आधिकारिक खरीद और निष्पादन हो सकेगा। 
- अमित सोनी, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कोटा

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