प्याऊ के साथ ही गायब हुई मिट्टी और केवड़े की महक
मटकों की जगह वाटर कूलरों में पी रहे मशीनों का पानी
गर्मी के मौसम में हर साल नगर निगम की ओर से तीन से चार महीने तक प्याऊ लगाई जाती थी। भीड़भाड़ वाले इलाके या सड़क किनारे पर निर्धारित स्थानों पर प्याऊ का संचालन किया जाता था।
कोटा। गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ ही पहले जहां जगह-जगह सड़क किनारे प्याऊ नजर आती थी। जिनमें मिट्टी की सुगंध वाले मटकों के पानी के साथ ही केवड़े की महक अनायास ही लोगों को पानी पीने के लिए रोक लेती थी। वह अब गायब हो गई है। उसकी जगह अब अधिकतर लोग वाटर कूलरों में मशीनों का पानी पी रहे हैं। गर्मी के मौसम में हर साल नगर निगम की ओर से तीन से चार महीने तक प्याऊ लगाई जाती थी। भीड़भाड़ वाले इलाके या सड़क किनारे पर निर्धारित स्थानों पर प्याऊ का संचालन किया जाता था। खस-खस की टाटियों से बनी प्याऊ में जहां ठंडक रहती थी। उनमें बड़े-बड़े काले मटके रखे जाते थे। उनमें पानी भरकर केवड़ा डाला जाता था। जिससे मटकों का पानी फ्रिज की तरह ठंडा तो रहता ही था साथ ही उसमें केवड़े की सुगंध महकती थी। उन प्याऊ के माध्यम से राहगीरों की प्यास बुझाकर उन्हें राहत दी जाती थी। साथ ही उन प्याऊ में ऐसी महिलाओं को काम दिया जाता था जो जरूरतमंद होती थ। जिससे उनका गुजारा भी चलता था।
नगर निगम ही नहीं शहर की कई सामाजिक, धार्मिक व स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से भी जगह जगह पर प्याऊ लगाई जाती थी। यहां तक कि दशहरा मेले में भी निगम के अलावा समाजों की ओर से प्याऊ लगाई जाती थी। उसके लिए निगम कीओर से उन्हें स्थान उपलब्ध कराया जाता था। नगर निगम द्वारा दशहरा मेले के अलावा अदालत परिसर व सब्जीमंडी समेत करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर प्याऊ लगाई जाती थी। लेकिन समय के साथ-साथ ये प्याऊ खत्म हो गई। एक दो जगह पर ही प्याऊ दिखाई देती है वह भी स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से ही संचालित हो रही हैं। जिससे अब न तो मटकों का शुद्ध पानी मिल पा रहा है और न ही केवड़े की महक। उसकी जगह पर अब शहर में जगह जगह पर वाटर कूलर लग चुके हैं।
सास के बाद बहू चला रही प्याऊ
शहर में गिनती की जगह पर ही प्याऊ का संचालन हो रहा है। दादाबाड़ी में गोदावरी धाम मंदिर के बाहर एक संस्था की ओर से प्याऊ बरसों से चल रही है। उस प्याऊ में पहले जहां शिवपुरा निवासी महिला पानी पिला रही थी। उनका निधन होने के बाद अब उनकी बहू यह काम कर रही है। वहां अभी भी मटकों में केवड़े वाला पानी मिल रहा है। लोग दूर-दूर से यहां पानी पीने के लिए आ रहे हैं। इसी तरह अदालत परिसर में एक धार्मिक संस्था द्वारा प्याऊ का सचालन किया जा रहा है। नयापुरा स्थित बस स्टैंड पर प्याऊ नहीं है लेकिन पानी के लिए मटके रखे हुए हैं।
मटके का पानी स्वादिष्ट होता था
नयापुरा निवासी पंकज साहू ने बताया कि प्याऊ का पानी स्वादिष्ट होता था। मिट्टी का मटका होने से एक तो उसका पानी ठंडा और स्वादिष्ट भी होता था। बजरंग नगर निवासी संजय मित्तल ने बताया कि प्याऊ में केवड़े की सुगंध पानी का स्वाद बढाती थी। जिससे घर से निकलने के बाद भी प्याऊ में पानी पीने का मन करता था। प्याऊ में मटके रोजाना भरने से पानी साफ भी रहता था। महावीर नगर निवासी शक्ति रानी का कहना है कि प्याऊ ही नहीं अब तो अधिकतर घरों से भी मटके गायब हो गए हैं। जिस तरह से प्याऊ की जगह वाटर कूलर लग चुके हैं। उसी तरह से घरों में मटकों की जगह फ्रिज ने ले ली है।
इनका कहना है
नगर निगम की गौशाला की ओर से गर्मी में प्याऊ लगाई जाती थी। शहर में उस समय करीब एक दर्जन से अधिक प्याऊ लगती थी। वर्ष 2018 तक ये प्याऊ लगती रही हैं। लेकिन उसके बाद विधायक कोष से वाटर कूृलर लगाए जाने लगे। जिससे प्याऊ का चलन ही खत्म हो गया है। अब तो निगम में भी प्याऊ में काम करने वाले कर्मचारी भी गिनती के हैं। वह भी अन्य काम कर रहे हैं।
-दिनेश शर्मा, उपायुक्त राजस्व नगर निगम कोटा दक्षिण
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