मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है...

पॉवर लिफ्टिंग की चैंपियन पहुंची नवज्योति, जताया आभार

मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है...

यदि सहयोग और सपोर्टमिले तो वह खुद अकादमी खोलकर पॉवर लिफ्टिंग की टैÑनिंग देना चाहेंगी, शोभा ने जिस तरह से तमाम मुसीबतों का सामना करते हुए इस मुकाम को हासिल किया वो दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

कोटा। मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। राजस्थान की बेटी शिक्षिका  शोभा माथुर इसका एक बड़ा उदाहरण हैं। पति की मौत के बाद शोभा को डिप्रेशन ने घेर लिया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वेट लिफ्टिंग में अपना करियर बनाने पर फोकस किया। नजीता सबके सामने है। अब वो एक जाना-माना नाम हैं और सिल्वर से लेकर गोल्ड मेडल अपने नाम कर चुकी हैं।

छलक उठी आंखें जब कानों में पड़े राष्टÑगान के बोल 
वह कहती हैं जब मैं कक्षा 8 में पढ़ती थी। अभ्यास के लिए नयापुरा स्टेडियम में जाया करती थी तो उस समय वहां सेना से रिटायर्ड एक फौजदार आया करते थे । वह मेरी खेल के प्रति लगन और मेहनत को देखकर कहते थे कि बेटा इस आग को कभी ठन्डी मत होने देना। वो कहते थे कि जब किसी खिलाड़ी के सम्मान में राष्टÑगान गाया जाता है तो उसे भी उतना की सम्मान देना चाहिए जितना एक सैनिक को मिलता है। मुझे उनकी सालों पहले की ये बात उस समय याद आई जब मैं पोडियम पर खड़ी थी।  केरल में मैडल प्रदान करते समय राष्टÑगान की धुन मेरे कानों में पहुंच रही थी। यह कहते-कहते मंगलवार को एशियन पॉवर लिफ्टिंग चैंपियनशिप के मास्टर वर्ग में गोल्ड मेडल हांसिल करने वाली माथुर की आंखें उस समय छलक उठी जब वो नवज्योति कार्यालय में आभार प्रकट करने के लिए आई थी।

अकादमी खोल बच्चियों को ट्रैनिंग देने की इच्छा
शोभा माथुर  एशियन पॉवर लिफ्टिंग चैंपियन बनने के बाद मंगलवार को नवज्योति कार्यालय पर पहुंची और पूरी टीम का आभार जताया। इस दौरान नवज्योति टीम की ओर से भी उनका स्वागत किया गया। कार्यालय में बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे कोटा की उन बच्चियों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है जो खेल में अपने जीवन को तलाश रही हैं। यदि सहयोग और सपोर्टमिले तो वह खुद अकादमी खोलकर पॉवर लिफ्टिंग की टैÑनिंग देना चाहेंगी। वे बताती है कि जिस तरह उन्होंने मुझे खेलने के लिए इतना प्रोत्साहित किया उसी से प्रेरणा लेकर मैं भी दूसरी लड़कियों को प्रोत्साहित करूंगी। शोभा ने जिस तरह से तमाम मुसीबतों का सामना करते हुए इस मुकाम को हासिल किया वो दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

आसान नहीं रहा सफर 
इस समय खूब तारीफ बटोरने वाली रावतभाटा के एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका 53 वर्षीय शोभा का यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। पति की मौत के बाद खुद को सदमे से उबारा और बच्चों के प्रति जिम्मेदारी बखूबी निभाई। इसमें परिवार का साथ मिला तो पॉवर लिफ्टिंग में फिर से जोर आजमाइश शुरू की अ‍ौर खुद को मजबूती के साथ दोबारा खड़ा करके पावर लिफ्टिंग के नाम कर दिया। खेल में कामयाबी का सिलसिला शुरू हुआ। इसके बाद शोभा ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। शोभा के घर में एक अलमारी अवॉर्डों से भरी है। जो शोभा की कामयाबी की गवाही देता है।

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कई मेडल जीत चुकी हैं शोभा
गत अक्टूबर में उन्होंने नेशनल मास्टर पुरुष-महिला क्लासिक पावर लिफ्टिंग चैंपियनशिप में 290 किलो का वजन उठाकर सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। शोभा ने पहली बार साल 2021 में राज्यस्तरीय पावर लिफ्टिंग में मेडल जीता। इसके बाद 220 किलो का वजन उठाकर स्वर्ण पदक हांसिल किया। अब 2023 में आयोजित हुए एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर शहर का नाम रोशन किया।  

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ताने सुने लेकिन गुस्सा वर्क आउट पर उतारा
शोभा बताती है कि मेरा इस खेल का सफर इतना आसान नहीं है। पति की मौत के बाद विधवा होने पर एक स्त्री को क्या कुछ सहना पड़ता है। लोग किन निगाहों से उसे देखते हैं। बहुत मुश्किल होता है ये सब सुनना, देखना और सहन करना लेकिन मैने किया बजाय लोगों को जवाब देने के मैने सारा गुस्सा जिम में अभ्यास पर उतारा, कई बार तो आधी रात के बाद जब मैं जिम में वर्क आउट के लिए जाती थी तो परिवार वाले मजाक में कहा करते थे कि ये क्या पागल हो गई है। शोभा बताती है कि हालात कैसे भी रहे हो लेकिन मेरे परिवारवालों ने हमेशा मेरा साथ दिया। उन्होंने हमेशा यहीं कहा कि तुम चलों हम तुम्हारे पीछे खड़े है।

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