कोटा में बब्बर शेर व भालू की एंट्री पर लगा लापरवाही का ब्रेक
दो साल बाद भी पर्यटकों को देखने को नहीं मिला लॉयन, स्लॉथ बीयर
सीजेडए से स्वीकृति मिलने के बावजूद 6 माह तक एनीमल लाने के प्रयास ही नहीं किए गए। ऐसे में पर्यटकों का भी मोह भंग होता जा रहा है।
कोटा। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में हाईब्रिड बब्बर शेर, भालू व फॉक्स की एंट्री पर लापरवाही के ब्रेक लग गए। दो साल बाद भी पर्यटकों को लॉयन और स्लॉथ बियर के दीदार नहीं हो सके। जबकि, सीजेडए से स्वीकृति मिल चुकी थी, इसके बावजूद एनीमल कोटा नहीं लाए जा सके। वन्यजीव विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण बायोलॉजिकल पार्क का ट्यूरिज्म को पंख नहीं सके। इतना ही नहीं, चिड़िया घर से शेड्यूल वन के मगरमच्छ, घड़ियाल व अजगर तक को शिफ्ट नहीं कर सके। ऐसे में पर्यटकों का घटते रुझान से राजस्व का भी नुकसान हो रहा है।
सीजेडए की गाइड लाइन की उड़ रही धज्जियां
शेरनी सुहासिनी को 20 फरवरी की रात नाहरगढ़ जयपुर से अभेड़ा लाया गया था। तब से वह अकेली रह रही है। जबकि, केंद्रीय प्राधिकरण की गाइड लाइन है कि चिड़ियाघर में कोई भी एनिमल अकेला न रहे लेकिन यहां एक साल से शेरनी व मादा भालू एकाकी जीवन काट रही है।
स्वीकृति मिली फिर भी नहीं ला सके लॉयन
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2022 में उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से बब्बर शेर को लाने की सीजेडए से स्वीकृति मिली थी। यह स्वीकृति 6 माह के लिए वेलिड थी, लेकिन वन्यजीव अधिकारियों द्वारा लॉयन लाए जाने के प्रयास नहीं किए गए, जिसकी वजह से सेंशन निरस्त हो गई। ऐसे में वन्यजीव अधिकारी अपनी गलती छिपाने के लिए सारा दोष केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण पर मढ़ रहे हैं। जबकि, 20 फरवरी 2023 को नाहरगढ़ से शेरनी को ले आए। ऐसे में एक साल बाद भी सुहासनी का जोड़ा नहीं बनाया जा सका।
नर की जगह मादा भालू की मिली परमिशन
सहायक वन संरक्षक राज बिहारी मित्तल का कहना है, वर्तमान में अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में मादा भालू है, जिसके लिए नाहरगढ़ जयपुर से नर भालू लाना था। इसके लिए हमने पूर्व में प्रस्ताव बनाकर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के माध्यम से केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को भेजा था। लेकिन वहां से नर की जगह मादा भालू की परमिशन दी गई। जबकि, अभेड़ा में पहले से ही मादा भालू मौजूद है। ऐसे में प्रस्ताव को संशोधित कर नर भालू की डिमांड से अवगत कराया। लेकिन, इस दरमियान सेंशन का वक्त गुजर गया। जिसकी वजह से सीजेडए से अभी तक परमिशन नहीं मिलने की वजह से भालू नहीं लाया जा सका। हालांकि, प्रयास लगातार जारी है।
इधर, तीन साल से शिफ्टिंग का इंतजार
बायोलॉजिकल पार्क के निर्माण के दौरान 44 एनक्लोजर बनने थे, लेकिन प्रथम चरण में मात्र 13 ही बन पाए। जबकि, 31 एनक्लोजर अभी बनने बाकी हैं। जब तक यह एनक्लोजर नहीं बनेंगे तब तक पुराने चिड़ियाघर में मौजूद अजगर, घड़ियाल, मगरमच्छ, बंदर व कछुए सहित एक दर्जन से अधिक वन्यजीव बायलॉजिकल पार्क में शिफ्ट नहीं हो पाएंगे। वन्यजीव प्रेमियों का कहना है,अधिकारियों में इच्छा शक्ति का अभाव है। सीजेडए से स्वीकृति मिलने के बावजूद 6 माह तक एनीमल लाने के प्रयास ही नहीं किए गए। ऐसे में पर्यटकों का भी मोह भंग होता जा रहा है।
अधिकारियों की लापरवाही से अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क प्रदेश के अन्य चिड़ियाघरों से पिछड़ा हुआ है। राष्टÑीय चंबल घड़ियाल सेंचुरी की शहरी सीमा में एक भी घड़ियाल नहीं है लेकिन चिड़िया घर में दो घड़ियाल हैं। इसके बावजूद पर्यटकों को देखने को नहीं मिलते। वहीं, लॉयन, भालू, फॉक्स, अजगर, मगरमच्छ जैसे बड़े जीव की कमी से पर्यटकों का रुझान घट रहा है। लापरवाह की हद यह है, गत माह हुई गोल्फ कार्ट संचालन समिति की बैठक में रेट तय होने के बावजूद गोल्फ नहीं चल सकी।
- देवव्रत सिंह हाड़ा, संस्थापक, पगमार्क फाउंडेशन
अधिकारियों की मंशा ट्यूरिज्म बढ़ाने की प्रतीत नहीं होती है। लापरवाही की हद है, लॉयन लाने की स्वीकृति मिलने के 6 माह बाद भी प्रयास नहीं किए गए। नतीजन, सेंशन ही निरस्त हो गई और लॉयन नहीं आ सका। असल में एनीमल लाने के प्रयास ही नहीं किए गए। वहीं, टाइगर के शावकों की जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हैं। वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट के मिस मैनेजमेंट से ईको ट्यूरिज्म को गति नहीं मिल रही।
- रोहिताश मीणा, छात्रसंघ महासचिव, कोटा यूनिवर्सिटी
तकनीकी कारणों से नहीं ला पाए शेर, प्रयास जारी
बब्बर शेर अली को उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से लाया जाना है। इसके लिए उच्चाधिकारियों को प्रस्ताव भेजे थे। इसके बाद सीजेडए से शेर लाने की परमिशन मिल गई थी, जो 6 माह के लिए ही वेलिड थी लेकिन तकनीकी कारणों से नहीं ला पाए। वहीं, उदयपुर सज्जनगढ़ से नर भालू लाने के प्रस्ताव भेजे गए थे लेकिन केंदीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से भूलवश: मादा भालू की परमिशन मिल गई। जबकि, डिमांड नर भालू की थी। ऐसे में संशोधन के लिए लिखा था। इस बीच 6 माह का निर्धारित वक्त गुजर गया। जिसकी वजह से भालू भी नहीं ला सके। दोनों ही प्रकरणों में उच्चाधिकारियों को लिखा है। जहां से स्वीकृति मिलते ही दोनों एनीमल लाए जाएंगे। इसके प्रयास निरंतर जारी है।
- राज बिहारी मित्तल, एसीएफ, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क

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