संयुक्त राष्ट्र ने हूती में बढ़ते विस्थापन पर व्यक्त की चिंता, अस्थाई शिविरों या भीड़भाड़ वाले घरों में रह रहे विस्थापित परिवार
हूती में अब तक लगभग 13 लाख लोग हिंसा की वजह से विस्थापित हो चुके
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय संगठनों ने हूती में बढ़ती हिंसा के कारण आंतरिक विस्थापन में बड़े पैमाने पर हो रही वृद्धि पर चिंता जताई है।
संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र के मानवीय संगठनों ने हूती में बढ़ती हिंसा के कारण आंतरिक विस्थापन में बड़े पैमाने पर हो रही वृद्धि पर चिंता जताई है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (ओसीएचए) ने अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के आंकड़ों के हवाले से बताया कि हूती में अब तक लगभग 13 लाख लोग हिंसा की वजह सेविस्थापित हो चुके हैं। यह विस्थापित लोगों की तादाद में दिसंबर 2024 से 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। यह आंकड़ा अब तक का सबसे अधिक है। राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस हिंसा का मुख्य केंद्र बना हुआ है, लेकिन यह संकट अब केन्द्र और आर्टिबोनाइट जैसे अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया है, जिससे बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित हो रहे हैं।
हूती के केंद्र विभाग में विस्थापित लोगों की संख्या कुछ ही महीनों में 68 हजार से बढ़कर 1.45 लाख हो गई है। आर्टिबोनाइट क्षेत्र में दिसंबर 2024 से अब तक 90 हजार से अधिक लोग घर छोड़ चुके हैं, जबकि उत्तरी विभाग में विस्थापन में लगभग 80 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने बताया कि विस्थापित परिवारों को अस्थाई शिविरों या भीड़भाड़ वाले घरों में रहना पड़ रहा है, जहां बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। दिसंबर 2024 से, अब तक स्वत: बने विस्थापन स्थलों की संख्या 142 से बढ़कर 246 हो गई है, जिनमें सबसे बड़ी वृद्धि सेंटर डिपार्टमेंट में हुई है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 83 प्रतिशत विस्थापित लोग परिवारों के पास रह रहे हैं, जिससे पहले से ही कमजोर ग्रामीण समुदायों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है। आईओएम ने पोर्ट-ओ-प्रिंस के महानगरीय क्षेत्र में अपने राहत कार्य तेज कर दिए हैं। अब तक 20 हजार से अधिक लोगों को जरूरी घरेलू सामान, 30 लाख लीटर साफ पानी और छह हजार लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई गई हैं।
ओसीएचए ने कहा कि इसके अलावा, 8,500 से अधिक लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में परामर्श सहायता भी दी गई है। ओसीएचए ने बताया कि विस्थापन में आई तेज बढ़ोतरी ऐसे समय हो रही है, जब मानवीय मदद तक पहुंच सीमित होती जा रही है और फंडिंग भी बेहद कम है। यदि तत्काल सहायता नहीं मिली तो यह संकट और गहरा होगा, जिससे पहले से ही दबाव में चल रही व्यवस्थाएं तथा समुदाय और अधिक प्रभावित होंगे।
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