आत्मनिर्भर और सशक्त महिलाओं के बल पर ही भारत बन सकता है विकसित : द्रौपदी मुर्मु

महिलाओं के प्रति सम्मान से ही भयमुक्त माहौल

आत्मनिर्भर और सशक्त महिलाओं के बल पर ही भारत बन सकता है विकसित : द्रौपदी मुर्मु

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने विकसित भारत को सभी का सपना बताते हुए कहा है कि आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, स्वतंत्र और सशक्त महिलाओं के बल पर ही विकसित भारत का निर्माण हो सकता है

नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने विकसित भारत को सभी का सपना बताते हुए कहा है कि आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, स्वतंत्र और सशक्त महिलाओं के बल पर ही विकसित भारत का निर्माण हो सकता है। इसलिए पुरुषों को महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनने में हर कदम पर सहयोग करना चाहिए। मुर्मु ने शनिवार को यहां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा नारी शक्ति से विकसित भारत विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति ने कहा कि यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने, उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए खुद को समर्पित करने का अवसर है। उन्होंने कहा, आज हम अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के 50 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस अवधि में महिला समुदाय ने अभूतपूर्व प्रगति की है। वह अपनी जीवन यात्रा को इस प्रगति का एक हिस्सा मानती हैं।  उन्होंने कहा कि ओडिशा के एक साधारण परिवार और पिछड़े क्षेत्र में जन्म लेने से लेकर राष्ट्रपति भवन तक की उनकी यात्रा भारतीय समाज में महिलाओं के लिए समान अवसरों और सामाजिक न्याय की कहानी है। राष्ट्रपति ने कहा, विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए बेहतर माहौल मिलना जरूरी है। उन्हें ऐसा माहौल मिलना चाहिए, जहां वे बिना किसी दबाव या डर के अपने जीवन के बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकें। हमें ऐसा आदर्श समाज बनाना है, जहां कोई भी बेटी या बहन अकेले कहीं जाने या रहने से न डरे।

महिलाओं के प्रति सम्मान से ही भयमुक्त माहौल
 मुर्मु ने कहा कि महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना ही भयमुक्त सामाजिक माहौल बनाएगी। ऐसे माहौल में लड़कियों को जो आत्मविश्वास मिलेगा, वह देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। राष्ट्रपति ने कहा कि जब भी हमने महिलाओं की प्रतिभा का सम्मान किया है, उन्होंने कभी निराश नहीं किया है।  संविधान सभा की सदस्य रहीं सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, सुचेता कृपलानी और हंसाबेन मेहता जैसी विभूतियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं ने अपनी बुद्धि, विवेक और ज्ञान के बल पर न केवल ख्याति अर्जित कर सर्वोच्च स्थान हासिल किया है, बल्कि देश और समाज का मान भी बढ़ाया है। चाहे विज्ञान हो, खेल हो, राजनीति हो या समाज सेवा हो- सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा के प्रति सम्मान जगाया है। 

कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी तेज
राष्ट्रपति ने कहा कि जब भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, तो देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी का एक कारण यह धारणा है कि महिलाएं बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी ले लेंगी या काम पर कम ध्यान दे पाएंगी। उन्होंने कहा, यह सोच सही नहीं है। हमें खुद से पूछना होगा कि क्या समाज की बच्चों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है। हम सभी जानते हैं कि परिवार में पहली शिक्षिका मां होती है। अगर मां बच्चों की देखभाल के लिए छुट्टी लेती है, तो उसका यह प्रयास समाज की भलाई के लिए भी है। मां अपने प्रयासों से अपने बच्चे को आदर्श नागरिक बना सकती है। 

मुर्मु ने कहा कि आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, स्वतंत्र और सशक्त महिलाओं के बल पर ही विकसित भारत का निर्माण हो सकता है। विकसित भारत का संकल्प सबका संकल्प है, जिसे सबको मिलकर पूरा करना है। इसलिए पुरुषों को महिलाओं को सशक्त, सशक्त और आत्मनिर्भर बनने में हर कदम पर सहयोग करना चाहिए। महिलाओं को पूरे आत्मविश्वास, लगन और मेहनत के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए और देश व समाज के विकास में योगदान देना चाहिए।

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