इसलिए नहीं बना कोटा स्मार्ट सिटी

9 साल में एक हजार करोड़ से अधिक के हुए विकास कार्य

इसलिए नहीं बना कोटा स्मार्ट सिटी

स्थानीय लोग ही शहर को गंदा करने में जुटे हैं।

कोटा। 1 केस - नगर निगम की ओर से हाइजनिक तरीके से कचरे के परिवहन के लिए आधुनिक कचरा ट्रांसफर स्टेशन का निर्माण कराया गया। सड़क पर कचरा नहीं डले इसके लिए आधुनिक व स्मार्ट डस्टबीन भी रखवाए। उसके बाद भी लोग कचरा पात्रों के बाहर ही कचरा डाल रहे हैं। इससे शहर में न तो सड़कों से कचरा कम हुआ और न ही शहर स्मार्ट बना। 

2 केस - तत्कालीन नगर विकास न्यास की ओर से शहर को ट्रैफिक सिग्नल फ्री बनाने के लिए करीब आधा दर्जन से अधिक अंडरपास, फ्लाई ओवर व चौराहों का विकास व सौन्दर्यीकरण कराया गया। चौराहों पर पैदल चलने वालों के लिए पाथ वे बनवाए गए। उसके बाद भी अधिकतर वाहन चालक रोंग साइड से और अस्त-व्यस्त वाहन निकाल रहे हैं। जिससे ट्रैफिक बदहाल हो रहा है। 

3 केस - चम्बल नदी के किनो बसे शहर में लोगों को 24 घंटे जलापूर्ति हो सके। इसके लिए वाटर प्लांट का निर्माण कराया गया। पानी की पाइप लाइन डलवाई गई। लेकिन हालत यह है कि उसके बाद भी शहर के अधिकतर इलाकों में सुबह-शाम या दिन में एक घंटे ही पानी आ रहा है। इसका कारण कुछ लोगों द्वारा अवैध रूप से पानी का कनेक् शन किया हुआ है। 

ये तो उदाहरण मात्र हैं। ऐसे दर्जनों विकास कार्य हैं जो कोटा शहर को स्मार्ट बनाने के लिए केन्द्र सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत करवाए गए। पिछले 9 साल में कोटा शहर में करीब एक हजार करोड़ से अधिक के विकास कार्य करवाने के बाद भी शहर स्मार्ट नहीं बन सका। इसका कारण शहर के लोगों में सिविल सेंस की कमी है। शिक्षा नगरी व शिक्षा की छोटी काशी होने से यहां देशभर से आने वाले लोगों से तो शहर को साफ रखने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन स्थानीय लोग ही शहर को गंदा करने में जुटे हैं। 

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कोटा से बाहर जयपुर जाने पर यहां के लोग ट्रैफिक नियमों की पालना करते हुए नजर आ जाएंगे। फिर चाहे वह दो पहिया वाहन चलाते समय हैलमेट का उपयोग हो या चार पहिया वाहन चलाते समय सीट बेल्ट लगाने का। देश से बाहर विदेश जाने पर कोटा के लोग ही सड़क पर न तो कचरा डालेंगे और न ही इधर-उधर थूकेंगे। जबकि कोटा के लोग अपने शहर में रहकर ही उन नियमों की न तो पालना कर रहे हैं और न ही शहर को स्मार्ट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। 

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2016 में शुरु हुआ था स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट: केन्द्र सरकार की ओर से वर्ष 2016 में स्मार्ट ुसिटी प्रोजेक्ट की शुरूआत की गई थी। उसमें रा’य के जयपुर, उदयपुर, अजमेर के साथ ही कोटा को भी शामिल किया गया था। करीब 9 साल  मार्च 2025 तक यह प्रोजेक्ट चला। इस प्रोजेक्ट के तहत केन्द्र और रा’य के 50-50 फीसदी अंशदान से शहर में करीब एक हजार करोड़ से अधिक के विकास कार्य करवाए गए। नगर निगम व नगर विकास न्यास समेर अन्य कायरकारी एजेंसियों के माध्यम से शहर को स्मार्ट बनाने के लिए हर क्षेत्र में विकास कार्य करवाए गए। 

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शहर में हुए ये काम
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहर में अंडरपास, फ्लाई ओवर व चौराहों का विकास व सौन्दर्यी करण तो कराया ही। साथ ही एमबीएस व जे.के. लोन अस्पताल  में नए ओपीड़ी ब्लॉक का निर्माण, नगर निगम के आधुनिक कचरा ट्रांसफर स्टेशन, मल्टी स्टोरी पार्किंग, वाटर प्लांट, खेल संकुल समेत हर क्षेत्र में विकास कार्य करवाए गए। जिसे शहर को स्मार्ट बनाया जा सके। लेकिन हालत यह है कि करीब एक हजार करोड़ से अधिक के कार्य करवाने के बाद भी शहर स्मार्ट सिटी में शामिल नहीं हो सका। 

