हाड़ौती के 34 कॉलेजों में मात्र 1 पीटीआई और एक ही लाइब्रेरियन

राजकीय महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का बुरा हाल, विकास समिति से लगे लाइब्रेरियन को हर माह प्लेसमेंट एजेंसी को देने पड़ रहे 700 रुपए , कई कॉलेजों में विकास समिति से लगाए पीटीआई तो कहीं है ही नहीं

हाड़ौती के 34 कॉलेजों में मात्र 1 पीटीआई और एक ही लाइब्रेरियन

कोटा संभाग के 34 सरकारी कॉलेजों में से मात्र 2 ही कॉलेज में एक पीटीआई व एक ही लाइब्रेरियन है। बारां के बॉयज कॉलेज में शारीरिक शिक्षक तो बूंदी के राजकीय महाविद्यालय में लाइब्रेरियन हैं। ऐसे में कॉलेजों में विद्यार्थियों की न तो स्पोर्ट्स की तैयारी हो पाती है और न ही समय पर पढ़ने को किताबें मिल पाती है।

कोटा ।   हाड़ौती के राजकीय महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का बुरा हाल है। यहां न तो गेम्स सिखाने के लिए पीटीआई है और न ही किताबों की देखरेख के लिए लाइब्रेरियन है। हालात यह हैं, कोटा संभाग के 34 राजकीय महाविद्यालयों में से 2 ही कॉलेज ऐसे हैं जहां मात्र 1 पीटीआई और 1 लाइब्रेरियन नियुक्त हैं, जो आरपीएससी से चयनित हुए हैं। वर्ष 1992 के बाद से ही सरकार ने कॉलेजों में पीटीआई व लाइब्रेरियन की भर्ती नहीं निकाली। हर साल भर्ती की आस में बड़ी संख्या में युवा लाइब्रेरी साइंस व बीपीएड की डिग्री ले रहे हैं।  लेकिन, भर्ती के अभाव में उनके सपने चकनाचूर हो रहे हैं। 

यहां एक पीटीआई और एक ही लाइब्रेरियन
कोटा संभाग के 34 सरकारी कॉलेजों में से मात्र 2 ही कॉलेज में एक पीटीआई व एक ही लाइब्रेरियन है। बारां के बॉयज कॉलेज में शारीरिक शिक्षक तो बूंदी के राजकीय महाविद्यालय में लाइब्रेरियन हैं। ऐसे में कॉलेजों में विद्यार्थियों की न तो स्पोर्ट्स की तैयारी हो पाती है और न ही समय पर पढ़ने को किताबें मिल पाती है। अधिकतर महाविद्यालयों में लाइब्रेरियन व पीटीआई का चार्ज व्याख्याताओं को ही सौंप रखे हैं। जिससे बच्चों की पढ़ाई तो प्रभावित होती है साथ ही खेलकूद गतिविधियां भी ठीक से संचालित नहीं हो पाती। 

1 पीटीआई और 2 कॉलेजों का चार्ज
बारां के बॉयज कॉलेज में चतुर्भुज शर्मा एकमात्र शारीरिक शिक्षक हैं। उन्हें 15-15 दिन बॉयज व गर्ल्स कॉलेज में सेवाएं देनी पड़ती है। इसके अलावा उन्हें छबड़ा महाविद्यालय में भी जाना पड़ता है। जिसकी वजह से वे ठीक से बच्चों की प्रेक्टिस पर ध्यान नहीं दे पाते। शर्मा बताते हैं, प्रदेश के करीब 400 कॉलेजों में शारीरिक शिक्षक नहीं है। 1992 के बाद से ही सरकार द्वारा भर्ती नहीं निकाली गई है। अधिकतर कॉलेजों में पीटीआई का चार्ज भी प्रोफेसरों को सौंप रखा है। हाल ही में आयुक्तालय ने विकास समिति के माध्यम से कॉलेजों में पीटीआई नियुक्त करने के आदेश दिए हैं। लेकिन, महाविद्यालय की विकास समिति के फंड में इतना बजट ही नहीं होता कि शारीरिक शिक्षक व लाइब्रेरियन को तनख्वाह दे सके। सरकार को विद्या संबल योजना के तहत ही इनकी नियुक्ती की जानी चाहिए ताकि यूजीसी की गाइड लाइन के अनुरूप योग्य शिक्षक व लाइब्रेरियन नियुक्त किया जा सके। 

