हिंसक बना आंदोलन

हिंसक बना आंदोलन

पिछले दो महीने से शांतिपूर्वक चल रहा किसान आंदोलन गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर परेड में आखिर किसान आंदोलन अचानक हिंसक घटनाओं में कैसे बदल गया, यह एक विचारणीय सवाल बन गया है? काफी प्रयासों व बातचीत के बाद किसान नेताओं को परेड निकालने की अनुमति मिली थी। जिम्मेदार किसान नेताओं ने भी सरकार व पुलिस को भरोसा दिलाया था कि परेड शांतिपूर्वक निकलेगी।

पिछले दो महीने से शांतिपूर्वक चल रहा किसान आंदोलन गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर परेड में आखिर किसान आंदोलन अचानक हिंसक घटनाओं में कैसे बदल गया, यह एक विचारणीय सवाल बन गया है? काफी प्रयासों व बातचीत के बाद किसान नेताओं को परेड निकालने की अनुमति मिली थी। जिम्मेदार किसान नेताओं ने भी सरकार व पुलिस को भरोसा दिलाया था कि परेड शांतिपूर्वक निकलेगी। परेड निकालने के लिए पुलिस व संयुक्त किसान नेताओं के बीच आपसी सहमति से परेड का समय व मार्ग तय हुए थे। यह तय हुआ था कि जब इण्डिया गेट की मुख्य परेड समाप्त हो जाएगी, उसके बाद दोपहर 12 बजे ही ट्रैक्टर परेड निकलेगी। लेकिन सिंधू बार्डर की तरफ से कुछ किसानों ने सुबह साढ़े सात बजे ही अपनी गतिविधियां शुरू कर दी और अवरोधक तोड़कर दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। उन्हें रोकने के लिए पुलिस को मजबूरन बल प्रयोग करना पड़ा। लाठीचार्ज का असर न पड़ने पर आंसू गैसें के गोले दागने पड़े। हालांकि किसान नेताओं ने अपील की थी कि वे तय रूट पर ही परेड पर निकलेंगे और शांति बनाए रखेंगे। मगर कुछ आंदोलनकारियों ने उनकी बात को नहीं माना और आंदोलनकारी असंयमित और अनुशासनहीन हो गए।

इस परेड में जो कुछ हुआ, उसकी आशंका दिल्ली पुलिस को पहले से ही थी लेकिन ट्रैक्टर परेड निकलनी थी। यह भी उम्मीद थी कि किसान गणतंत्र दिवस की भावना का आदर करेंगे और अनुशासित रहेंगे, लेकिन काफी किसानों ने लाल किले पर अपना झंडा फहराकर अपनी ताकत के प्रदर्शन की ठान रखी  थी। कई तो इण्डिया गेट की परेड में भी शामिल होने का इरादा रखते थे, लेकिन वहां पुलिस व सुरक्षा बलों की भारी व्यवस्था थी। आंदोलन में उत्पात मचाने की भावना इसलिए पनपी थी कि कुछ किसान नेता जोशीले भाषण देते चले आ रहे थे। कहने को किसान नेता गणतंत्र की आन बान शान बनाए रखने की बातें भी करते थे, लेकिन दिल्ली के लाल किले और आईटीओ इलाके में उत्पात मचना शुरू हुआ तो किसान नेता ओझल हो गए। उत्पातियों ने लाल किले पर अपना झण्डा फहरा दिया। यह निसंदेह काफी शर्मनाक व निंदनीय घटना थी।

किसी भी लोकतंत्र में अपने प्रतीकों पर हमले की इजाजत नहीं देता। इस घटना से दो माह से चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन दागदार हो गया। हालांकि कुछ किसान नेता उत्पात के लिए पुलिस पर ही आरोप लगा रहे हैं तो कुछ का मानना है कि कुछ शरारती तत्व भी आंदोलन में घुस गए। यह जांच का विषय है और इसके बाद हकीकत का पता चलेगा। उत्पातियों ने पुलिस वालों पर लाठियों से वार किए, पत्थर बरसाए। इससे सौ से ज्यादा पुलिस कर्मी घायल हो गए। उत्पात से आंदोलन हिंसक बन गया। किसान नेता अब जो भी अपनी दलीलें दें, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।

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