जाने राजकाज में क्या है खास

जुबान पर आया सच

जाने राजकाज में क्या है खास

जोधपुर की धरा से ताल्लुक रखने वाले अशोक जी भाईसाहब कई महीनों से मौके की तलाश में थे, जो शनि को पिंकसिटी में अपने आप ही मिल गया।

 

सूबे के राज की कुर्सी पर बैठने वाले भाईसाहब ने शनि को न्याय के देवताओं के सामने जो जुबान खोली, उसको लेकर सामने वाले भी पानी-पानी हुए बिना नहीं रहे। जोधपुर की धरा से ताल्लुक रखने वाले अशोक जी भाईसाहब कई महीनों से मौके की तलाश में थे, जो शनि को पिंकसिटी में अपने आप ही मिल गया। भाईसाहब ने गोगई जी की आड़ लेकर जो कहां, वो सौ टका सही है, इसलिए न्याय के मंदिर के पुजारी भी चुपचाप सुनते रहे, चूंकि उनके पास कानाफूसी करने के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं था। भाईसाहब की खुली जुबान को लेकर भगवा वाले भाई लोग भी पानी-पानी हुए बिना नहीं रहे। राज का काज करने वाले अब भाईसाहब के बोलों पर सामने वाले के काउंटर का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

दो दोस्तों के फेर में चुनाव

सूबे में अगले राज के लिए रोजाना नए-नए शगूफे आ रहे हैं। दोनों बड़े दलों के ठिकाने पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। आलाकमानों के रोल को लेकर धड़ाबंदी में फंसे दोनों दलों के नेताओं के भी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर माजरा क्या है। आलाकमान, सीएम और पूर्व सीएम के फेर में फंसे  बेचारे वर्कर्स की हालत दुबली होती जा रही है। अब तो हाथ और भगवा वालों के ठिकानों पर चर्चा होने लगी है कि सूबे में राज के लिए होने वाले अगला चुनाव दो पार्टियों के बजाय दो दोस्तों के बीच ही लड़ा जाएगा। वर्कर्स ने दोस्तों की जोड़ी भी तय करने में कोई कंजूसी नहीं बरती। एक धड़े ने जोधपुर वाले गज्जू बन्ना और छोटे पायलट की जोड़ी बनाई है, तो दूसरे धड़े ने जोधपुर वाले जादूगरजी और झालावाड़ वाली मैडम की जोड़ी तय की। राज का काज करने वाले कुछ भी चर्चा करें, लेकिन समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

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अब जातीय धु्रवीकरण 

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इन दिनों कास्ट को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं। हर गली और चौराहों पर कास्ट की बात हुए बिना नहीं रहती। सरकारी दफ्तरों में तो कास्ट के नाम पर मुंह खोले बिना फाइल की तरफ देखते तक नहीं। पार्टियों की बैठकों और चिन्तन-मंथन का श्रीगणेश भी कास्ट वंदना से होता है। राज का काज करने वाले बतियाते हैं कि अब धर्म का ध्रुवीकरण के बजाय जातीय धु्रवीकरण पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। इस दौड़ में सारे सिद्धांतों को पीछे रखकर भगवा वाले भाई लोग सबसे आगे हैं। हाथ वाले भाई लोगों पर कास्ट की राजनीति करने का आरोप लगाने वाली पार्टी ने भी प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट कंडीडेट्स के सलेक्शन तक में मूल कैडर को भूल जातीय धु्रवीकरण को पहली प्राथमिकता दी है। 

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चिन्ता में साहब

इन दिनों राज के साहब लोग कुछ ज्यादा ही चिन्ता में हैं। उनकी रातों की नींद और दिन का चैन काफूर है। उनके चेहरों पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। हमने भी सूंघासांघी की तो, हंसे बिना नहीं रह सके। राज के एक साहब ने अपना दुखड़ा सुनाया कि जब ट्रांसफर एमएलए को करना है, तो हम कांई को माथाफोड़ी करे, जो लिस्ट आएगी, उस पर बिना नजर डाले ही ज्वॉइंट सेक्रेटरी के जरिए मंत्री के पास भेज देंगे, वो जाने और उसका काम। ऐसे तो हो लिए सुशासन के दावे पूरे। घर एमएलएज भरेंगे और बदनाम हम होंगे। 

एक जुमला यह भी

सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि न प्रपोजल और न प्लानिंग को लेकर है। जुमले की चर्चा बड़ी चौपड़ से लेकर सचिवालय तक है। गलियारों का कोई भी कोना इस जुमले की चर्चा से अछूता नहीं है। जुमला है कि सूबे इन दिनों ब्यूरोक्रेसी नाम की कोई चीज ही नहीं है। न कोई प्रपोजल है और न ही कोई प्लान। नेताओं को अपनी कुर्सी की फिकर है, तो अफसरों को तनख्वाह की। तभी तो छह महीने की गारंटी लेने वाले राज के रत्न एक साल में भी तीन लाख पट्टे नहीं बांट सके।

एल.एल शर्मा, पत्रकार

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