जाने राजकाज में क्या है खास

जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे में इन दिनों एक सर्वे की चर्चा जोरों पर है। सर्वे भी भगवा वाले भाई लोगों के एक खेमे ने करवाया है। बेचारों को उम्मीद तो यह थी कि रिपोर्ट से कुलांचे भरेंगे, लेकिन हुआ उल्टा।

सर्वे में भारी राहत कैम्प
सूबे में आए दिन सर्वे तो होते ही रहते हैं। कुछ लोग अपने हिसाब से सर्वे कराते हैं, तो कुछेक सामने वालों की नींद उड़ाने के लिए कराते हैं। कथित एजेंसियां भी सर्वे के लिए उतावली रहती हैं। लेकिन सूबे में इन दिनों एक सर्वे की चर्चा जोरों पर है। सर्वे भी भगवा वाले भाई लोगों के एक खेमे ने करवाया है। बेचारों को उम्मीद तो यह थी कि रिपोर्ट से कुलांचे भरेंगे, लेकिन हुआ उल्टा। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि सर्वे करने वाली टीम ने रिपोर्ट दी है कि जोधपुर वाले भाई की ओर से शुरू किए गए राहत कैम्प का मास्टर स्ट्रोक सब पर भारी है। यहां तक कि तीन साल से कुर्सी के लिए मचल रहे यूथ लीडर को भी इसका तोड़ नजर नहीं आ रहा।

जाति विशेष बनाम जन नेता
सूबे में इन दिनों जाति विशेष और जन नेता को लेकर चर्चा जोरों पर है। चर्चा से गांव-गांव और ढाणी-ढाणी तक अछूता नहीं है। चर्चा में यूथ से लेकर सीनियर सिटीजन तक चटकारे लिए बिना नहीं रहते। चर्चा है कि जातीय पंचायतें ही जन नेता बनाती तो गुजरे जमाने में बाड़मेर वाले कालवी जी, गुलाबीनगर वाले मिश्रा जी और बयाना वाले भड़ाना जी भी जन नेता बने बिना नहीं रहते। अब भाई लोगों को कौन समझाए कि जन नेता बनने के लिए जाति विशेष का नहीं, बल्कि जन सेवक का तमगा लगाने के लिए रात-दिन पसीने बहाना जरूरी है। जातीय लोगों की भीड़ में मीटिंग करना तो आसान है, लेकिन उनको वोट में कन्वर्ट करना अलग चीज है। इस चर्चा के मायने समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

मन क्यों डोला
मन तो मन ही है, कब किधर डोल जाए, कुछ पता नहीं होता। अब देखो ना, पिछले दिनों राज की सेवा से निवृत्त हुए एक बड़े साहब मन से हाथ वालों का गुणगान करते नहीं थकते थे। जब भी मौका मिलता गांधीजी से लेकर राहुल और खड़गे तक के गुणगान करने से कतई नहीं चूकते थे। लेकिन अचानक कमल वाली पार्टी की मेम्बरशिप ली तो कइयों के कान खड़े हो गए। हमने भी सूंघा-सांधी की, तो पता चला कि साहब ने रिटायर होते ही बंगला नंबर आठ से संपर्क साधने की कोशिश की थी। संदेशा भी एक बार नहीं, पांच-पांच बार भिजवाया, मगर रेस्पोंस नहीं मिला, तो साहब का भी मेहन्दीपुर बालाजी के दर्शन करने के बाद मन बदल गया। वहीं से सरदार पटेल मार्ग के बंगला नंबर 51 के साथ सिविल लाइंस के बंगला नंबर 13 में मैसेज किया। वहां तनिक भी चूक नहीं की और भगवा वालोें के ठिकाने का न्यौता भिजवा दिया। साहब भी खुश और कमल वाले भी सफल।

सूची हुई लंबी
जब भी सूबे में नए राज के लिए चुनाव होते हैं, तब भीतरखाने एक सूची तैयार होती है। चाहे राज किसी का भी हो, एक विंग सिर्फ इसी काम को अंजाम देती है। विंग में शामिल लोग रात दिन एक कर उन अफसरों की सूची तैयार करते हैं, जिनका उनकी जाति विशेष में प्रभाव है। इस बार की सूची कुछ ज्यादा ही लंबी होती जा रही है। फर्क इतना सा है कि पहले आईएएस और आईपीएस तक ही मामला सीमित रहता था, लेकिन इस बार देवनारायण वंशज छोटे पायलट के असर से दोनों तरफ दायरा बढ़ गया और उसमें आरएएस के साथ आरपीएस को भी शामिल कर लिया गया। इस सूची में शामिल राज का काज करने वाले भी अपने अपने हिसाब से जोड़-बाकी और गुणा-भाग में लगे हुए हैं।

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एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि माइक पकड़ने की बीमारी को लेकर है। बीमारी भी लाइलाज है, वैसे तो यह रोग छपास की बीमारी से भी छोटा है, लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है। सूबे में इन दिनों इस रोग से हाथ वाले भाई लोग ज्यादा ग्रसित हैं। शेखावाटी का पानी पीने वाले कुछ भाई लोग तो सपने में भी माइक पकड़े बिना नहीं रहते। जुमला है कि सूबे के नेताओं के इस रोग से पंजाब से आए सरदारजी भी चिंतित हैं। वे भी माइक के लिए सूबे की नेताओं की ओर मुंह ताकते ही रहते हैं।

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एलएल शर्मा

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