यह है शहर की हालत
शहर की हालत यह है कि लोगों में कहीं भी सिविल सेंस नजर नहीं आता। कचरा पात्र रखा होने के बाद भी अधिकतर लोग उसके बाहर ही कचरा डाल रहे है। घर-घर कचरा संग्रहण में लगे टिपर आने के बाद भी घर के बाहर ही कचरा डाल रहे है। आधुनिक शौचालय व घर-घर शौचालय होने के बाद भी सड़क किनारे ही लघुशंका करने लगते हैं। पान व गुटखा खाने के बाद सड़क पर या सार्वजनिक स्थानों व भवनों के कोनों व दीवारों पर थूकते हुए देखे जा सकते है। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करना तो जैसे लोगों ने अपनी आदत ही बना ली है। सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना, पशु पालने के बाद उन्हें सड़क पर छोड़ना, श्वानों का जमघट सड़क पर लगा होना और धार्मिक आस्था के नाम पर सड़क पर ही गायों को चारा डालना समेत कई ऐसी आदतें हैं जो लोगों में सिविल सेंस की कमी को दर्शाती हैं। 

इंदौर इसलिए है सफाई में नम्बर वन
स्वच्छ भारत मिशन के तहत पिछले करीब 7 साल से हो रहे स्वच्छता सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश का इंदौर शहर हर बार नम्बर एक के पायदान पर खड़ा हुआ है। इसका कारण वहां नगर निगम की ओर से सख्ती तो की ही जा रही है। साथ ही लोगों में भी सिविल सेंस है कि शहर को साफ रखना है। सड़क पर कचरा नहीं डालना है। यदि कोई गलती से डाल भी देता है तो उसे टोकने की आदत ने इंदौर को साफ बनाया हुआ है। शहर साफ होने से स्वत: ही स्मार्ट नजर आता है और उससे वहां रहने वालों की स्थिति का पता चलता है। 

विकास के साथ सिविल सेंस भी जरूरी
स्मार्ट सिटी के तहत शहर में करोड़ों रुपए के विकास कार्य करवाए गए। लेकिन उसके बाद भी शहर की हालत वैसे ही है जैसी पहले थी। न तो शहर साफ हुआ और न ही ट्रैफिक व्यवस्था सुधरी। सरकार ने विकास कार्य करवा दिए। लेकिन जब तक लोग अपनी आदत नहीं सुधारेंगे और उनमें सिविल सेंस नहीं होगा तब तक शहर स्मार्ट नहीं बन सकता। 
- महेश शर्मा, तलवंडी

आदतों में सुधार करना होगा
सिर्फ सरकार और नगर निगम व नगर विकास न्यास के भरोसे शहर को स्मार्ट नहीं बनाया जा सकता। सरकार व सरकारी विभागों का काम विकास कार्य करवाना व उनका संरक्षण करना है। लेकिन लोगों को उन विकास कार्यों का उपयोग करना व उनकी सही देखभाल करना आना चाहिए। सरकारी सम्पति समझने के कारण लोग उनका दुरुपयोग करते हैं। जबकि वह लोगों के टैक्स से ही काम किया गया है। जब तक लोग अपनी आदत नहीं सुधारेंगे तब तक शहर स्मार्ट नहीं बन सकता। 
-  रमेश खत्री, गुमानपुरा

शिक्षा के साथ व्यवहारिक समझ भी चाहिए
शहर को स्मार्ट तो तभी बनाया जाएगा जब लोगों में मंत्रालय व मूत्रालय में अंतर करना आएगा। मंत्रालय लिखा होने पर तो लोग उसे मूत्रालय  समझकर वहां लघुशंका करने लगते है। गीला-सूखा कचरा तक अलग नहीं कर पाए हैं। डस्टबीन होने के बाद भी कचरा सड़क पर ही डाल रहे हैं। जब तक यह अंतर नहीं समझेंगे तब तक शहर को स्मार्ट नहीं बनाया जा सकता। शिक्षा के साथ व्यवहारिक ज्ञानव समझा भी चाहिए। 
- मनीष गुप्ता, बल्लभबाड़ी

इनका कहना है
कोटा में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट 9 साल तक चला। वर्ष 2016 सगे मार्च 2025 तक के समय में शहर में करीब एक हजार करोड़ के विकास कार्य करवाए गए। स्मार्ट सिटी में जितने भी काम स्वीकृत हुए थे वे सभी पूरे हो गए हैं। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहर में सभी क्षेत्रों में  विकास कार्य करवाए गए हैं। उनकी देखभाल व मरम्मत के लिए भी ओएंडएम किया हुआ है। विकास के साथ लोगों के सिविल सेंस से ही शहर स्मार्ट बन सकेगा।  
- मस्तराम मीणा, एक्सईएन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट

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