न्यूनतम मानदेय पर काम कर रहे लाइब्रेरियन
गवर्नमेंट कॉलेज कोटा, कॉमर्स व जेडीबी में विकास समिति से प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा लाइब्रेरियन व पीटीआई लगाए गए हैं। जिन्हें न्यूनतम मानेदय दिया जा रहा है। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि अलग-अलग कॉलेजों में अलग-अलग मानदेय दिया जा रहा है। कॉमर्स कॉलेज में विकास समिति से 7 हजार 500 रुपए मानदेय दिया रहा। इसमें से भी प्लेसमेंट एजेंसी प्रत्येक कर्मचारी से 700 रुपए प्रतिमाह लिए जाते हैं। ऐसे में उनके हाथ में 6 हजार 800 रुपए ही आते हैं। महंगाई के दौर में उनका घर-खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है।  उन्हें 26 दिन के हिसाब से ही पैसा दिया जाता है, जबकि, 4 रविवारीय अवकाश का पैसा नहीं दिया जा रहा। ऐसे में महंगाई के दौर में परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। 

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हाड़ौती में मात्र 1 ही लाइब्रेरियन
संभाग के 34 राजकीय महाविद्यालयों में से बूंदी बॉयज कॉलेज ही एकमात्र ऐसा महाविद्यालय है, जहां आरपीएससी से चयनित लाइब्रेरियन हैं। यहां 30 साल से काम कर रहे लाइब्रेरियन रामस्वरूप मीणा बताते हैं, लाइब्रेरी महाविद्यालय का आईना होता है। 1991 के बाद से ही प्रदेश में पुस्तकालयाध्यक्ष की भर्ती नहीं की गई। ऐसे में विद्यार्थियों की मांग के अनुरूप किताबों की खरीद, लाइब्रेरी की देखरेख सहित अन्य काम ठीक से नहीं हो पाते। अन्य कॉलेजों में लाइब्रेरियन का चार्ज भी  प्रोफेसरों को दिया हुआ है। अतिरिक्त कार्यभार के कारण शिक्षकों का मूल कार्य प्रभावित हो जाता है। किताबों की खरीद तक नहीं हो पाती।  यह स्थिति हाड़ौती ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की है। करीब चार सौ महाविद्यालयों में से 20 में ही स्थाई लाइब्रेरियन हैं। जबकि, शेष कॉलेजों में पद खाली पड़े हैं। कई कॉलेजों में विकास समिति के माध्यम से अस्थाई लाइब्रेरियन लगा रखे हैं, जिनका मानदेय भी बहुत कम है। 

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अनुभव का नहीं मिल रहा लाभ
शिक्षाविदों का कहना है कि कई कॉलेजों में प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा लगाए गए कर्मचारी लंबे समय से काम कर रहे हैं। उन्हें अपने अनुभव का लाभ नहीं मिल रहा। जबकि, अनुभव के आधार पर उनके वेतन में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि वे महंगाई के इस दौर में अपना जीवन यापन ठीक तरह से कर सके। 

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कॉलेजों में हो रही यूजीसी नियमों की अवहेलना
राजकीय महाविद्यालय बारां व बूंदी को छोड़कर संभग के अन्य 31 कॉलेजों में यूजीसी नियमों की अवहेलना की जा रही है। कई महाविद्यालयों में विकास समिति के माध्यम से लाइब्रेरियन व शारीरिक शिक्षकों की नियुक्ति नियमानुसार नहीं की गई। अधिकतर कॉलेजों में लाइब्रेरी साइंस में मास्टर डिग्री करने वालों को ही नियुक्त किए गए हैं, जबकि गाइड लाइन के अनुसार दोनों पदों के लिए नेट या पीएचडी के साथ संबंधित विषय में मास्टर डिग्री होना जरूरी है। लेकिन, महाविद्यालयों में लगाए गए आवेदनकर्ताओं के पास नेट या पीएचडी क्वालिफाई नहीं है, मास्टर डिग्री के आधार पर ही उन्हें नियुक्त किया गया है। 

1991 के बाद लाइब्रेरियन व 1992 के बाद से कॉलेजों में शारीरिक शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई है। अधिकतर जगहों पर पद खाली चल रहे हैं, जिन्हें विकास समिति के माध्यम से भरने के लिए आयुक्तालय ने सभी कॉलेजों के प्राचार्यों को निर्देश दिए हैं। जिसकी पालना में हाड़ौती के किन कॉलेजों में अब तक लाइब्रेरियन व पीटीआई लगाए या नहीं लगाए गए, इसकी जानकारी ले रहे हैं। 
- डॉ. रघुराज सिंह परिहार, सहायक निदेशक कॉलेज आयुक्तालय कोटा

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